लहरों की
बांसुरी
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अभी वाशरूम में हूँ कि मोबाइल की
घंटी बजी है। सुबह-सुबह कौन हो सकता
है। सोचता हूँ और घंटी बजने देता हूँ। पता है जब
तक तौलिया बाँध कर बाहर निकलूंगा, घंटी
बजनी बंद हो जायेगी। घंटी
दूसरी बार बज रही है,
तीसरी बार, चौथी बार। बजने
देता हूं। बाद में भी देखा जा सकता है, किसका फोन है।
बाहर आकर देखता हूँ अंजलि का फ़ोन है। कमाल है, अंजलि और
वह भी सुबह-सुबह। उनसे तो बोलचाल
ही बंद हुए महीना भर होने को आया।
फोन मिलाता हूँ – हैलो, आज सुबह-सुबह, सब ठीक
तो है ना?
मेरी हैलो सुने बिना सीधे सवाल दागा जाता है
– इतनी देर से फोन क्यों नहीं उठा रहे?
बताता हूं - नहा रहा था भई और मैं नहाते समय अपना मोबाइल
बाथरूम में नहीं ले जाता।
- डोमेस्टिक एयरपोर्ट पहुँचने में आपको कितनी देर
लगेगी? मैं हैरान होता हूं। अंजलि और मुंबई एयरपोर्ट
पर?
मैं कारण चाहता हूँ लेकिन वही सवाल दोहराया जाता है
- डोमेस्टिक एयरपोर्ट आने में आपको कितनी देर
लगेगी?
मैं बताता हूँ – ट्रैफिक न मिले तो पन्द्रह मिनट, नहीं
तो आधा घंटा।
- हमम, तो आप एक काम कीजिए। तीन
दिन के लिए कैजुअल से कपड़े एक बैग में डालिये, गाड़ी
निकालिये और मुझे आधे घंटे बाद डोमेस्टिक एयरपोर्ट ए वन के
अराइवल गेट पर मिलिये। अभी फ्लाइट लैंड हुई है,
तब तक मैं भी बाहर आ ही
जाऊंगी।
मैं हैरान होता हूँ - आप सुबह-सुबह बंबई में कैसे?
मेरी बात नहीं सुनी
जाती। अंजलि अपनी बात
दोहराती हैं - मैं वेट करूंगी।
मैं सोच में पड़ गया हूं - अंजलि बंबई आयी हैं।
अभी फ्लाइट से उतरी भी
नहीं हैं। मुझे एयरपोर्ट पर ही बुलाया है
और तीन दिन के लिए कैजुअल कपड़े भी
डालने के लिए कह रही हैं। पता नहीं क्या
है उनके मन में।
याद करता हूँ, कल ऑफिस की एक ज़रूरी
मीटिंग में मेरा होना बेहद ज़रूरी है। देखें, ये
तो अंजलि से मिलने के बाद ही पता चलेगा कि वे क्या
चाहती हैं। मैं फटाफट तैयार होता हूँ। सफ़र के लिए
ज़रूरी सामान और कपड़े बैग में डालता हूँ। ब्रेकफास्ट
का टाइम नहीं है। गाड़ी निकालता हूँ।
अभी गेट से बाहर निकला ही हूं कि फिर
अंजलि का फोन है।
गाड़ी एक तरफ खड़ी करके पूछता हूँ -
अब क्या है?
वे पूछती हैं - कहाँ तक पहुंचे?
मैं बताता हूँ - अभी गेट से बाहर निकल
ही रहा हूँ।
एक और आदेश थमाया जाता है - तकलीफ तो
होगी, ज़रा वापिस जा कर अपना लैपटॉप लेते आओ।
वजह मत पूछना प्लीज़।
मैं पूछना चाहता हूँ - ये सब क्या हो रहा है, लेकिन उन्होंने इतने
प्यार से कहा है कि कुछ कहते नहीं बना। वापिस जा
कर लैपटॉप लेकर आता हूँ।
घर से निकालने में ही दस मिनट हो गए हैं। सुबह हर
मिनट के बढ़ने के साथ पर ट्रैफिक दुगना होता चलता है। सुबह का
ट्रैफिक कभी वक्त पर कहीं पहुंचने
नहीं देता। मेरी किस्मत
अच्छी है कि बहुत ज्यादा ट्रैफिक नहीं
है। घड़ी देखता हूं - सात पचपन। इसका मतलब
अंजलि ने सुबह 6 बजे या उससे भी पहले
की फ्लाइट ली होगी। लेकिन वे
तो मेरठ रहती हैं। इसका मतलब कल रात से सफ़र में
होंगी या रात को ही दिल्ली आ
गयी होंगी।
मेरी फेसबुक फ्रेंड हैं अंजलि। उनसे
पहली बार मिल रहा हूँ। उनकी
तस्वीर भी नहीं
देखी है। पहचानूंगा कैसे। सारा झगड़ा ही तो
फेसबुक पर तस्वीर लगाने को हुआ था और इस
चक्कर में हममें महीने भर से अबोला चल रहा था।
जाने दो। वे खुद ही पहचानेंगी मुझे।
अभी एयरपोर्ट पहुंचने ही वाला हूं कि
उनका मैसेज आ गया है - वेटिंग नीयर
डीकोस्टा कॉफी शॉप। मैं मुस्कुराता हूं।
पहचानने की समस्या उन्होंने खुद ही
सुलझा दी है। गाड़ी धीरे-
धीरे अराइवल गेट के पास बने कॉफी शॉप
की तरफ ले जाता हूँ। दूर से ही नज़र आ
गयी हैं। बेहद खूबसूरत।
नीली टी-शर्ट
नीली और ब्लैक ट्राउज़र में। वे
ही होंगी। उनके पास गाड़ी
रोकता हूं। वे मुझे देखते ही हाथ हिलाती
हैं। गाड़ी बंद करता हूँ और उनकी तरफ
बढ़ता हूं।
वे तपाक से मेरी तरफ बढ़ती हैं। हंसते
हुए कहती हैं - वाव, डैशिंग। और उन्होंने मुझे हौले
से हग किया है। मैं मुस्कुरा कर उनके दोनों हाथ दबाता हूं - वेलकम
अंजलि। वे हंसते हुए मेरे हाथ देर तक थामे रहती
हैं। मैं इस रस्म अदायगी के बाद उनका बैग
डिकी में रखता हूँ और उनके लिए कार का दरवाजा
खोलता हूं। वे बैठती हैं।
मैं गाड़ी स्टार्ट करते समय पूछता हूं - अंजलि, माय
फेसबुक फ्रेंड नाउ टर्न्ड इनटू रीयल फ्रेंड।
बतायेंगी, हम कहां जा रहे हैं?
वे मुस्कुरा कर कहती हैं - हम सीधे
दमन जा रहे हैं। मैं एतराज़ कहना चाहता हूँ कि कल एक
मीटिंग है जिसमें मेरा रहना बेहद ज़रूरी है
लेकिन कुछ नहीं कहता। मीटिंग्स रोज़
चलती रहती हैं। मीटिंग में मेरे
न रहने से आसमान नहीं टूट पड़ेगा। किसी
भी मीटिंग से ज्यादा ज़रूरी तो
फेसबुक फ्रेंड से एक्चुअल मीटिंग है। इस
मीटिंग के बीच में कोई मीटिंग
नहीं आनी चाहिये। जवाब में मैं मुस्कुराता
हूँ।
कहता हूँ - जैसी आज्ञा महाराज।
वे मुस्कुराती हैं - अच्छे बच्चे की तरह
गाड़ी चलाइये।
जवाब में मैं मुस्कुराता हूँ। पूछता हूँ - अचानक इस तरह मुंबई में
सुबह-सुबह। अगर मैं न मिलता या शहर में न होता तो आप क्या
करतीं लेकिन वे मेरे किसी सवाल का जवाब
नहीं देतीं। वे गुनगुना रही हैं,
बाहर का नज़ारा देख रही हैं या अपने मोबाइल से खेल
रही हैं।
बात करने की नीयत से मैं पूछता हूँ -
ब्रेकफास्ट लिया है?
वे बताती हैं - नहीं, सिर्फ
कॉफी ली थी। ब्रेकफास्ट
आपके साथ ही लेना है। हाइवे पर कहीं
ढाबे पर करेंगे।
मैं पूछ ही लेता हूं - अचानक मुंबई आना और
एयरपोर्ट से ही दमन की तरफ चल देना।
कोई खास बात?
वे मुझे देखती हैं - कोई और बात करो। आप इस बारे में
मुझसे कोई सवाल नहीं पूछेंगे। बस ये जान
लीजिये कि इन तीन दिनों में आप मेरे
मेहमान हैं और मेहमान ज्यादा सवाल पूछते अच्छे
नहीं लगते। मैं मुस्कुराता हूं। कुछ नहीं
कहता। जानता हूं मेरे किसी भी सवाल का
जवाब ऐसे ही मिलना है। मुझे भी
जल्दबाजी नहीं करनी चाहिये।
हम तीन दिन एक साथ हैं ही। खुद
ही बतायेंगी। नहीं
भी बतायें तो मुझे क्या। मेरे साथ एक बेहद खूबसूरत
दोस्त हैं जो पहली बार मिल रही हैं और
अपने साथ तीन दिन दमन जैसी खूबसूरत
जगह पर बिताने का न्यौता दे रही हैं। सबसे बड़ा सच
तो यही है जो सामने है।
हम विरार पार चुके हैं। साढ़े नौ बज रहे हैं। हाइवे का ट्रैफिक दोनों
तरफ अपनी गति से चल रहा है।
तभी अंजलि ने मुझसे कहा है - मैं एक ऐसा काम करने
जा रही हूं जो मेरे जैसी शरीफ
लड़की को इस तरह से नहीं करना
चाहिये। आप थोड़ी देर के लिए मेरी तरफ
मत देखना और अपना सारा ध्यान ड्राइविंग पर लगाना। मैं इशारे से
कुछ पूछना चाहता हूँ लेकिन वे बनावटी गुस्से में
मेरी तरफ देखती हैं - मैं बहुत
अन्कम्फर्टेबल महसूस कर रही हूं। कुछ चेंज
करना है।
मैं फिर पूछना चाहता हूं, वे घुड़क देती हैं - कितने
सवाल पूछते हैं आप। मैं सॉरी कहता हूं अपना सारा
ध्यान ड्राइविंग पर लगाता हूँ। मैं कपड़ों की सरसराहट
महसूस कर रहा हूं। मैं चाहते हुए भी
उनकी तरफ नहीं देखता।
दो तीन मिनट बाद मैं महसूस करता हूँ कि उनका बैग
खुला है और कुछ रख कर बंद किया गया है। उनकी
खिलखिलाहट सुनायी दी है -
श्रीमान जी, अब आप इस तरफ देख
सकते हैं। मैं इशारों ही इशारों में पूछता हूँ - क्या किया
है। वे नकार देती हैं। मैं मुंह बिचकाता हूं - मत
बताओ। थोड़ी देर बाद वे खुद ही
बताती हैं – कुछ खास नहीं। सब
ऑनलाइन शॉपिंग की करामात है। कल ही
अंडरक्लोथ्स आये थे। चेक करने का मौका नहीं मिला।
सुबह साढ़े तीन बजे तैयार हो कर घर से
निकली थी और तब से सांस
अटकी हुई थी। अब जा कर उससे मुक्ति
पायी है तो जान में जान आयी है।
मैं हैरान होता हूं - तो अभी टी-शर्ट
भी उतारी थी क्या?
वे मासूमियत से जवाब देती हैं - आप बुद्धू हैं, उसके
बिना वो कैसे उतारती?
मैं बनावटी गुस्से से कहता हूं - कमाल
करती हैं आप भी। हाइवे पर
चलती गाड़ी में आगे की
सीट पर बैठे हुए इस तरह से ड्रेस चेंज करना। आप
कैसे कर पायीं?
वे हंसती हैं - वेरी सिंपल।
पहली बात, आपसे पूछ के किया। दूसरे,
हमारी गाड़ी इस समय कम से कम 100
की स्पीड से चल रही है।
किसी गाड़ी ने हमें ओवरटेक
नहीं किया और किसी ने नहीं
देखा। तीसरे, सामने से जो गाड़ियां आ रही
हैं, उनमें बैठे लोगों को सेकेंड का दसवाँ हिस्सा मिला होगा यह देखने
के लिए कि मैंने अपनी टी-शर्ट उतार कर
फिर पहनी है। वे गाड़ी वाले वापिस आ कर
एक्शन रिप्ले देखने से रहे। यहां मामला कब का निपट चुका है।
यहाँ तक कि आप जो कि मेरे पास इतने नजदीक बैठे
हैं, कहाँ देख पाए कि मैंने क्या किया है। मैं न बताती
तो...।
मैं हैरान होता हूँ कि मेरठ जैसे परंपरागत शहर में रहने
वाली अंजलि इतनी बोल्ड हो
सकती हैं। जानता हूँ मेरे अगले सवाल का जवाब
भी दुधारी तलवार की तरह
ही दिया जायेगा। बात खत्म हो जाने दे देता हूं।
तभी अंजलि ने मुझे गाड़ी किनारे करके
रोकने के लिए कहा है। मैं इशारे से पूछता हूँ - क्या है अब।
वे झिड़कती हैं - कहा ना, गाड़ी रोकें। मैंने
गाड़ी किनारे लगायी है। वे बाहर
निकली हैं। मुझे भी बाहर आने के लिए
कहा है। हम आमने सामने हैं। उन्होंने मुझे तपाक से गले लगाया
है। मैं इस अचानक प्यार भरे हमले से घबरा गया हूं। समझ
नहीं पा रहा हूँ ये क्या दीवानापन है। कुछ
तो सोचें, कहाँ क्या कर रही हैं, कहां कर
रही हैं और क्यों रही हैं। अजब
पागलपन है इस महिला में। सारे अंदाज़ निराले।
वे तर्क देती हैं - इतनी तेजी
से आती-जाती गाड़ियों में बैठे लोगों को क्या
परवाह और किसकी परवाह कि कौन क्या कर रहा है।
मेरा मन था कि जब हम मिलें, तपाक से गले मिल कर मिलें।
एयरपोर्ट पर हो नहीं पाया तो यहीं
सही। इस बार भी मेरे पास
उनकी बात का कोई जवाब नहीं।
तभी वे ड्राइविंग सीट की तरफ
बढ़ी हैं और मुझे पैसेंजर सीट पर बैठने
का इशारा किया है - तो ये चाल थी मदाम की
मुझसे ड्राइविंग सीट हथियाने की। वैसे
ही कह दिया होता। मना थोड़े ही करता।
वे बहुत संयम से गाड़ी चला रही हैं।
उन्होंने म्यूजिक ऑन किया है और फिर उसे एकदम
धीमे करते हुए कहना शुरू किया है - मुझे पता है इस
समय मुझे ले कर आपके मन में बहुत से सवाल जमा हो गए होंगे
और आप डर भी रहे होंगे कि मैं आपके अगले सवाल
का जवाब भी गोलमाल ही
दूंगी। क्यों है ना ऐसा? पूछा है उन्होंने।
मैंने इतनी देर में पहली बार
उनकी तरफ ध्यान से देखा है। वैसे भी
ड्राइविंग करते समय साथ वाले को इतने ध्यान से देखने का मौका
ही कहां मिल पाता है। बेहद खूबसूरत अंडाकार चेहरा।
कंधे तक लहराते खुले बाल, कंधे एक दम तने हुए जो आत्म
विश्वास से ही ऐसे हो सकते हैं। शानदार सुगठित
देहयष्ठि जिसे बार-बार मुड़ कर देखने को जी चाहे।
सही कहा गया है कि महिलाएं पुरुषों की
निगाहों के बारे में अतिरिक्त रूप से सजग होती हैं।
सामने सड़क पर देखते हुए भी उन्होंने इस तरह से
मेरा देखना ताड़ लिया है। झट से पूछ भी लिया है - क्या
देख रहे हैं इतनी देर से। आपकी
नीयत तो ठीक है जनाब।
मैं इतनी देर में पहली बार खुल के हंसा
हूं - मेरी नीयत को क्या होना
जी। हम तो आपके मेहमान ठहरे। जो भी
रूखा-सूखा मिलेगा, गुज़ारा कर लेंगे।
हंसी हैं अंजलि - बड़े आये रूखे सूखे खाने वाले। अब
सबसे पहले तो कहीं नाश्ते का इंतज़ाम किया जाये।
अभी उन्होंने कहा ही है कि
दूसरी तरफ वाली सड़क पर कई बार एंड
रेस्तरां के बोर्ड नज़र आने शुरू हो गये हैं। वे खुश हो
गयी हैं - लो जी बन गया आपका काम।
रूखे सूखे खाने वाले जी। और उन्होंने गाड़ी
यू ट्रेन करके एक अच्छे से बार एंड रेस्तरां के सामने
खड़ी कर दी है और मुझे इशारा किया है -
आइये मेहमान जी।
वे मेरा हाथ पकड़ कर अंदर जाने के लिए आगे बढ़ी हैं
तो मैंने कहा है - ये बार है। रेस्तरां साथ वाला है। वे बिना कुछ बोले
मुझे भीतर घसीट लायी हैं।
वेटर के आते ही उन्होंने बिना मीनू कार्ड
देखे स्ट्रांग बीयर का ऑर्डर दिया है और कहा है कि
नाश्ते में कुछ भी जो भी एकदम गर्म
और ताज़ा हो ले आओ। फटाफट। पहले एक बीयर
लाना।
मैं अंजलि के चेहरे की तरफ देख रहा हूं। किस
धरती की प्राणी हैं ये। कुछ
तो नार्मल भी करें। इतने बरसों से पीते
हुए मैंने कभी नाश्ते में बीयर
नहीं पी और ये मेरठ की
रानी तो मुझसे दस कदम आगे हैं। मैं उन्हें देख कर
मुस्कुरा रहा हूं। उन्होंने बीयर का गिलास उठाया है और
मुझे इशारा किया है - बीयर्स।
- सुनिये, वे जैसे मेहरबान हो गयी हैं - मैं आपको
सारी बातें बताऊंगी। जैसे-जैसे प्रसंग
आयेगा। अभी लखनऊ से आ रही हूं।
मेरठ से कल आ गयी थी। एरिया लेवल
की मीटिंग थी कल। आज
सुबह की गोवा की फ्लाइट थी।
एयरपोर्ट आकर पता चला कि गोवा की फ्लाइट कैंसिल
हो गयी है। दूसरी फ्लाइट शाम को
ही मिलेगी। मेरे पास तीन-चार
च्वाइस थे। पहला कि टिकट कैंसिल करा के मेरठ वापिस
जाती। दूसरी च्वाइस कि होटल वापस
जाती, दोबारा चेक इन करती, और शाम
की फ्लाइट लेती। उसका कोई मतलब
नहीं था क्योंकि गोवा में आज ही पूरे दिन
हमारी कंपनी का एनुअल डे फंक्शन चल
रहा है और शाम की फ्लाइट ले कर मैं डिनर के लिए
मुश्किल से पहुंच पाती।
तीसरी च्वाइस ये थी कि मैं
कोई भी फ्लाइट ले कर किसी
ऐसी जगह जाऊं मैं तीन दिन अपने
तरीके से, अपने खर्चे पर और अपनी
पसंद के किसी नये दोस्त के साथ गुज़ार सकूं। पता किया
तो मुंबई फ्लाइट तैयार थी। मैंने यही
ऑप्शन दिया और अब तुम्हारे सामने हूँ। वैसे मैं मुंबई होते हुए
भी गोवा जा सकती थी। लेकिन
तुमसे मिलना लिखा था मेरे हिस्से में तो तुम्हारे सामने हूं। अब इसमें
मैं क्या करूं कि सारे दोस्तों में सिर्फ तुम्हारा ही नम्बर
मेरे पास था। बाकी सब फेसबुक तक ही
सीमित हैं।
- मुझे पता है समीर, मेरे तौर तरीकों से
और मेरे खुलेपन से तुम्हें अजीब लग रहा होगा और
तकलीफ़ भी हो रही
होगी लेकिन सच बताऊं, ज़िंदगी में
पहली बार, शायद पहली बार
अपनी तरह से अपने तरीके से ये
तीन दिन गुज़़ारने वाली हूँ इसलिए
ज़रूरी लगा कि इस सब की शुरुआत ऐसे
तरीके से करूँ कि वापिस मुड़ कर देखने की,
याद करने की ज़रूरत न पड़े। और कोई अफसोस
भी न रहे।
- एक बात तुमसे और शेयर करती हूं और तुम्हें यह
जान कर खुशी होगी समीर कि
लगातार तीसरे बरस का कंपनी का बेस्ट
परफॉर्मर का एवार्ड तुम्हारी इस मित्र अंजलि को
ही मिला है और मैं यह एवार्ड लेने ही
गोवा जा रही थी। हंसी आ
रही है, पैसे मिलते गोवा में और मैं खर्च कर
रही हूँ दमन में। बस एक ही बात है,
बेशक समंदर वहां भी होता, तुम न होते।
अचानक अंजलि रुकी हैं - और फिर तुमसे अपने खराब
व्यवहार के लिए माफी भी तो
मांगनी थी।
- किस बात की माफी? मैं हैरान होता हूं।
- जिस बात के लिए हमारा अबोला हुआ था। फेसबुक पर प्रोफाइल
पिक्चर को ले कर।
- अरे वो तो मैं कब का भूल चुका।
- लेकिन मैं कैसे भूलती। बहुत खराब लग रहा था कि
मैंने ये क्या कर डाला है लेकिन कोई तरीका
नहीं मिल रहा था पैच अप का। आज जब मुंबई
की फ्लाइट का मौका मिला तो मुझे लगा ये
सही मौका है।
मैं सिर्फ मुस्कुरा कर रह गया हूं। मामूली
सी बात थी। फेसबुक पर वैसे
भी किसी पोस्ट की उम्र कुछ
घंटे होती है और किसी मुद्दे
की उम्र बहुत हुआ तो दो दिन। बात इतनी
सी थी कि एक महीना पहले
मैंने अपनी फेसबुक वॉल पर लिखा था कि आज एक
दुर्घटना जैसी हो गयी। रोज़ाना पाँच-सात
मैत्री अनुरोध आते हैं। कई बार तो नर और
नारी का ही पता नहीं चल
पाता। तस्वीर की जगह फूल
पत्ती, भगवान या पाकिस्तानी नायिकाएं। कुछ
लोग हंसिका मोटवानी की
तस्वीर लगा कर उस पर अहसान कर देते हैं। ये
मैत्री प्रस्ताव किसी पार्टी के
बैनर वाला था। बिना जांच पड़ताल के दोस्त बनाने के दिन लद गये।
उनसे पहचान के लिए पूछा तो उन्होंने ताना मारा कि
आपकी फ्रेंड लिस्ट में कई ऐसे लोग शामिल हैं जिन्होंने
अपनी तस्वीर नहीं लगा
रखी है तो हमीं पे ये शर्त क्यों। बात
सही थी।
आगे लिखा था मैंने कि तब पहला काम यही किया कि
बिना प्रोफाइल पिक्चर के कई दोस्त विदा किये। इस अभियान में
परिचित लेकिन फूल पत्ती लगाये कई दोस्त
शहीद हो गए। अभी ये काम
बाकी है। वे दोस्त बेशक फेसबुक से विदा हुए, मेरे
जीवन में बने रहेंगे।
इसी चक्कर में मैंने अंजलि को भी
अनफ्रेंड कर दिया था। बेशक सिर्फ उन्हीं के
इनबॉक्स में लिखा था कि आपके गुलाब के फूल को भी
मेरी सूची से हटना पड़ना रहा है ताकि कोई
मुझे ये न कहे कि अनफ्रेंड करने में भी भेदभाव बरता
है। लिखा था मैंने कि आप मेरी दोस्त थीं,
हैं और बनी रहेंगी। अब तक वे
मेरी बेहतरीन फेसबुक फ्रेंड
थी। बेशक हमने कभी एक दूसरे के बारे
में न तो ज्यादा जानने और न ही बताने की
ज़रूरत ही नहीं समझी
थी। इतने दिनों में मैंने कभी
नहीं पूछा कि वे किस कंपनी में हैं और
क्या काम करती हैं।
हम बरस भर से फेसबुक मित्र थे और अक्सर चैट करते रहते
थे और एक दूसरे के सुख दुःख के बारे में पूछते रहते थे। हम
जब भी बात करते थे, दुनिया जहान की
बात करते थे। मेरी पोस्ट अंजलि बहुत ध्यान से
पढ़ती थीं और उस पर अक्सर चलने
वाली बहसों में हिस्सा लेती
थीं। हम दोनों ने कभी मोबाइल नम्बर
एक्सचेंज नहीं किये थे। इस मुद्दे के बाद पता
नहीं कहां से उन्होंने मेरा मोबाइल नम्बर खोजा था और
मेरी अच्छी खासी लानत
मलामत कर दी थी। मेरी एक
नहीं सुनी थी और दोबारा
भेजी गयी मेरी फ्रेंडशिप
की रिक्वेस्ट को भी ठुकरा दिया था।
सारा मामला वहीं खत्म हो गया था। मैंने एक
अच्छी दोस्त को खो दिया था। सम्पर्क का कोई ज़रिया
नहीं रह गया था। धीरे धीरे मैं
उनके बारे में भूल भी चुका था। और अब वे
ही दोस्त न केवल मेरे सामने बैठी हैं
बल्कि उस बात की भरपाई करने के लिए इतना शानदार
न्यौता ले कर आयी हैं।
नाश्ता करने के बाद जब हम बाहर निकले हैं तो हमें फिर से यू
टर्न ले कर गुजरात की तरफ जाने वाली
सड़क पर जाना है। पूछ ही लिया है उन्होंने कि ऐसा
क्यों है कि सारे बार सड़क के इस तरफ ही हैं।
मैंने बताया है - बहुत आसान सी बात है। ये सड़क
गुजरात की तरफ से आ रही है। गुजरात
ड्राइ स्टेट है। वहां से आने वाली गाड़ियों के ड्राइवर
और पैसेंजर जैसे सदियों से प्यासे होते हैं। ये सब इंतज़ाम उन
प्यासों की ज़रूरत के लिए है और हमारी
तरफ वाली सड़क चूंकि गुजरात जा रही है
तो ड्राइ स्टेट में पी कर जाने का रिस्क लेने वाले कम
होते हैं इसलिए उस तरफ बार भी नहीं
हैं।
अंजलि ने सलाम में हाथ उठाया है - मान गये उस्ताद।
बलिहारी है पीने वालों की।
गाड़ी अंजलि ही चला रही हैं।
मैं अचानक सोच पड़ गया हूं। अंजलि की तरफ देख
रहा हूं। लगातार तनाव में हूँ। मेरे साथ एक युवा, बिंदास और
अपनी तरह से भरपूर ज़िंदगी
जीने वाली महिला हैं जो तीन
दिन की छुट्टी मनाने के लिए अपने साथ
मुझे ले कर आयी हैं। हम बेशक फेसबुक पर एक
दूसरे को जानते रहे हैं लेकिन आज अचानक पहली
बार मिल रही हैं। महीने भर से चल रहे
अबोले को खत्म करने चली आयी है।
समझ नहीं आ रहा है कि अंजलि में क्या सोच कर
अपनी इस यादगार ट्रिप के लिए मुझे चुना है।
तीन घंटे पहले तय किया और बिना सोचे समझे
चली आयीं। मैं न मिलता या मुंबई में
ही न होता तो। ये तो और वो तो.........। तो.........।
एक साथ तीन दिन और तीन रात रहना।
जब नाश्ता ही बीयर से हो रहा है तो दमन
में तो वक्त बेवक्त चलेगी। पता नहीं
अंजलि जी के मन में क्या हो।
हम नानी दमन पहुंच गये हैं। कई बरस के बाद आ
रहा हूं तो पता नहीं इस बीच कौन-कौन से
नये होटल खुल गये हैं। चेक करने के लिए मोबाइल निकालता हूं
लेकिन अंजलि जैसे अपनी ही धुन में कार
चला रही हैं। कुछ ही देर में हम
जजीरा होटल की लॉबी में हैं।
कार वेलेट पार्किंग के हवाले करके हम रिसेप्शन पर आये हैं।
अंजलि ने मुझे बैठने के इशारा किया है।
पूछा है मैंने - इस होटल के बारे में कैसे पता था? पहले
कभी आयी हैं?
- जी नहीं, हम आज यहां
पहली बार आये हैं और तुमसे मिलने के बाद
तुम्हारी कार में बैठे हुए ही मैंने
ऑनलाइन बुकिंग की थी। मैंने राहत
की सांस ली है। अंजलि की
पसंद और सिस्टम से काम करने के लिए उनकी तरफ
तारीफ भरी निगाह से देखता हूं।
कमरे में ही जा कर पता चला है कि अंजलि में कमरा न
बुक कराके डीलक्स सुइट बुक कराया है। रूम सर्विस
स्टाफ के जाते ही अंजलि में फिर से मुझे हग किया है
और मेरे गाल चुटकियों में भरते हुए कहा है - ये पोर्शन मेरा और
मास्टर बेडरूम आपका ताकि हम पास रहते हुए भी दूर
रहें और दूर रहते हुए भी पास रहें।
मैं भोलेपन से पूछता हूं - जरा समझायेंगी इस दूर पास
का मतलब?
- सिंपल। अगर तुम कमज़ोर पड़ गये तो मैं तुम्हें
संभालूंगी और कमज़ोर नहीं पड़ने
दूंगी और अगर कहीं मैं कमज़ोर पड़
गयी तो तुम मुझे संभाल लेना।
तभी मैंने अंजलि को दोनों कंधों से थामा है और
उनकी आंखों में आंखें डाल कर पूछा है- और अगर
हम दोनों ही कमज़ोर पड़ गये तो?
अंजलि ने जवाब में मेरे कंधे दबाये हैं - मर्द हो ना, कमज़ोर होने
की ही बात करोगे। ये क्यों
नहीं कहते कि हम दोनों ही मज़बूत बने
रहे तो कितनी बड़ी बात होगी।
वे मेरा हाथ थामे मुझे सोफे तक लायी हैं। हम बैठ गये
हैं। मेरे हाथ अभी भी उनके हाथों में हैं।
वे मेरी आंखों में आंखें डाल कर कह रही
हैं - समीर, मैं यहां कमज़ोर हो कर या कमज़ोर होने
नहीं आयी हूं। मेरी
पूरी फ्रेंडलिस्ट में अकेले तुम्हीं रहे
जिसने कभी भी कोई लिमिट क्रास
नहीं की वरना इस प्लेटफार्म पर ऐसे लोग
भी भरे पड़े हैं जिनका बस चले तो फेसबुक पर
ही पहले अपने और फिर सामने वाले के कपड़े उतारने
में एक मिनट की देरी न करें। वे
रुकी हैं। मैं उनके चेहरे की तरफ देख
रहा हूं।
कहता हूं - कहती चलें।
वे आगे कह रही हैं - बस मुझे और कुछ
नहीं कहना। आओ देखें खिड़की से
समंदर का नज़ारा कैसा दिखता है। हमें आये हुए इतनी
देर हो गयी और अब तक हमने समंदर से मुलाकात
नहीं की।
तभी दरवाजे पर नॉक हुई है। दरवाजा खोलता हूं।
तीन वेटर हैं। ढेर सारा सामान लिये। फ्रूट, बिस्किट,
चॉकलेट्स, कुकीज और दो वाइन बॉटल्स। एक आइस
बकेट में और एक रूम टेम्परेचर पर। होटल की तरफ
से कम्पलीमेंटरी। बॉटल्स देखते
ही अंजलि ने मुझे आँख मारी है।
हम दोनों कमरा देखते हैं। दो तरफ की
दीवार पर पूरी खिड़की है।
सामने हरहराता समंदर देख कर अंजलि की
खुशी के मारे उनकी चीख
निकल गयी है। सामने ठाठें मारता अनंत जल विस्तार
है। होटल के गार्डन की दीवार से
टकराती ऊंची ऊंची लहरें। हाइ
टाइड होना चाहिये। अंजलि ने एक बार फिर मुझे अपने से सटा लिया
है - हम कितने सही वक्त पर आये हैं ना। हाइ टाइड
हमारी अगवानी कर रही है -
लेट्स सेलिब्रेट।
और बिना एक पल भी गंवाये वे वाइन के गिलास भर
लायी हैं।
वे खिड़की के सामने से एक पल के लिए
भी नहीं हटना चाहतीं। समंदर
को इतना पास और इतना खुश देख कर छोटी
बच्ची बन गयी हैं। फटाफट वाइन खत्म
की है। अब वे हड़बड़ाने लगी हैं – चलो,
चलो जल्दी करो। अब नीचे चलते हैं।
बाकी बातें बाद में।
वे पूछ रही हैं - स्विमिंग कॉस्टयूम लाये हैं ना?
मैं झल्लाता हूं - अंजलि जी, कपड़े रखने के लिए
कहते समय आपने कहां कहा था कि हम कहां जा रहे हैं। लेकिन
डोंट वरी। आप वाशरूम में जा कर चेंज करो। मैं हंसता
हूं - मर्दों के लिए स्विमिंग कॉस्टयूम कहां होते हैं।
वे अपना कास्ट्यूम पहन कर उस पर बाथ रोब डाल कर तैयार हैं।
वे छोटी बच्ची जैसी चपल हो
रही हैं समंदर से मिलने जाने के लिए।
अंजलि ने बहुत एन्जाय किया है। दो घंटे हो गये हैं,
पानी से बाहर आने का उनका मन ही
नहीं है। उजला फेनिल जल जब वापिस लौटने लगा है
तब भी वे वहीं रहना चाहती
हैं। मेरा हाथ थाम कर वे पानी से खूब अठखेलियां कर
रही हैं। मेरे लिए भी आज का अनुभव
एकदम नया और दिल के बेहद करीब है। हम दोनों
पानी में जितनी मस्ती रहे हैं,
लगता ही नहीं कि हम आज चार घंटे
पहले ही ज़िंदगी में पहली बार
मिले हैं।
हमने तय किया है कि खाना भी वहीं
समंदर के किनारे गार्डन में ही खा लेंगे। नहाने
की बाद में सोची जायेगी। बस
एक बार दोनों ही फ्रेश वाटर का शावर ले कर आ गये
हैं। हम दोनों अभी भी बाथ रोब में
ही हैं। बाथरूम में शावर ले कर आते समय अंजलि
बेहद खुश लग रही हैं। उनका चेहरा धूप से,
नमकीन पानी की दमक से
और यहां आने की, समंदर में नहाने की
खुशी के मिले-जुले असर से इंद्रधनुष हो रहा है। इस
बार मैं पहल करता हूं और दिन दहाड़े, सबके सामने और अरब
महासागर को साक्षी बनाते हुए उन्हें गले से लगा लिया
है मैंने। उनके गाल चूम लिये हैं। मन को तसल्ली दे
लेता हूं कि इतने भर से हम दोनों कमज़ोर नहीं हो
जायेंगे। वे इतरायी हैं। मेरी
छाती पर मुक्का मारते हुए बोली हैं - यू
नॉटी बाय।
लंच में अंजलि ने फिर से बीयर का ऑर्डर दिया है।
जानता हूं, जब तक यहां हूं, पीने और समंदर से
मुलाकातें करने का कोई हिसाब नहीं रखा जायेगा।
जब हम कमरे में आये हैं तो दोपहर के चार बजे हैं। बाथ लेने
और चेंज करने के बाद मैं अंजलि से कहता हूं कि वे बेडरूम में सो
जायें। इससे पहले कि वे अपना इरादा मुझ पर लादें, मैं पहले वाले
रूम में सोफा कम बेड पर पसर गया हूं। लेकिन अंजलि ने
मेरी एक नहीं मानी है और
मेरा हाथ पकड़ कर मुझे बेडरूम में ले आयी हैं और
बिस्तर पर धकेल दिया है - मिस्टर गेस्ट, ये आपके लिए है। मैं
बाहर लेट रही हूं। और वे बाहर वाले कमरे में
चली गयी हैं।
अचानक कुछ सरसराहट से मेरी नींद
खुली है। देखता हूं अंजलि डबल बेड पर एकदम मेरे
पास अधलेटी लैपटॉप में तस्वीरें देख
रही हैं। कमरे में बत्तियां जल रही हैं।
टाइम देखता हूं - आठ बजे हैं। मैं उठ बैठता हूं - तो इसका
मतलब मैं चार घंटे तक सोता ही रहा। मुझे जागा देख
कर अंजलि मुस्कुरायी हैं और मेरे हाथ पर हाथ रख
कर बेहद प्यार से पूछती हैं - चाय या
कॉफी? यहीं बनाऊं या रूम सर्विस से
मंगाऊं?
- आपको कौन सी पसंद है? मैं पूछता हूं।
- देखो समीर, ये हो क्या रहा है। मैं सुबह से तुम्हें
तुम कह रही हूं और तुम आप आप की
रट लगाये हुए हो। हम इतने फार्मल नहीं रहे हैं
दोस्त। मुझे नाम से पुकारो। अच्छा लगेगा।
मैं अचकचाया हूं – नहीं, वो क्या है अंजलि कि
आपकी पर्सनैलिटी के साथ तुम शब्द फिट
ही नहीं हो रहा। सुबह से कहना चाह
रहा हूं लेकिन हर बार ज़बान तक आते-आते तुम अपने आप आप
में बदल जाता है।
- ओके नो प्रॉब्लम। हम तुम्हारी मदद करते हैं।
उन्होंने मेरा हाथ थामा है और कह रही हैं, मेरे साथ-
साथ बोलो - अंजलि, चाय की तलब लगी है,
चाय पिलाओ ना।
मैं हंसता हूं। अंजलि को छू कर पूछता हूं - अंजलि,
तेरी चाय पीने की इच्छा है
क्या, बोल, कौन-सी वाली
पीयेगी। और ये कहते हुए मैं सचमुच
चाय बनाने के लिए उठ खड़ा हुआ हूं।
मेरी इस हरकत से अंजलि बहुत खुश हो
गयी हैं - चल समीर, आज
की पहली चाय तेरी पसंद
की।
अंजलि अभी भी लैपटॉप में
उलझी हैं। अपनी चाय ले कर मैं
भी अंजलि के पास सरक आया हूं और
तस्वीरें देखने लगा हूं। वे पिकासा में
तस्वीरें देख रही हैं। स्लाइड शो चल रहा
है। वे लैपटॉप मेरी तरफ मोड़ देती हैं।
तस्वीरें कुछ जानी पहचानी
लग रही हैं। ध्यान से देखता हूं - अरे ये तो
मेरी ही तस्वीरें हैं। अब मैं
लैपटॉप को ध्यान से देखता हूं। ये मेरा ही तो लैपटॉप
है।
अंजलि हंसती हैं - समीर, मैं 6 बजे
ही जाग गयी थी। तुम
गहरी नींद में थे। कुछ सूझा
ही नहीं कि क्या करूं। पहले
खिड़की के पास खड़ी रही।
समंदर लो टाइड के कारण बहुत पीछे चल गया था।
अच्छा नहीं लगा। फिर याद आया कि तुम्हें लैपटॉप लाने
के लिए कहा था। बाकी सामान के साथ लैपटॉप
भी कमरे में आ गया था। खोला तो पासवर्ड
नहीं था।
- हमम, अकेले रहने वाले किसके लिए पासवर्ड रखेंगे। कौन से
मुझे इस लैपटॉप से स्विस बैंक के खाते मैनेज करने हैं।
- हां ये तो है। मैंने इस बीच तुम्हारे म्यूजिक का,
फिल्मों का और पिक्चर्स का सारा कलेक्शन देख लिया। म्यूजिक का
कलेक्शन तुम्हारा बहुत अच्छा है। मैंने मार्क कर लिया है कि
कौन-कौन सा लेना है। कुछ फिल्में भी। बेशक देखने
सुनने का समय न मिल पाये लेकिन अहसास रहेगा कि तुमसे लिया है
और मेरे पास है। ये कहते हुए अंजलि ने अपने पास
ही मेरे लिए दो तीन तकिये रख दिये हैं।
आओ समीर, अब जरा बताते चलो अपनी
कहानी तस्वीरों की
ज़ुबानी।
मैं भी बेड की टेक लगा कर लैपटॉप के
सामने हो गया हूं। हम दोनों बेहद नज़दीक हैं। इतने
कि एक दूसरे की सांसों की आवाज़ तक
सुनायी दे। उनके खुले बालों से तो महक आ
ही रही है, उनके बदन से
उठती खुशबू की अनदेखी
नहीं कर सकता। किसी तरह खुद पर
कंट्रोल करके हर तस्वीर के बारे में उन्हें बता रहा
हूं। एक अच्छी बात ये हो गयी है कि
उन्होंने लगभग सारी तस्वीरें पहले से
देख रखी हैं। पिकासा में हर फोल्डर पर नाम लिखा है
और फोटो लेने या सेव करने का महीना और वर्ष लिखा
है।
वे पूरी लगन से तस्वीरों में
खोयी हुई हैं और मुझे उनके बदन की
नज़दीकी परेशान कर रही है।
अधलेटे होने की वजह से उनके कपड़े अस्त व्यस्त
हो रहे हैं जिनके कारण खुद पर कंट्रोल करना मेरे लिए मुश्किल
होता जा रहा है। मेरी कोई भी हरकत इस
बेहतरीन रिश्ते को खत्म कर सकती है।
मेरी ज़रा-सी जल्दबाजी
मेरी सारी इज्ज़त मिट्टी में
मिला देगी। नहीं, कमज़ोर नहीं
पड़ना है। उठ कर पानी पीता हूं। बाथरूम
जाता हूं। हाथ मुंह धो कर कुछ हालत संभली है।
घड़ी देखता हूं। पौने दस।
अंजलि से कहता हूं - क्या ख्याल है अंजलि, काफी
आराम कर लिया है हमने। नीचे चलें क्या?
हां चलते हैं। बस एक मिनट।
मैं चेंज करने के बाद पहले वाले पोर्शन में चला आया हूं ताकि
अंजलि तैयार हो सकें।
अंजलि तैयार हो कर आ गयी हैं। मैं देखता हूं अब
उन्होंने बेहद ही खूबसूरत डिज़ाइनर टॉप और उतना
ही खूबसूरत रैप अप डाला है। बेहद हलका मेकअप।
मैं उनकी तरफ तारीफ भरी
निगाह से देखता हूं तो उन्होंने मुस्कुरा कर नज़ाकत से अपना हाथ
मेरी तरफ बढ़ा दिया है। हाथ चूमने के लिए। मैंने उनका
हाथ चूमा है।
हम दोनों नीचे आ गये हैं। अंजलि ने मेरा हाथ थामा
हुआ है। स्टाफ मुस्कुरा कर हमारा स्वागत करते हैं। हम चलते
हुए गार्डन से होते हुए बीच की तरफ
आ गये हैं। वीक डे होने के कारण बहुत ज्यादा लोग
नहीं हैं। समंदर अपनी पूरी
मस्ती में है। दो तीन घंटे बाद फिर हाइ
टाइड होगी और फिर समंदर पूरे उफान पर होगा।
पूछा है अंजलि ने - क्या ख्याल है, बार में बैठें, गार्डन में या
सीधे ही रेत पर?
मैंने हंस कर कहा है - बार और गार्डन बार तुम्हारे शहर में
भी होंगे और मेरे शहर में भी हैं। रेत पर
बैठ कर ही हम शाम गुजारें तो कैसा रहे। बेशक हवा
चल रही है। समंदर के किनारे बितायी
गयी शाम हमेशा याद रहेगी।
इतने में रेस्तरां मैनेजर ने आकर सलाम किया है। अंजलि से उससे
ही पूछा है - अगर हम रेत पर ही बैठें तो
खाने पीने का इंतजाम हो जायेगा क्या?
उसने मुस्कुरा कर कहा है - श्योर मैडम। हम आपके लिए रेत पर
ही आराम कुर्सियां लगा देते हैं। पीने का
और खाने का इंतज़ाम हो जायेगा। हम आपके लिए फुट रेस्ट
भी ले आयेंगे ताकि जब हाइ टाइड आये तो
भी आप वहीं बैठे एन्जाय कर सके। दैट
विल दी रीयल फन। बस दो मिनट आप
दीजिये, मैं सारा इंतज़ाम कर दूंगा।
वह रुका है - बाय द वे, आज की शाम आप कैसे
सेलिब्रेट करना चाहेंगे?
अंजलि ने मेरी तरफ देखा है। मैंने बताया है आप दिन
में दो बीयर और हाफ वाइन पी
चुकी हैं।
- शट अप। ये शट अप मेरे लिए है।
रेस्तरां मैनेजर से उन्होंने कहा है कि हम आज स्कॉच लेंगे।
ग्लेनलिवेट है ना आपके पास?
- यस मैम। वी हैव दिस ब्रैंड।
- तो फिर आप तैयारी कीजिये, हम पाँच
मिनट में टहल कर आते हैं।
मैं हैरान हूं। विश्वास नहीं हो रहा कि अंजलि मेरठ
जैसे कस्बायी शहर से आयी हैं। रहा
नहीं जाता, पूछ ही लेता हूं - यार, गज़ब
है तुम्हारी नॉलेज। तुम्हें ये भी पता है
कि होटल के स्टॉक में कौन सी इम्पोर्टेड स्कॉच है।
पहले सबसे अच्छा होटल ऑनलाइन बुक कराया, अब उनके बार
की भी पूरी खबर....।
- यार, निरे बुद्धू हो तुम। तुम जब सो रहे थे तो मैंने अपना सुइट
ध्यान से देखा था। वहां एक मिनी बार भी
है। वहीं रखी देखी
थी मैंने ये स्कॉच और दूसरी कई वाइन
बॉटल्स। फ्रिज भी भरा पड़ा था। जब सामने है तो चख
कर देख भी ली जाये। फिर ये शाम कहां
और हम तुम कहां?
हम रेत पर नंगे पाँव टहल रहे हैं। कुल मिला कर
बीच पर अँधेरा ही है। एक तरफ समंदर
है और दूसरी तरफ होटलों की कतार।
वहीं से जो रौशनी आ रही है,
उसमें पानी पर रौशनी के कतरे
अपनी चित्रकारी कर रहे हैं। बेहद
रोमांटिक माहौल। मैं माहौल की तारीफ करना
चाहता हूं लेकिन चुप हूं। जानता हूं कुछ भी कहूंगा तो
अंजलि अभी ग्यारह टन का कोई बम मेरे सिर पर दे
मारेंगी। मेरी उंगलियां अभी
भी उनके हाथ में हैं।
समंदर के किनारे हम दोनों के लिए महफिल सजा दी
गयी है। चारों तरफ के घने अंधेरे का मुकाबला करने के
लिए एक चिमनी में मोमबत्ती जला
दी गयी है। हजारों मील लम्बे
समंदर के आँगन वाला हमारा कैंडिल लाइट बार तैयार है।
बेहद पुरसुकून शाम है ये। पीछे कहीं
बजता मध्यम संगीत, सामने पानी में
पीछे जलती रौशनियों की
झिलमिलाती परछाइयां। अब पानी सरकते
सरकते हमारे नज़दीक आने लगा है। अंजलि और मैं
जैसे किसी ट्रांस में हैं। सूझ ही
नहीं रहा कि इस पूरे माहौल को पूरी तरह
से अपने भीतर कैसे उतारें। अंजलि ने
अपनी कुर्सी खिसका कर मेरे
करीब कर ली है ताकि फुसफुसा कर
भी बात की जा सके।
ये शाम मेरी ज़िंदगी की सबसे
हसीन शाम है। स्कॉच अपना रंग दिखा
रही है और इस रोमांटिक माहौल का नशा उस स्कॉच के
नशे में जैसे घुल रहा है। हवा में खुनकी बढ़
गयी है और एक वेटर अंजलि को शॉल ओढ़ा गया है।
मैंने अंजलि का हाथ थाम रखा है। उन्होंने कुछ नहीं
कहा है। हम दोनों ही एक दूसरी दुनिया में
हैं। हमने बहुत कम बातें की हैं। बस, एक दूसरे
की मौजूदगी को महसूस किया है। स्कॉच
थोड़ी सी ही बची
है और खाना लगा दिया गया है। मैंने बहुत कम खाया है। ऐसे माहौल
में खाना खाने की सुध ही किसे है। हम हैं
और हमारी तरफ हाथ बढ़ाती अनगिनत
लहरें हैं जो हर बार और नज़दीक आकर हमारे पाँव
थपथपा रही हैं, मानो कह रही हों, इट्स
वंस इन लाइफ एक्सपीरिंयस। बाट्म्स अप एंड एन्जाय
अपटू द लास्ट ड्राप।
रात के साढ़े बारह बज चुके हैं। थोड़ी देर में लहरें
अपना सर उठाने लगेंगी और हमें या तो उनके लिए
जगह खाली करनी होगी या
फिर ...।
अचानक अंजलि उठी हैं। ये मैं क्या देख रहा हूं।
अंजलि ने कैंडल बुझा दी है। अब तब जो
थोड़ी बहुत रौशनी थी, वह
भी दम तोड़ गयी है। हम जहां पर बैठे
हैं, घुप्प अंधेरा हो गया है, फिर भी मैं अंदाजा लगा पा
रहा हूं कि अंजलि अपने कपड़े उतार रही हैं। इससे
पहले कि मैं कुछ समझ पाऊं या पूछ पाऊं, वे पूरी
तरह से न्यूड हो कर सामने समंदर में समा गयी हैं।
मैं थरथरा रहा हूं। ये मैं क्या देख रहा हूं। पानी में
अंजलि का होना मैं महसूस कर पा रहा हूं। उससे ज्यादा कुछ
नहीं। वे जैसे लहरों से मोर्चा ले रही हैं।
उठना चाहता हूं, सोचना चाहता हूं लेकिन दोनों ही काम
नहीं कर पाता। आंखें बंद कर लेता हूं। जैसे मैं एक
लम्बी दौड़ पूरी करके आया हूं और
कुर्सी पर निढाल पड़ गया हूं। उठने की
हिम्मत ही नहीं रही है।
पीछे मुड़ कर देखने की कोशिश करता हूं
कि होटल का कोई स्टाफ तो नहीं देख रहा लेकिन
नहीं देख पाता।
और कितने रंग दिखायेगी ये मायावी अंजलि।
सुबह से ही एक के बाद एक जादू दिखा
रही हैं। अभी तो दो दिन बाकी
हैं। अभी तो रात बाकी है। मेरे गले में जैसे
कांटे उग आये हैं। गिलास की सारी स्कॉच
एक ही घूँट में गले से नीचे उतारता हूं।
महसूस कर रहा हूं कि वे हर आती और
बड़ी होती जाती लहर से
टकराती हैं, गिरती हैं और फिर उठ
खड़ी होती हैं।
लगता है, अंजलि लौट आयी हैं और अब कपड़े पहन
रही हैं। मैंने आंखें बंद कर ली हैं।
मेरा कंधा थपथपाया है अंजलि ने - अब चलें। मैं जैसे सपने से जागा
हूं।
उठने की कोशिश करता हूं लेकिन आराम
कुर्सी से उठ नहीं पाता।
इतना याद है कि अंजलि ही सहारा दे कर मुझे कमरे
तक लायी थीं।
अचानक झटके से मेरी आँख खुली है।
सिर भारी है। पता नहीं कितने बजे हैं।
खिड़की की तरफ देखता हूं। समंदर शांत
है और दूर लंगर डाले या चल रहे जहाजों की पांत
नज़र आ रही है। मेरा पूरा शरीर तन रहा
है। याद करने की कोशिश करता हूं। सोने से पहले क्या
हुआ था और मैं कमरे में कैसे आया। इतना ही याद
आता है कि अंजलि मुझे सहारा दे कर कमरे तक लायी
थी। अंजलि.. अंजलि.. धीरे
धीरे सारी इमेजेज सामने आ
रही है। सौ की रफ्तार से नेशनल हाइवे
पर चल रही कार में फ्रंट सीट पर बैठ
कर टी शर्ट उतार कर ब्रा उतारना और दोबारा
टी शर्ट पहनना, हाइवे पर गाड़ी रोक कर
मुझे गले लगाना और अंधाधुंध चूमना, नाश्ते में बीयर लेना
और फिर सौ की स्पीड से गाड़ी
चलाना, और सुनसान बीच पर रात के अंधेरे में
पूरी तरह न्यूड हो कर हरहराते समंदर से मिलने
जाना। बेहद खूबसूरत हैं अंजलि। लैपटॉप पर तस्वीरें
देखते हुए उनका मेरे बेहद नजदीक होना। कपड़े
अस्त व्यस्त हो जाने के कारण उनके खूबसूरत और
गठी हुई देह की झलक मिलना।
मुझसे मिलने, मेरे साथ हॉलीडे मनाने इतनी
दूर से आयी हैं अंजलि। यू आर... यू आर ग्रेट
अंजलि। आइ लव यू अंजलि.. लव यू .. आइ नीड यू
अंजलि.. अंजलि आइ नीड यू..। मेरी शिरायें
तन रही हैं। उठ बैठता हूं। पानी
पीता हूं। अंजलि मैं कमज़ोर नहीं पड़ना
चाहता लेकिन इतना मज़बूत भी नहीं हूं कि
इतने खुले इन्वीटेशन को ठुकरा दूं। अंजलि.. मुझे
समझने की कोशिश करना। मैं तो आपको समझ
नहीं पाया। उठ कर अंजलि के कमरे में जाता हूं। नाइट
लैम्प की हल्की रौशनी है।
वे करवट ले कर सोयी हुई हैं। पता नहीं
मैं नशे में हूं इसलिए वे ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं या
वे खुद नशे में हैं इसलिए ज्यादा खूबसूरत लग रही हैं
या दोनों का नशा। समंदर में उतरती उनकी
नग्न काया मैंने अभी थोड़ी देर पहले
ही तो इतने पास से देखी है.. महसूस
की है। अब मेरे सामने हैं अंजलि। मैं तुम्हारे बिना
नहीं रह सकता अंजलि। तुम मुझे जिस मोड़ पर ले कर
आयी हो, वहां से मैं खाली हाथ
नहीं लौट सकता। मैं जल रहा हूं। मैं पिघल रहा हूं। मैं
मर जाऊंगा।
एक झटका लगा है। मैं ये क्या कर रहा हूं। ये गलत है। कमज़ोर
नहीं होना। वादा किया है अंजलि से। लेकिन अंजलि तुम
खुद ही तो मुझे कमज़ोर करने के लिए एक के बाद
एक जादू दिखा रही हो। क्या करूं मैं .. । जो होता है
होने दो। देखा जायेगा।
मैं अंजलि के बेड के पास जमीन पर बैठ गया हूं।
उनकी तरफ हाथ बढ़ाता हूं। इससे पहले कि मैं उन्हें
छू पाऊं, अंजलि उठी हैं। मुझे सहारा दे कर उठाया है
और मेरा हाथ थामे हुए बिना एक भी शब्द बोले मुझे
मेरे बिस्तर तक ला कर लिटा दिया है। थोड़ी देर तक मैं
अपने माथे पर उनके हाथ का नरम स्पर्श महसूस करता हूं।
और धीरे धीरे... नींद के
आगोश में..।
सुबह अंजलि ने ही जगाया है। चाय के लिए। मैं अंजलि
की तरफ देखता हूं। वे भेद भरी
मुस्कुराहट के साथ गुड मार्निंग कहती हैं। मैं वाशरूम
हो कर आता हूं। खिड़की के पास वाले सोफे पर
बैठी हैं अंजलि।
वे चाय का प्याला मेरी तरफ बढ़ाते हुए
पूछती हैं - रात कैसी कटी
बाबू?
उनके संबोधन से मुझे रात की हरकत याद
आती है। मैंने सिर झुका लिया है। क्या कर बैठा था मैं
कल रात नशे की झोंक में।
- कोई बात नहीं, हो जाता है। मैंने कहा था ना कि तुम्हें
कमज़ोर नहीं पड़ने दूंगी।
मैं अंजलि से नज़र ही नहीं मिला पा रहा
हूं। किसी प्रिय की निगाहों में गिरना और
खुद की निगाहों में गिरना - दोनों चीज़ें मेरे
साथ एक साथ हो रही हैं। मैं उनकी
आंखों में शरारत देख रहा हूं। खुद पर गुस्सा आ रहा है, मैं ऐसा
क्यों कर गया।
वे पूछती हैं - और चाय लोगे?
उनके सामने से हटने का यही तरीका है
कि अब चाय मैं बनाऊं वरना उनके सामने बैठा रहा तो झुलस जाऊंगा।
मैं चाय बनाने के लिए उठता हूं। अंजलि कह रही हैं -
ब्रेकफास्ट के बाद ज़रा घूमने चलेंगे। वैसे भी अरब
महासागर महाराज अभी आराम फरमा रहे हैं।
मुझे अच्छा लगा है कि अंजलि ने खुद ही टॉपिक बदल
दिया है।
मैं चाय ले कर आया हूं। अब हम एक दूसरे के ठीक
सामने बैठे हैं। एक ही तरीका है रात
की बात हमेशा के लिए खत्म करने का कि मैं खुद
ही रात की बात करूं और मामला रफा दफा
करूं।
- रात कुछ ज्यादा ही हो गयी
थी मुझे। यही तरीका है कि मैं
अपनी हरकत के लिए उनकी शराब और
उनके ओपन इन्वीटेशन को ही
दोषी ठहरा दूं।
- बहुत ज्यादा तो नहीं जनाब बस इतनी कि
हम खुद आपके बराबर ही पीने के बाद
आपको सहारा देकर कमरे तक लाये थे, आपको आराम से सुलाया था।
लेकिन क्या कहें.. उन्होंने ठंडी सांस भरी
है - लेकिन क्या कहें आपके हसीन नशे का। उतरने
का नाम ही नहीं लेता था। पहले
आधी रात को आपको हमारे पास लाया, हमने दोबारा
आपको आपके बिस्तर पर लिटाया, आपके सो जाने के बाद हम वापिस
आये तो भी आपके नशे ने आपको सोने कहां दिया। आप
रात भर जागते रहे। कभी खिड़की पर खड़े
हो रहे हैं तो कभी बाथरूम जा रहे हैं।
कभी उठ रहे हैं तो कभी बैठ रहे हैं।
लगता है अंजलि मेरी धुलाई करके ही
छोड़ेगी। कहां तो मैंने टॉपिक बंद करने के लिहाज से शुरू
किया था और ये तो उसी के बखिये उधेड़ने
लगीं।
पूछता हूं - आपको कैसे पता?
- जनाब, हमें नहीं तो किसे पता होगा।
आपकी हरकतों न हमें भी
सारी रात जगाये रखा। उन्होंने जान बूझ कर
उबासी ली है और अपने मुंह के आगे
चुटकी बजायी है - हमें तो
अभी भी नींद आ
रही हैं।
मैंने कुढ़ कर कहा है - तो रोका किसने है। सो जाइये, वैसे
भी हमें कौन सा काम करना है।
वे चहकी हैं - इतना आसान है सोना?
कहीं आपके भीतर का शेर फिर जाग गया
तो?
मुझे कोई उत्तर नहीं सूझा है कि इस
तीखी बात का क्या जवाब दूं।
कहता हूं - शेर को अपना चौकीदार बनायेंगी
तो ये खतरे तो रहेंगे ही।
मेरा जवाब सुन कर वे तपाक से उठी हैं और
ताली बजा कर मेरी तरफ बढ़ी
हैं - क्या तीर मारा है मेरे शेर ने। खुश कर दित्ता। आ
तुझे गले से लगा लूं मेरे शेर और वे सचमुच मेरे गले से लिपट
गयी हैं। चलो इस बात पर एक और चाय हो जाये।
मुझे सुकून मिला है कि सारा मामला हैप्पी ऐंडिंग के साथ
निपट गया है।
तय करता हूं आज दिन भर नहीं पीऊंगा।
रात की रात को देखेंगे।
हम दिन भर खूब घूमे हैं। पैदल। एक एक दुकान में जा कर
झांकते रहे। अंजलि ने ढेर सारी चीज़ें
खरीदीं और सारी
चीज़ें आखिरी दुकान में दे दीं
कि होटल पहुंचवा दें।
खाना भी हमने एक सरदार जी के ढाबे में
खाया है। सबसे ज्यादा वक्त वहीं गुज़ारा। वहां
बिछी चारपाई पर पसरे रहे और अंजलि सरदार
जी से घर परिवार की बातें
करती रही। पता चला कि सरदार
जी की पचास बरस पहले
यहीं पर स्पेयर पार्ट्स की दुकान
थी। लेकिन जब देखा कि नार्थ इंडियंस यहां आकर खाने
के लिए बहुत परेशान होते हैं तो पंजाब से अपने एक परिचित कुक
को बुलवा कर ये ढाबा खोल लिया। अंजलि ने जब पूछा कि अपने घर
से इतनी दूर घर वालों की याद
नहीं आती तो बुजुर्ग सरदार
जी मुस्कुरा कर बोले - ना जी, रब्ब
की मेहर है। दमन और सिलवासा के ज्यादातर ढाबे मेरे
बच्चों और भाइयों के ही हैं। एक एक करके सबको
यहीं बुला लिया है। सुन कर हम खूब हंसे हैं। इसे
कहते हैं असली इंटरप्रेनुअरशिप।
हम चार बजे वापिस पहुंचे हैं। कमरे में आते ही
अंजलि पलंग पर पसर गयी हैं। उनका
खरीदा सारा सामान आ चुका है। मैं फ्रिज खोल कर
देखता हूं कि पीने के लिए नॉन एल्होकोलिक क्या रखा
है। मैं अपने लिए रेड बुल का कैन निकालता हूं। अंजलि से पूछता हूं
- लोगी? वे चिढ़ जाती हैं - क्या
लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हो। कुछ
बीयर शीयर हो तो दो। मैं उन्हें स्ट्रांग
बीयर का कैन थमाता हूं।
वे हंसती हैं। क्या ज़माना आ गया है। मर्द
लेडीज़ ड्रिंक पी रहे हैं और
लेडीज बेचारी... च्च्च..। मैं उन्हें आंखें
दिखाता हूं - बताऊं क्या?
वे हंसती हैं - क्या खा के और क्या पी के
बताओगे श्रीमन?
हम दोनों समंदर को निहार रहे हैं। हाइ टाइड आ कर जा
चुकी। लेकिन महासागर का विस्तार हमेशा बांधता
ही है। जितनी देर देखते रहो,
कभी ऐसा नहीं लगता कि हम और न
देखें। अंजलि गुनगुना रही हैं।
पूछती हैं - कुछ सुनोगे?
मैं कहता हूं - नेकी और पूछ पूछ। हम बहुत अच्छे
श्रोता हैं, बस हमें बदले में कोई गाने के लिए न कहे।
अंजलि सचमुच बहुत अच्छा गा रही हैं। बहुत सारे
ऐसे पुराने और बीते दिनों के गीत गाये हैं कि
मैं हैरान हूं कि ये सारे गीत अंजलि की
स्मृति का हिस्सा कब और कैसे बने होंगे। अंजलि तीस
बत्तीस बरस की, या बहुत हुआ तो
चौंतीस बरस की होंगी। लेकिन
वे जो गीत गा रही हैं, सब के सब छठे सा
सातवें दशक के हैं। उनके गीत सुनते सुनते कब शाम
ढल गयी, पता ही नहीं चला।
आज डिनर के लिए अंजलि ने लॉंग स्कर्ट पहना है। समझ सकता
हूं। वे घर से तो गोवा के लिए निकली थीं,
वहां के हिसाब से कपड़े रखे होंगे। गोवा तो गोवा में ही
रह गया, मंजिल दमन बन गयी।
हम गार्डन रेस्तरां में ही बैठे हैं। समंदर ज्यादा दूर
नहीं है। हाथ बढ़ा कर छू लो। अंजलि ड्रिंक्स के लिए
मीनू देख रही हैं। मैं उन्हें देख रहा हूं।
वे मीनू देखते हुए भी मेरा देखना ताड़
गयी हैं।
ड्रिंक्स के लिए ऑर्डर देने के बाद उन्होंने मेरी तरफ
देखा है - अब क्या है?
कुछ खास नहीं, बस एक रिक्वेस्ट है।
कह डालो।
कल रात की तरह समंदर से सीधे मुलाकात
करने आज मत जाना।
बस यही या और कुछ?
यही मान लो तो बंदा जनम जन्मांतर के लिए आभार
मानेगा।
तो श्रीमान आप इसके बदले मुझे कुछ कहने
की इजाज़त देंगे?
कहो ना।
इस तरह से मना करने की वजह? वैसे इस बात
की कोई गारंटी नहीं
दी जा सकती।
- मना करने की कोई खास वजह नहीं।
तुम्हें इस तरह से हाइ टाइड की लहरों में घुसते देख
कर डर गया था। कहीं कुछ हो न जाये।
- हां वैसे भी तुम इतने नशे में थे कि मुझे बचाने के
लिए पानी तक आने की सोच
भी नहीं सकते थे। कुर्सी से
उठ तक नहीं पाये। भूल गये कि कमरे तक
भी मैं ही लायी
थी।
मुझे अंजलि ने फिर मेरी ही बातों में फंसा
लिया है। कम्बख्त हर बात की काट है इनके पास।
क्या जवाब दूं।
अंजलि ने ही बात संभाली है - दरअसल
तुम अचानक सोच ही नहीं पाये थे कि मैं
कुछ ऐसा भी कर सकती हूं। सुबह से
एक के बाद एक झटके दे रही थी और ये
झटका तुम्हारे लिए इतना बड़ा था कि तुम्हारे होश ही
उड़ गये। एक परायी शादीशुदा और
पहली ही मुलाकात में क्या क्या खेल दिखा
रही है।
बात तो अंजलि सही ही कह
रही है। मैं सुबह से मिल रहे झटकों में
ही डूब उतरा रहा था और रात वाला झटका तो
मेरी नसों तक में उतर गया था।
मैंने अंजलि को मनाने की कोशिश की है -
अब रात गयी बात गयी। अपनी
बात पूरी करो ना।
- दरअसल मुझे समझ नहीं आ रहा कि शुरू से शुरू
करूं। अपनी बात आज से शुरू करके वहां तक पहुंचाऊं
जहां से ये दौड़ शुरू की थी या
पीछे से आज तक की यात्रा करूं। बात
लम्बी है और पूरी बात करने में समय
लगेगा।
- कहीं से भी शुरू करें, शाम
अपनी है।
- ओके, दरअसल मैंने तुम्हें अपने बारे में बहुत कम बताया है।
तुम्हें क्या, किसी को भी मेरे बारे में कुछ
भी नहीं पता। कल से तुम एक
चुलबुली, बेलौस, खिलंदड़ी और एक्स्ट्रा
मॉड लड़की से ही मिल रहे हो जो नेशनल
हाइ वे पर चलती गाड़ी में
अपनी ब्रा उतार सकती है, खूब
पीती है, बीयर के साथ
ब्रेकफास्ट करती है। फाइव स्टार होटल में ठहरते
हुए एक पराये मर्द के सामने समंदर में नंगे बदन उतर
जाती है और इसी तरह की
हरकतें करती रहती हैं और हां, अपने
फेसबुक फ्रेंड के साथ अपनी पहली
ही मुलाकात में यादगार हॉलीडे मनाने के लिए
दमन तक चली आती है और एक
ही कमरे में ठहरती है।
- हां जितना देखा और जाना है उससे तो यही इमेज
बनती है।
- तुम्हें पता है ना समीर कि मैं गोवा जाने
वाली थी। एक दिन हमारी
ऑफिशियल मीट रहती और दो दिन हमारे
मज़े मारने के लिए इंतज़ाम था। कम से कम 100 लोग होते वहां
लेकिन मैं अगली सुबह यानी
मीट के अगले दिन ही गायब हो जाने
वाली थी और सीधे कलंगूट
बीच पर पहुंच जाती। तुम जो जानते
ही हो कि कलंगूट बीच पर दुनिया भर से
आये लोग दिन रात बीच पर ही नंग धड़ंग
पड़े रहते हैं। मन होता है तो पानी में उतर जाते हैं
और फिर आ कर बीच पर लेट जाते हैं। मैं
भी यही करने वाली
थी लेकिन वहां नहीं जा पायी
और यहां आ गयी। जितना कर सकी, किया
और आज भी करती लेकिन अब तुमने
आज के लिए मना कर दिया तो यही सही।
आखिर मर्द जात हो ना, कैसे सहन कर पाते।
- कहती चलो।
- दरअसल ये एक तरीका होता है। नेचर से, प्रकृति से
सीधे इंटरेक्ट करने का। सीधे साक्षात्कार
करने का। प्रकृति को इन्वाइट करो कि वह पूरी शिद्दत
के साथ, पूरी खूबसूरती के साथ अपने सारे
कीमती उपहार आपको सौंपे। आपके पोर
पोर को निहाल कर दे। ये काम मैंने कई बार किये हैं
समीर। धूप के साथ, बरसात के साथ,
चाँदनी के साथ। मंद मंद बहती
ठंडी हवा के साथ। मैंने कई कई रातें झिलमिल तारों
की संगत में नंगे बदन गुजारी हैं।
- वाह। वो कैसे भला?
- अपने घर की छत पर। मैंने अपने घर
की एक छत ऐसी बनवा रखी
है जहां कोई नहीं झांक सकता। चारों तरफ के घरों से
सबसे ऊंची छत, जहां मैं होती हूं और
खुला आसमान होता है। मेरा रूफ गार्डन है। मेरी पसंद
के दुनिया भर के बेहतरीन फूलों का साथ होता है वहां।
ये आसमान मेरा अकेलेपन का बेहतरीन दोस्त है।
सर्दियों में वह मुझे भरपूर धूप का उपहार देता है, बरसात में पवित्र
जल का उपहार मुझे मिलता है और कई बार ऐसा भी
हुआ है कि मैंने चांदनी रात में पूरी
पूरी रात चाँदनी को अपने नंगे बदन का
स्पर्श करने दिया है। तब मैं होती हूं और मेरे ऊपर
खुला आसमान होता है। मैं बहुत लकी हूं कि मुझ पर
नेचर खुले हाथों अपना खजाना लुटाती है और जब मैं
छत से नीचे आती हूं तो पहले से और
अमीर हो जाती हूं।
- ग्रेट। लेकिन अंजलि, तुमने ये सब सीखा कहां से?
मेरठ जैसे शहर में मैं सोच भी नहीं
सकता कि तुम इतनी ऐय्याशी का
जीवन जी रही हो।
हमारे ड्रिंक्स आ गये हैं। आज अंजलि ने वोदका
मंगायी है। चीयर्स करते हुए अंजलि कह
रही है - अरे मुझे ये सब सीखने के लिए
कहीं नहीं जाना पड़ा। बस होता चला गया।
बेशक यहां तक की यात्रा बेहद मुश्किल और
इतनी तकलीफों से भरी
रही कि तुम सुनोगे तो दांतों तले उँगली दबा
लोगे।
- यात्रा के बारे में बाद में बताना, जो बता रही हो, ज्यादा
रूमानी है। वही बताती चलो।
- तो सुनो एक शब्द होता है सेल्फ एक्चुअलाइजेशन।
हिंदी में इसे पता नहीं क्या कहेंगे। लेकिन
मैंने अपने जीवन में इसकी
सारी अच्छी अच्छी बातों को
उतार लिया है। ये ही मेरी
जीवन शक्ति है। इस अकेले शब्द ने मेरी
ज़िंदगी बदल कर रख दी है। वरना मैं कहां
थी, ये सोच के ही मेरी रूह
कांप जाती है।
- मैंने इसके बारे में कभी गहराई से जानने
की कोशिश नहीं की। बेशक
तुम्हारी वॉल पर इस तरह की
चीजें अक्सर नज़र आती थीं
और हमेशा और ज्यादा जानने की इच्छा
रही। कभी हो नहीं पाया। देखो
आज कितना अच्छा मौका मिला है, तुम खुद बता रही
हो।
- ज्यादा चमचागिरी करने की ज़रूरत
नहीं। जो मिला है उससे ज्यादा कुछ मिलने वाला
नहीं और जो नहीं मिला है, वह मिलने
वाला नहीं। वे इतरायी हैं।
- अरे तुम तो बातों को फालतू में गलत मोड़ दे रही हो।
इस अरब महासागर की कसम खाता हूं कि
मेरी नीयत बिलकुल साफ है और अगले
कई दिन तक साफ ही रहने वाली है।
- बनो मत और बको मत। मेरे सामने जब पहली बार ये
शब्द आया तो मैं इसका मतलब नहीं
जानती थी। डिक्शनरी में
ज्यादा मदद नहीं मिली। तब घर पर
कम्प्यूटर या नेट नहीं था। ये शब्द था कि मेरा
पीछा ही नहीं छोड़ रहा था।
कुछ था इस शब्द में जो मुझे इन्वाइट कर रहा था। जानो मुझे।
आखिर मैं एक साइबर कैफे में गयी तो गूगल और
विकीपीडिया से इसके बारे में विस्तार से पता
चला। सब कुछ नोट किया, समझा और उस पर खूब मनन किया। फिर
तो जहां से भी इस शब्द के बारे में जो भी
मिला, उसे समझने की कोशिश की।
अंजलि बात करते करते जैसे अतीत में
चली गयी हैं - इस फिलासफी
की एक एक बात को अपने जीवन में
उतारने की कोशिश की और आज मैं जो
भी हूं, इस अकेले शब्द की माया
की वजह से हूं।
मैं हंसा हूं - थोड़ा सा गुरू ज्ञान इधर भी दें भगवन
ताकि हमारा जीवन भी संवर जाये। कब से
भटक रहे हैं।
- सेल्फ एक्चुअलाइजर वह व्यक्ति होता है जो अपने
जीवन को रचनात्मक तरीके से,
क्रिएटिवटी के साथ जीता है और
अपनी क्षमताओं का भरपूर इस्तेमाल कर बेहतर
तरीके से जीने की कोशिश
करता है। वह ऐसी सोच रखता है कि वह जो काम
कर सकता है, उसे ज़रूर करे।
- वेरी इंटरेस्टिंग। कहती चलो।
- इस बात की कई परतें हैं जो एक एक करके
खुलती हैं। मैं बहुत थोड़े शब्दों में
बताऊंगी। अंजलि ने वेटर को अपना गिलास भरने का
इशारा किया है। मैं हैरान हूं कि कल मैं जिस अंजलि का रूप देख रहा
था, उससे बिल्कुल अलग रूप में अंजलि मेरे सामने बैठी
शराब की चुस्कियां लेते हुए जीवन के गूढ़
रहस्यों पर इतने अधिकार के साथ बात कर रही है।
अंजलि ने बात आगे बढ़ायी है - ये मेरे इंटरप्रेटेशनंस
हैं। शब्दों का हेर फेर भी हो सकता है। मैंने जिस रूप
में समझा और अपने जीवन में ढाला, वही
बता रही हूं।
- मैं समझ रहा हूं।
- जैसे वास्तविकता को सही नज़रिये से समझना और
स्वीकार करना, अपने को, दूसरों को और सबसे
बड़ी बात प्रकृति को, नेचर को सहज भाव से
स्वीकार करना। जो जैसा है, उसे वैसे ही
स्वीकार करना। ये सबसे मुश्किल होता है लेकिन एक
बार सध जाये तो क्या कहने।
- वाह, क्या खूब। आगे।
- अपने अनुभव और जजमेंट पर भरोसा करना।
- हमम।
- जो करो सहज तरीके से करो और बिना आगा
पीछा सोचे हुए करो। जिसे स्पांटेनियस कहते हैं। खुद
के प्रति ईमानदार रहो।
- जैसे?
- साफ है कि जब हम किसी को धोखा देते हैं तो
दरअसल खुद को धोखा दे रहे होते हैं। हम वही करें
जो हमें रुचे। हम ये न देखें कि लोग क्या कहेंगे।
मैं हंसा हूं - मैं समझ रहा हूं। कल से देख ही रहा
हूं।
- जो भी करें, पूरे मन से और पूरी तरह
से डूब कर करें।
- हर हाल में अपने स्व को बचाये रखें, तारीफ में
कंजूसी न करें। जो भी संबंध बनायें इतने
गहरे हों कि बस। एकांत का मजा लेना सीखें। एकांत
बहुत सुकून देता है। आपमें गजब का सेंस ऑफ हयूमर होना
चाहिये। उससे किसी को हर्ट न करें। जो
भी अनुभव लें, वे खांटी हों,
बेहतरीन हों। पूरी तरह डूब कर अनुभव
बटोरें। सामाजिक रूप से आप स्वीकार्य हों। एक
कहावत है मेक यूअर प्रेजेंस ऑर एबसेंस फैल्ट। आप इन्सान तो
हैं ही आपमें इन्सानियत भी हो। और
सबसे आखिरी और अहम बात, आपके थोड़े से दोस्त
हों। वे आपके इतने करीब हों कि आप उनके साथ हों
तो कम्फरटेबल हों। दोस्तों के नाम पर भीड़ जमा करने
का कोई मतलब नहीं होता।
- तो बंधु ये ही वे बातें हैं जिन्हें मैंने अपने
जीवन में ढालने की कोशिश की
है और अपने आपको कई कई बार मरने से बचाया है।
- बहुत खूब। मैं अपनी जगह से उठा हूं और अंजलि
के पास जा कर उसे उठने का इशारा किया है। मैंने अपनी
तरफ से उन्हें पहली बार गले लगाया है।
- अंजलि थोड़ी देर पहले तक मैं तुम्हें जिस रूप में
देख रहा था, दस मिनट की इस बातचीत ने
तुम्हारा एक नया ही चेहरा मेरे सामने पेश किया है। मैं
बेशक तुम्हें पिछले एक बरस से तो जानता ही रहा
होऊंगा लेकिन फेसबुक पर तुम्हारा ये रूप कभी सामने
नहीं आया था।
- फेसबुक चैट की एक सीमा
होती है समीर। वहां आप
थोड़ी देर के लिए, मन बहलाव के लिए, रोज़ाना
की तकलीफ़ों से निजात पाने के लिए या
रूटीन से बदलाव के लिए आते हैं। जीवन
के गूढ़ रहस्यों की बात करेंगे तो आप इतने शानदार
सोशल मीडिया प्लेट फार्म पर भी अकेले
रह जायेंगे।
- सही है। शायद इसी वजह से
हमारी से मुलाकात इतनी शानदार और
यादगार रहने वाली है। एक बात बताओ अंजलि,
थोड़ी देर पहले तुमने कहा था कि बेशक यहां तक
की तुम्हारी यात्रा बेहद मुश्किल और
इतनी तकलीफों से भरी
रही कि मैं सुनूंगा तो दांतों तले उँगली दबा
लूंगा। तो मोहतरमा, ये दांतों तली उँगली दबाने
का मौका आज मिलेगा या कल के लिए रिज़र्व रखें इसे?
- समीर सच कहूं तो मैंने अपनी
ज़िंदगी की किताब कभी
भी किसी के सामने नहीं
खोली है। कोई ऐसा मिला ही
नहीं जिसे ये सब बताती। जिसे
भी बताती वह मुझ पर तरस
ही खाता जो मुझे मंजूर नहीं है। अब
शायद तुम्हारे सामने ही ये किताब खुलेगी
लेकिन अभी नहीं। ड्रिंक्स और डिनर के
बाद हम कल की तरह रेत पर कुर्सियां डाल कर
बैठेंगे। नो कैंडिल लाइट। तब हम तुम्हें अपनी
कहानी सुनायेंगे। अँधेरा मेरी मदद करेगा।
और उन्होंने अपना ड्रिंक रीपीट करने का
इशारा किया है।
जिस वक्त रेत पर हमारी कुर्सियां लगायी
गयी हैं बारह बज रहे हैं। अचानक अंजलि ने वेटर को
बुलवाया है और एक पैकेट सिगरेट और लाइटर लाने के लिए कहा
है। हमम। मैं मुस्कुराता हूं - इसी की बस
कमी थी।
अंधेरे में अंजलि सामने विशाल समंदर की बार बार पास
आती और सिर पटक कर लौट जाती लहरों
की तरफ देख रही हैं। जैसे खुद को
अपनी कहानी सुनाने के लिए तैयार कर
रही हैं। सिगरेट मंगवाना भी
उसी तैयारी का हिस्सा है। उन्होंने सिगरेट
सुलगायी है और पहला कश लगाया है - 17 बरस
की थी जब देसराज के घर से मेरे लिए
रिश्ता आया था। देसराज मेरे पति का नाम है। इस नाम ने और इस
नाम के शख्स ने कभी मेरे कानों में घंटियां
नहीं बजायीं। तुमने तालस्ताय का उपन्यास
अन्ना केरेनिन्ना पढ़ा होगा। उस महान उपन्यास में अन्ना पहले
ही पेज पर कहती है कि लोग अपने
पार्टनर को उसकी सारी खराबियों के बावजूद
प्यार करते हैं लेकिन मेरी तकलीफ ये है
कि मैं अपने पति को उसकी सारी अच्छाइयों
के बावजूद प्यार नहीं कर पाती।
- समीर मेरी भी
यही तकलीफ है। मैं कभी
देसराज को प्यार नहीं कर पायी और न
ही मुझे ही उस शख्स का प्यार मिला। तो
मैं अपनी शादी का किस्सा बता
रही थी। मैं नाबालिग थी लेकिन
इतनी समझ ज़रूर थी कि
इतनी कम उम्र में शादी नहीं
करनी चाहिये लेकिन मेरे माता पिता के सामने कुछ
ऐसी मज़बूरी आन पड़ी
थी कि वे चाह कर भी इस रिश्ते को ठुकरा
नहीं सकते थे। मेरे पापा कस्बे के हाई स्कूल के
हेडमास्टर थे। हमारा घर भी कस्बे और गांव के
बीच सी किसी जगह में था।
- कुछ दिन ही पहले हमारे घर में एक बहुत बड़ा
हादसा हो गया था जिसकी वजह से देसराज
जी के घर से आए शादी के प्रस्ताव को
किसी भी कीमत पर ठुकराया
नहीं जा सकता था। मेरे इकलौते मामा की
हत्या कर दी गई थी और मेरी
मामी अपने दो बच्चों के साथ हमारे ही घर
पर आने को मज़बूर हो गयी थी।
- इतने अच्छे घर बार से आया रिश्ता देख कर मम्मी
पापा ने अपने सिर जोड़े थे और तय किया था कि बिना दूल्हे को देखे
होने वाली शादी को स्वीकार कर
लिया जाए। इस गणित से बहुत सारे समीकरण हल
होते थे। अच्छा खासा घर बार था। दहेज की कोई मांग
भी नहीं थी और
शादी का सारा खर्चा लड़के वाले करने वाले थे।
हंसी आती है समीर कि हमारे
यहां दूल्हा हमेशा लड़का ही रहता है। ये बात मुझसे
छुपा ली गयी थी कि ये लड़का
देसराज जो जिससे मैं ब्याही जा रही
थी, 31 बरस का था और मुझसे 14 बरस बड़ा था। मैं
सत्रह बरस की भी नहीं
थी और ग्यारहवीं में पढ़ रही
थी। मेरी एक भी
नहीं सुनी गयी थी
और मेरी शादी कर दी
गयी थी। मेरी ससुराल वालों ने
मेरे बहुत जोर देने पर इतना वादा जरूर किया था कि मुझे पढ़ाई
जारी रखने देंगे।
- और हम ब्याह दिये गये थे। इस विवाह से दो अपराध एक साथ
हुए थे। एक तो बाल विवाह और दूसरे मेरे नाबालिग होने के कारण
देसराज का मुझसे शारीरिक संबंध। नाबालिग
लड़की से शारीरिक संबंध, चाहे वह
आपकी पत्नी जो न हो बलात्कार
ही तो कहलायेगा। सुहागरात के समय ही
मैंने देसराज को देखा था। न तो इस शादी में ऐसा कुछ था
जो मुझे पसंद आता और न ही देसराज में
ही ऐसा कुछ था जो मुझे बांधता।
- मेरा भरा पूरा ससुराल था। सास ससुर, दो जेठ जेठानियां,ननदें।
बड़ी जेठानी की घर में
चलती थी क्योंकि उनका एक बेटा था।
मुझसे बड़ी जेठानी की दो
लड़कियां थी। संयुक्त घर और संयुक्त
खानदानी कारोबार। मेरा बहुत अच्छे से स्वागत हुआ
था। बेहद सुंदर जो थी मैं। पता चला था कि मुझसे
पहले देसराज कम से कम 50 लड़कियां रिजेक्ट कर चुका था। मेरा
बस चलता तो हर बार मैं ही उसे 50 बार रिजेक्ट
करती। घर में सबसे छोटी होने के कारण
सबकी सेवा करने का अनकहा भार मुझ पर आ पड़ा
था। अपने घर में काम करने की आदत थी
तो निभ जाता था।
- तभी मेरे साथ दूसरा हादसा हुआ था। अपने अठारहवें
जन्मदिन से एक दिन पहले मेरा मिसकैरिज हुआ था। पूरे परिवार को
लकवा मार गया था। सबसे बड़ी जेठानी का
इकलौता बेटा आवारा था और मुझसे बड़ी
जेठानी की दो लड़कियां थीं और
अब दोनों ही और बच्चे पैदा करने की
उम्र लगभग पार कर चुकी थीं। परिवार
की सारी उम्मीदें मुझ पर
थीं और...।
तभी अंजलि ने पीछे मुड़ कर देखा है।
थोड़ी दूर अंधेरे में एक वेटर एक ट्रे हाथ में लिये खड़ा
है - पता नहीं किस चीज की
जरूरत पड़ जाये।
अंजलि ने बेहद स्नेह से मुझसे कहा है - यार उससे कहो कि हमें
कुछ नहीं चाहिये। यहां इस तरह से
ड्यूटी बजाने की ज़रूरत नहीं
है। बेशक जाने से पहले एक शॉल दे जाये। एक काम और करना
समीर। उसे या किसी और को लाने के लिए
मत कहना। खुद जा कर मेरे लिए व्हिस्की का एक
एक्स्ट्रा लार्ज पैग नाइंटी एमएल विद सोडा लेते आओ
प्लीज। और सुनो, अपने लिए मत लाना।
तुम्हारी लिमिट मेरी लिमिट से कम है। डोंट
टार्चर यूअर सेल्फ। बहुत प्यास लगी है
डीयर। करोगे ना मेरा इतना सा काम।
मैं उठा हूं। इस समय अंजलि मुझे बेहद खूबसूरत, मासूम और
निरीह बच्ची लग रही है
जिसे आँचल में छुपा लिया जाना चाहिये। मैं उसका कंधा थपथपाता हूं।
इट्स ओके। अभी लाता हूं।
मैंने अंजलि को अच्छी तरह से शॉल ओढ़ा
दी है। उन्होंने व्हिस्की का गिलास थामते
हुए मुझे अपनी कुर्सी उसकी
कुर्सी के नज़दीक करने का इशारा किया है।
अपना हाथ बढ़ाया है। मेरा हाथ थामने के लिए। मेरा हाथ उन्होंने
अपनी गोद में रखकर अपने हाथ में थाम लिया है। एक
लम्बा घूँट ले कर अंजलि ने कहना शुरू किया है - ऐसे कठिन समय
में मुझे अपने पति की तरफ से हर तरह के मानसिक
और भावनात्मक संबल की ज़रूरत थी और
वही मुझसे दूर जा कर खड़ा हो गया था। यहां तक कि
उसने मुझसे बात तक करनी बंद कर दी
थी जैसे मिसकैरिज करके मैंने उसके खानदान के प्रति
कोई अपराध कर दिया हो। वह जानबूझ कर काम के सिलसिले में
टूअर पर जाने लगा था। पागल था। दूसरा बच्चा होने के लिए तो उसे
मेरे पास आना और सोना ही था। वह कई दिन ये दोनों
काम टालता रहा। मेरे लिए भी अच्छा रहा कि
मेरी सेहत इस बीच ठीक हो
गयी थी। बेशक सब का मेरे प्रति व्यवहार
चुभने की हद तक खराब हो चुका था।
- अब मेरा एक ही काम रह गया था। मैं
दिन भर घर में दिन भर अकेली छटपटाती
रोती रहती और सास के ताने
सुनती रहती। वहां कोई मेरे आंसू पोंछने
वाला नहीं था। कुल मिलाकर १८ बरस की
उम्र और ग्यारहवीं पास अकेली
लड़की कर ही क्या सकती
थी।
- माँ बाप ने तो अपना फर्ज पूरा कर दिया था। उन पर
दोबारा बोझ डालने के बारे में सोच भी नहीं
सकती थी। सास सामने पड़ती
तो उसकी गालियाँ सुनती और पति के सामने
पड़ती तो उनकी गालियाँ हिस्से में
आतीं। मेरी जेठानी बेशक
मेरी तरफदारी करती
थी। वह अपनी बच्ची
की तरह प्यार करती। मैं हर तरफ से
बिल्कुल अकेली हो गयी थी।
कोई भी तो नहीं था पास मेरे जिससे अपने
मन की बात कह पाती। एक दो बार मन में
आया जान ही दे दूं। क्या रखा था जीने में।
१८ बरस की उमर में ही सारे दुःख और
सुख देख लिये थे।
- घर के पिछवाड़े जामुन का एक पेड़ था। उसके तले बैठ
कर रोना मुझे बहुत राहत देता था। एक दिन मैंने देखा कि
पीछे के घर से हमारे आँगन में खुलने
वाली खिड़की में एक युवक मुझे देख रहा
है। मैं घबरा कर अंदर आ गयी थी।
उसके बाद कई बार ऐसा हुआ। जब भी आंगन में
जाती, वही युवक हाथ में कोई किताब लिए
अपनी खिड़की में नजर आता। मैं उसे
देखते ही सहम जाती और असहज हो
जाती। डर भी लगता कि अगर मेरे घर के
किसी सदस्य ने इस तरह उसे मुझे देखते हुए देख
लिया तो ग़ज़ब हो जायेगा।
- एक दो बार ऐसा भी हुआ कि उसने मुझे
देखते ही नमस्कार किया। मैंने कोई जवाब
नहीं दिया, बस एक अहसास ज़रूर हुआ कि वह कुछ
कहना, कुछ सुनना चाहता है।
- एक दिन मेरा मूड बहुत खराब था। सुबह सुबह सास
ने डांटा था। पति ने उस दिन मुझ पर हाथ उठाया था और बिना नाश्ता
किए घर से चले गए थे। मेरा कोई कसूर नहीं था लेकिन
इस घर में सारी खामियों के लिए मुझे ही
कसूरवार ठहराया जाता था। ये सबके लिए आसान भी था
और सबको इसमें सुभीता भी रहता था।
कसूरवार ठहराया जाना तो खैर रोज़ का काम था लेकिन पति का मुझ पर
बिना वज़ह हाथ उठाना मुझे बुरी तरह से तोड़ गया था।
उस दिन सचमुच मेरी इच्छा मर जाने की
हुई लेकिन मरा कैसे जाये। ज़हर खाना ही आसान लगा।
लेकिन ज़हर किससे मंगवाती।
- तभी मुझे याद आया कि
खिड़की वाले लड़़के से कहकर जहर मंगवाया जा सकता
है। मुझे नहीं पता था कि आत्महत्या करने के लिए
कौन सा ज़हर खाया जाता है, कहां से और कितने में मिलता है। मेरे
पास 50 रुपए रखे थे। मैंने वही लिए और एक काग़ज़
पर लिखा - मुझे मरने के लिए ज़हर चाहिये। ला दीजिये।
मैंने अपना नाम नहीं लिखा था। ज्यों ही
वह लड़का मुझे खिड़की पर दिखाई दिया, मैंने उसे रुकने
का इशारा किया और मौका देख कर वह काग़ज़ और पचास का नोट
उसे थमा दिया।
अंजलि रुकी हैं। एक लम्बा घूँट भरा है
और सामने देख रही हैं। हवा में खुनकी
बढ़ गयी है और लहरें हमारे पैरों तक आने
लगी हैं।
वे आगे बता रही हैं - काग़ज़ लेने के बाद
उसने खिड़की बंद कर दी थी।
मैं बार बार आकर देखती लेकिन फिर
खिड़की नहीं खुली
थी। दो घंटे बाद हमारे घर का दरवाज़ा खुला था और उस
लड़के की माँ किसी बहाने से हमारे घर
आयी थी। कुछ देर तक मेरी
सास और जेठानी से बात करने के बाद वह बहाने से
मुझे अपने साथ अपने घर ले गयी थी।
- इतने दिनों में ये पहली बार हो रहा था कि
मैं अपने घर से निकली थी। उनके घर
गयी थी। उस भली औरत ने
मेरे सिर पर हाथ फेरा था, मुझे नाश्ता कराया था और फिर
धीरे-धीरे सारी बातें मुझसे
उगलवा ही ली थीं। मुझे युवक
पर गुस्सा भी आ रहा था कि छोटी-
सी बात को पचा नहीं पाया और जाकर माँ को
बता दिया था। अच्छा भी लगा था। मां की बातें
सुन कर अब तक मरने का उत्साह भी कम हो चला
था। उसकी माँ मेरी माँ जैसी
थी और उन्होंने मुझे बहुत प्यार से समझाया था और
बताया था कि मर जाना लड़ना नहीं होता।
अपनी लड़ाई खुद लड़नी होती
है और लड़ने के लिए जीना ज़रूरी होता है।
इस सारे समय के दौरान युवक कहीं नहीं
था। मुझे उसका नाम भी पता नहीं था।
- नितिन की मां से मिल कर जब मैं अपने
घर लौटी थी तो मेरी हिम्मत
बढ़ी थी। मुझे नितिन की माँ में
अपनी मां मिल गयी थी। अब
मेरा उनके घर आना-जाना हो गया था। नितिन से मेरी
नाराज़गी भी दूर हो गयी
थी। अब हम अच्छे दोस्त बन गए थे।
अपनी मां के कहने पर उसने मेरे लिए पहला काम ये
किया था कि मेरे लिए प्राइवेट इंटर करने के लिए फार्म ला कर दिया था
और अपनी पुरानी किताबें और सारे नोट्स
मुझे दे दिये थे। उसी से पता चला था कि वह
बीए कर रहा था। अपना जेब खर्च पूरा करने के लिए
दिन भर ट्यूशंस पढ़ाता था।
- अब मुझे एक बेहतरीन दोस्त मिल गया
था। मैं उससे अपने मन की बात कह
सकती थी। मैं अब रोती
नहीं थी। नितिन ने मेरी आंखों
में आंसुओं की जगह खूबसूरत सपने भर दिये थे।
प्यार भरी ज़िंदगी का सपना, अपने पैरों पर
खड़े होने का सपना, पढ़ने का सपना। ये सपना और वो सपना। अब
किताबों की संगत में मेरा समय अच्छी
तरह गुजर जाता। उसने मेरी हिम्मत
बढ़ायी थी उसने और घर वालों
की जली कटी सुनने और
उनका मुकाबला करने का हौसला दिया था। मैं अब घर वालों
की परवाह नहीं करती
थी। मुझे नितिन ने ही बताया था कि आप
सबकी परवाह कर के किसी को
भी खुश नहीं कर सकते। सबसे
बड़ी खुशी अपनी
होती है। अगर खुद को खुश करना सीख
लें तो आप दुनिया को फतह कर सकती हैं। कितना
सयाना था और कितना बुद्धू भी नितिन।
- अब मेरा सारा ध्यान पढ़ाई की तरफ था।
ठान लिया था कि कुछ करना है। सत्रह और अठारह बरस
की उम्र में जो खोया था, बेशक उसे वापिस
नहीं पा सकी थी लेकिन ये तो
कर ही सकती थी कि चाहे
कुछ भी हो जाये, और नहीं खोना है।
नितिन और उसकी मां मुझे बिल्कुल कमज़ोर न पड़ने
देते।
- मैंने बारहवीं का एक्जाम दिया था और अब
पूरी तरह से खाली थी फिर
भी नितिन की कोशिश रहती कि
मैं बिलकुल भी वक्त बरबाद न करूं। कुछ न कुछ
पढ़ती रहूं। उसी की मदद से
एक अच्छी लाइब्रेरी की
मेम्बरशिप मिल गयी थी और इस बहाने
मुझे घर से बाहर निकलने का मौका मिल गया था। देसराज और सास
कुढ़ते रहते। ताने मारते और मेरे चरित्र पर उंगलियां उठाते लेकिन
अब मैं इस सबसे बहुत दूर आ चुकी थी।
अब मैं और नितिन बाहर ही मिलते और एक बार तो
मैंने हिम्मत करके उसके साथ एक फिल्म भी देख
डाली थी। अभी तक न तो
नितिन ने और न ही मैंने ही ये कहा था कि
हम दोनों के बीच कौन-सा नाता है। मुझे
नहीं पता था,मैं पूछ भी नहीं
सकती थी कि वह ये सब मेरे लिए क्यूँ
करता है।
- मैं घर वालों के विरोध के बावजूद नितिन की
और सिर्फ नितिन की बात मानती
थी। तब मैं कहां जानती थी कि
प्यार क्या होता है। देसराज मुझसे चौदह बरस बड़ा था। उसे
भी कहां पता था कि प्यार क्या होता है। पता होता तो
मुझे ज़हर मंगाने के लिए नितिन की मदद क्यों
लेनी पड़ती और क्यों मेरी
ज़िंदगी ही बदल जाती। मैं उसे
अपना बेहतरीन दोस्त मानती
थी। वह मेरे लिए फ्रेंड, फिलास्फर और गाइड था। वह
हर वक्त मेरी मदद के लिए एक पैर पर खड़ा रहता।
उसे पता था कि उसे मेरे घर वाले बिल्कुल पसंद नहीं
करते थे। एक जवान पड़ोसी का इस तरह से जवान
और किस्मत से खूबसूरत बहू से मिलना कौन बर्दाश्त कर सकता
था इसलिए हमने बाहर मिलना शुरू कर दिया था। उसकी
मदद के बिना मैं एकदम अधूरी थी।
- एक दिन उसने मुझे एक रेस्तरां में चाय
पीने के लिए बुलाया था। ये पहला मौका था कि हम इस
तरह से चाय पर मिल रहे थे। उसने मेरे सामने एक पैंफलेट रखा
था। पूछा था मैंने-क्या है ये। - खुद ही पढ़ लो। उसने
कहा था। एक बड़ी कंपनी अपने प्रोडक्ट
की डायरेक्ट मार्केटिंग के लिए शहर में डायरेक्ट सेलिंग
नेटवर्क बनाना चाहती थी। उन्हें ऐसे
एजेंट चाहिये थे जो पार्टटाइम या फुल टाइम काम कर सकें। ये हमारे
शहर के लिए बिल्कुल नयी बात होती।
पहले एक हजार रुपये देकर सामान खरीद कर उनका
एजेंट बनना था।
मैंने नितिन से कहा था न तो मेरे पास एक हजार रुपए हैं
और न ही इस तरह का काम करने का अनुभव
ही है। घर वालों से तो मैं किसी तरह से
निपट ही लेती। नितिन बोला था - सब हो
जाता है। पहला कदम मुश्किल होता है। उसके बाद के कदम
आसान हो जाते हैं। मेरे लिए हजार रुपए भी नितिन ने
जुटाये थे। एक तरह से जबरदस्ती ही
उसने मुझे ये एजेंसी दिलायी
थी। वही मेरे लिए सामान लेकर आया था।
मैं समझ नहीं पा रही थी कि
इस देवदूत का कैसे आभार कैसे मानूं। वह कोई नौकरी
नहीं करता था। मेहनत से कमाया अपना पूरा जेब खर्च
उसने मेरे लिए एक नई ज़िंदगी की शुरुआत
करने के लिए खर्च कर डाला था। घर में मेरा विरोध हुआ था लेकिन
मैंने भी तय कर लिया था कि पढ़ना भी है
और अपने पैरों पर खड़ा भी होना है।
मुझे अपना सामान बेचने के लिए शुरुआती
ग्राहक ढूंढने में बहुत दिक्कत होती थी।
मेरठ जैसे शहर में विदेशी मेक अप और दूसरा सामान
बेचना आसान काम नहीं था। बरसों पुरानी
आदतें बदलना आसान नहीं होता।
- काम के लिए रोजाना दस बीस लोगों से मिलना
पड़ता। सामान का बैग उठाये उठाये घर-घर भटकना पड़ता। हर तरह
की बातें सुननी पड़ती। फलां
घर की बहू घर-घर जा कर अपनी
इज्ज़त नीलाम कर रही है। नितिन मेरा
हौसला बढ़ाये रहता। कुछ ग्राहक भी दिलवा देता।
लेकिन पहले दो तीन महीने मेरा काम
संतोषजनक नहीं रहा था। मैं थक चुकी
थी। बेशक मेरा लड़की होना, सुंदर होना मेरे
काम को आसान करते थे लेकिन ये तरीका मुझे मंजूर
नहीं था। नंगी और भेदती
निगाहों का सामना करना पड़ता। एक बार नितिन के कहने पर उसके
एक दोस्त की बहन के घर गयी
थी कुछ सामान बेचने। दोस्त की बहन तो
नहीं मिली थी लेकिन उसके
ससुर घर पर अकेले थे। पानी पिलाने और सामान देखने
के बहाने उस बुड्ढे ने मुझे एक तरह से नोंच खसोट
ही लिया था। शाम को घर आकर दो बार नहाने के
बावजूद मैं अपने बदन से चिपकी उसकी
गंदी निगाहें नहीं हटा पायी
थी। ऐसा अक्सर होता।
- तभी तीन अच्छे काम हुए थे
और घर में मेरी इज्ज़त बढ़ गयी
थी। मैं इंटर में पास हो गयी
थी। मैं दोबारा मां बनने वाली थी
और कंपनी ने एक नयी
स्कीम निकाली थी कि आप
अपने बल पर जितने एजेंट बनायेंगी,
उनकी बिक्री का लाभ भी
आपको मिलेगा।
- मुझे ये तरीका पसंद आ गया था। मैं
इसी मुहिम में जी जान से जुट
गयी थी। मेरी किस्मत
अच्छी थी कि इस मिशन में मैं कामयाब
होने लगी थी। मैंने किसी को
भी नहीं छोड़ा। सारे रिश्तेदारों को, परिचित
लोगों को और मोहल्ले में सबको फुल टाइम या पार्ट टाइम एजेंट
बनाना शुरू कर दिया था। अब मैं घर पर ही नये और
इच्छुक एजेंटों को बुला सकती थी। मैं
अखबारों में पैंफलेट डालती, और लोगों को
जोड़ती। मेरा आत्म विश्वास बढ़ने लगा था।
तभी अंजलि ने मेरी तरफ देखा
है और पूछा है - तुम्हें बोर तो नहीं कर
रही। अब चौदह बरस की फिल्म देखने में
कुछ वक्त तो लगेगा।
- नहीं कहती चलो। सुन रहा
हूं मैं।
- बाकी बात बहुत ब्रीफ में बता
रही हूं। मैंने काम करते हुए बीए किया,
एमए किया, डिस्टैंट लनिंग से मार्केटिंग में एमबीए किया।
बेटा अब तेरह बरस का है जिसे मेरी
जेठानी ही पालती है। मेरे पास
इस समय 2000 एजेंट हैं जो लोकल भी हैं और
दूसरे शहरों में भी। यानी मेरे ज़रिये लगभग
इतने परिवार पल रहे हैं। एक एनजीओ
की सर्वेसर्वा हूं। ईवा नाम का ये एनजीओ
बच्चों और गरीब लड़कियों के लिए काम करता है। मैं
हर बरस बारहवीं क्लास की पाँच
ऐसी लड़कियां चुनती हूं
जिनकी पढ़ाई किसी न किसी
वजह से छूट गयी है और वे पढ़ना
चाहती हैं। उनकी पूरी पढ़ाई
का खर्च मेरे जिम्मे।
- मैं इस समय अपनी कंपनी
में काफी महत्वपूर्ण कड़ी हूं। हैड
क्वार्टर में और बड़ी जिम्मेवारियों के लिए बार-बार बुलाया
जाता है लेकिन मेरे कुछ उसूल हैं। नहीं
जाती। अब मुझे खुद इतना काम नहीं करना
पड़ता। मेरा डेडिकेटेड स्टाफ है जो अपना काम बखूबी
करता है। हर महीने दो लाख रुपये के
करीब मेरे खाते में जमा हो जाते हैं।
अच्छी खासी सेविंग कर ली
है। कंपनी बीच बीच में ईनाम
देती रहती है और घुमाती
फिराती रहती है। अपनी पसंद
का खूबसूरत घर बनाया है और मैं अपनी
ही दुनिया में मस्त हूं। इस दुनिया में हर कोई
नहीं झांक सकता।
पूछता हूं मैं - इस पूरे सफर में नितिन कहां रह गया?
- नितिन ने भी एमबीए किया था।
वह एमए तक तो मेरठ में ही रहा। फिर
एमबीए करने अहमदाबाद चला गया था।
उसकी बहुत याद आती। हम फोन पर
ही बात कर पाते। जब एमबीए करने जा
रहा था तो बहुत उदास था। उसने मुझे दावत दी
थी और तब इतने बरसों में पहली बार
उसने मेरा हाथ थामा था और प्रोपोज किया था - छोड़ छाड़ दो ये सब।
हम अपनी दुनिया बसायेंगे। तब तक मुझमें कुछ समझ
तो आ ही चुकी थी। बेशक मैं
उससे बेइंतहां प्यार करती थी लेकिन भाग
कर शादी करने के बारे में सोच नहीं
सकती थी।
- अहमदाबाद जाने के बाद वह चाहत और
गरमी कुछ दिन तो रहे फिर धीरे
धीरे कम होने लगे थे। मेरी
ज़िंदगी का वह अकेला प्यार था और रहेगा, बेशक
उसकी ज़िंदगी में औरों ने दस्तक
दी ही होगी। जो होता है
अच्छा ही होता है। आजकल यूएसए में है। मैं अपने
पहले और इकलौते प्यार को कभी नहीं
भूल पायी। आइ मिस हिम ए लाट। आइ स्टिल लव
हिम।
- यही होना होता है जीवन में
अंजलि। जो हमारा जीवन संवारते हैं, हमें
उन्हीं का साथ नहीं मिल पाता।
- मैंने बहुत तकलीफें भोगी हैं
समीर। वहां से यहां तक की पन्द्रह
बरस की दौड़ बहुत मुश्किल रही है। कई
बार यकीन नहीं होता कि ये सफर मैंने
अकेले तय किया है।
- कहती चलो। मैं अंजलि को दिलासा देता हूं।
- घबराओ नहीं, मेरी बात
लगभग पूरी हो चुकी है। बस
दी एंड करना है। इस कहानी में
आखिरी चैप्टर देसराज का है। परेश का बाप बनने के
बाद उसे एक नयी दुनिया मिल गयी। उसे
इस बात की कोई परवाह नहीं
रही कि मैं क्या करती हूं कहां
जाती हूं और हूं भी सही या
नहीं। उसका पीना और बढ़ गया है।
- तीन बरस पहले मैंने उसे अपनी
ही कंपनी के प्रोडक्ट की
एंजेसी दिला दी है। मेरे एजेंट जितना सामान
बुक करते हैं उतना ही वह बेचता है। मुझसे ज्यादा
ही कमा लेता है। हंसी आती
है - वह सबको यही बताता है कि उसकी
एजेंसी के बल पर ही मेरा काम चल रहा
है। कई बार भ्रम भी कितने खूबसूरत होते हैं ना।
अंजलि बताती जा रही है - वह
अपनी दुनिया में मस्त है, मैं अपनी दुनिया
में। कहने को हम पति पत्नी हैं लेकिन इस रिश्ते
की रस्में निभाये बरसों बीत गये हैं। मैं
अभी बत्तीस की हूं और
देसराज छियालिस का। बेशक उससे मेरे वे संबंध नहीं
रहे हैं लेकिन फिर भी मैंने कभी उससे
बेईमानी नहीं की है। खुद को
पूरी तरह काम में खपाये रखती हूं। एक
मिनट के लिए भी खाली नहीं
बैठती। हर वक्त कुछ न कुछ करती
ही रहती हूं। ध्यान, योगा, जिम, सोशल
कमिटमेंट्स, एनजीओ, बच्चे और प्रकृति। सच
समीर, इस सेल्फ एक्चुआलाइजेशन ने तो
मेरी ज़िंदगी ही बदल
दी है। मेरे सारे काम इसी से कंट्रोल होते
हैं।
- मैं समझ रहा हूं अंजलि। मैं उसका कंधा थपथपाता हूं। मैं अंधेरे
में अंजलि का चेहरा नहीं देख पा रहा लेकिन
उसकी आवाज का दर्द बता रहा है कि वह
कितनी तनहा है। दोस्त चला गया, पति न अपना था, न
अपना रहा। ऐसे में उस जैसी खुद्दार
लड़की खुद को कैसे संभालती
होगी।
- कुछ और बताना पूछना बाकी है समीर,
वह अंधेरे में मेरी तरफ देखती है।
- नहीं अंजलि, सब कुछ तो तुमने बता दिया है। सच में
यकीन नहीं हो रहा कि जो अंजलि मेरे पास
बैठी है, जो मुझसे पहली बार
मिली है और जिसे मैं दो दिन से लगातार न सिर्फ देख
रहा हूं, बल्कि पूरी शिद्दत से जिसे महसूस कर रहा
हूं, यहां तक पहुंचने की तुम्हारी
तकलीफ की बातें सुन कर दहल गया हूं।
तुम्हें सलाम है दोस्त।
अंजलि ने मेरा हाथ दबाया है - वो सब तो ठीक है लेकिन
तुमने ये नहीं पूछा कि इस गिलास से मेरी
दोस्ती कब और कैसे हो गयी। वह मेज
पर रखे गिलास की तरफ इशारा करती है।
मैं हंसता हूं – नहीं, मैं समझ रहा हूं। दोस्त चला
गया हो, जीवन साथी कभी
अपना न रहा हो और अपनी मेहनत के बलबूते पर
सफलता मिलने लगी हो तो सेलिब्रेट करने के लिए कोई
तो साथी चाहिये ही। तब भरा हुआ गिलास
सबसे अच्छा दोस्त होता है। चाहे उसे कितनी बार
खाली करो, चाहे किस भी ड्रिंक से भर दो,
कोई शिकायत नहीं करता।
- सही कह रहे हो समीर। अब ये गिलास
ही मेरा सबसे अच्छा दोस्त है। देसराज वैसे तो आम
दुकानदार किस्म का आदमी है लेकिन एक बात
उसकी बहुत अच्छी है। वह बहुत
सलीके से पीता है। घर पर
ही उसने एक बढ़िया-सा बार बना रखा है। उसके पास
बेहतरीन कटलरी है और हर तरह
की शराबों का शानदार कलेक्शन है उसके पास।
मैं हंसा हूं - तो घर का माल घर पर ही ...।
- पहली बार मैंने उसके बार में से ही चुरा
कर पी थी। उस दिन जब नितिन के दोस्त
की बहन के ससुर ने मुझ पर हाथ डाला था। मुझे तब
पता ही नहीं था कि कौन सी
बॉटल में क्या है और उसे कैसे पीते हैं। बस गिलास में
डाली थी और हलक से नीचे
उतार ली थी। फिर तो सिलसिला बनता चला
गया। अब तो तय करना ही मुश्किल है कि देसराज
ज्यादा पीता है या मैं ज्यादा
पीती हूं।
- अब चलें समीर। ये पानी तो अब
कुर्सी पर चढ़ कर सिर तक आने को बेताब हो रहा है।
मैं सहारा दे कर अंजलि को कमरे तक लाता हूं। कल अंजलि मुझे
सहारा देकर लायी थी। आज मैं..।
अंजलि वाशरूम में गयी हैं तो मैं पहले कमरे में
ही पसर गया हूं लेकिन बाहर आते ही
उन्होंने मुझे उठा दिया है - ये बेईमानी नहीं
चलेगी। तुम जाओ अपने कमरे में। और मेरा हाथ थाम
कर बेड रूम में ले आयी हैं।
अभी मेरी आँख लगी
ही है कि झटके से मेरी नींद
खुली है। अंजलि मेरे कंधे पर झुकी मुझसे
पूछ रही हैं - क्या मैं थोड़ी देर के लिए
तुम्हारे पास सो सकती हूं?
मैं उठ बैठा हूं – ओह, श्योर श्योर कम। मैंने उनके लिए तकिया
ठीक किया है लेकिन वे दुबक कर छोटी
सी मासूम बच्ची की तरह मेरे
सीने से लग कर सो गयी हैं। मैं उनके
कंधे थपथपा रहा हूं और उनके बालों में उँगली फिर रहा
हूं। इस समय एक जवान और खूबसूरत औरत का
मेरी बांहों में होना भी मुझमें
किसी तरह की सैक्सुअल
फीलिंग नहीं जगा रहा। नशे में होने के
बावजूद एक अजीब सा ख्याल मेरे मन में आता है -
औरत ही हर बार कई भूमिकाएं अदा करती
है। बहन, बेटी, पत्नी, मां। मेरे
सीने से बच्ची की तरह लग
कर सोयी अंजलि के लिए मैं आज पिता या भाई
की भूमिका निभा रहा हूं।
नींद मेरी आंखों से कोसों दूर
चली गयी है। पता नहीं क्या-
क्या दिमाग में आ रहा है। दो दिन में कितने तो रूप दिखा दिये इस
मायावी अंजलि ने। कल सुबह का चलती
कार में उनका वह रूप और अब मेरे सीने से
लगी अबोध बच्ची सी सो
रही अंजलि का ये रूप। कितने रूप एक साथ
जी रही है ये अकेली औरत।
मैं उनके चेहरे की तरफ देखता हूं। गहरी
नींद में हैं। मेरा नशा अभी
बाकी है। लेकिन इतना होश भी
बाकी है कि पूरी रात इस तरह बिताना मेरे
लिए कितना मुश्किल होगा। कुछ भी
अनहोनी हो सकती है। मैं कमज़ोर पडूं,
इससे पहले ही अंजलि को आराम से सुलाता हूं, उनका
सिर तकिये पर टिकाता हूं और हौले से उठ कर बाहर वाले कमरे में
आता हूं। दस कदम चलने से ही मेरी
सांस फूल गयी है जैसे मीलों लम्बा सफर
करके आया हूं।
अचानक झटके से मेरी नींद
खुली है। पेट में कुछ गड़बड़ लग रही
है। तेजी से बाथरूम की तरफ लपकता हूं।
उफ.. । ये क्या मुसीबत है। वापिस आया
ही हूं कि फिर..फिर ..। अभी तो बाथरूम
की टंकी ही नहीं
भरी होती। क्या करूं .. अंजलि को जगाऊं..
। नहीं वे भी क्या करेंगी।
बेचारी बच्ची की
नींद सो रही हैं। लेकिन बार बार फ्लश
की आवाज सुन कर उनकी
नींद खुल ही गयी है।
पूछती हैं - क्या हुआ समीर। और मैं यहां
कैसे आ गयी। मैं तो बाहर सोयी
थी समीर।
मैं निढाल सा सोफे पर पसरा बैठा हूं। बताता हूं - पेट गड़बड़ा गया है।
बीस बार तो हो आया। बाहर के कमरे तक जाने और
बार बार बाथरूम तक आने की ताकत ही
नहीं बची है।
अंजलि उठ कर मेरे पास आ गयी हैं। मेरे माथे पर हाथ
फिरा कर देखती हैं, बुखार तो नहीं है। मैं
इशारे से बताता हूं – बुखार नहीं है। वे
बताती हैं - रुको, मेरे पास गोली है। वे
लपक कर गयी हैं और अपने बैग में से
गोली ले कर आयी हैं। पानी
के साथ गोली ली है मैंने। अंजलि
कहती हैं - लेट जाओ, लेकिन मैं ही मना
कर देता हूं। उठ कर बैठने और बाथरूम भागने में दिक्कत
होगी। अंजलि चिंता में पड़ गयी हैं -
कितनी बार हो आये?
मैं इशारे से बताता हूं - कई बार। गिनती याद
नहीं। वे सीरियस हो गयी हैं -
डॉक्टर को बुलाने की ज़रूरत है क्या? वे
घड़ी देखती हैं - तीन बज
कर चालीस मिनट।
मैं मना कर देता हूं - जितना जाना था जा चुका। अब
भीतर बचा ही क्या है।
अंजलि अफसोस के साथ कहती हैं -
गलती मेरी है। मैं समझ गयी
थी कि तुम्हारी इतनी लिमिट
नहीं है। लेकिन बार-बार और हर तरह के ड्रिंक्स
पिलाती रही। छी: मैं
भी क्या कर बैठी। तुम्हें कुछ हो गया
तो...। वे अपने आपको कोसे जा रही हैं।
मैं इस हालत में भी उन्हें समझाता हूं - ऐसा कुछ
नहीं हुआ है। मैंने शायद ढंग से खाना
नहीं खाया था और ज्यादा ले ली
थी। अब गोली से आराम आ रहा है।I
वे फिर उठी हैं और मेरे लिए जग भर के
पानी में नमक, चीनी का घोल
बनाया है। उसमें उन्होंने संतरे का जूस और नींबू का
रस मिलाया है। वे हर पाँच मिनट बाद गिलास भर कर मुझे ये घोल
पिला रही हैं ताकि डीहाइड्रेशन न हो जाये।
थोड़ी देर पहले मेरे सीने से
बच्ची की तरह लग कर सो
रही अंजलि अब दादी मां बन कर मेरा
इलाज कर रही हैं। यह पता चलने पर कि मैंने खाया
ढंग से नहीं खाया था, वे मेरे लिए फ्रूट बॉस्केट में से
केले ले आयी हैं और मुझे जबरदस्ती
खिलाये हैं। मैं अब बेहतर महसूस कर रहा हूं लेकिन अंजलि कोई
रिस्क नहीं लेना चाहतीं।
उनकी नींद पूरी तरह से उड़
गयी है।
उन्हें फ्रिज में रखी हुई योगर्ट मिल गयी
है। वे अब मेरे सामने बैठी अपने हाथों से चम्मच से
मुझे योगर्ट खिला रही हैं। मैं उनका सिर सहलाते हुए
कहता हूं - बस कर दादी मां, अब बस भी
कर लेकिन वे नहीं मानतीं। घंटे भर में
उन्होंने अपना बनाया एक लीटर घोल मुझे पिला दिया है।
सुबह के छ: बजने को आये हैं। अब मैं बेहतर महसूस कर रहा
हूं।
पिछले एक घंटे में सिर्फ दो बार गया हूं। अंजलि ने मुझे लिटा दिया है
और मेरे पास बैठी हुई हैं। मैं उन्हें सो जाने के लिए
कहता हूं लेकिन वे मना कर देती हैं। मेरी
हालत के लिए वे अभी भी खुद को
कसूरवार मान रही हैं। इस बीच वे दो बार
मेरे लिए ब्लैक टी विद शुगर बना चुकी हैं।
एक बार तो कंपनी देने के लिए खुद भी मेरे
साथ ब्लैक टी पी है।
पता नहीं कब मेरी आँख लग
गयी होगी। देखता हूं अंजलि
खिड़की के पास वाले सोफे पर बैठी पेपर
पढ़ रही हैं। आठ बज रहे हैं। मुझे जागा देख कर वे
मेरे पास आयी हैं और प्यार से मेरा माथा चूम कर
बोली हैं - गुड मार्निंग दोस्त। थैंक गॉड। तुम अब
ठीक हो, वरना मैं अपने आप को कभी
माफ न कर पाती।
देखता हूं - अंजलि नहा कर तैयार भी हो
चुकी हैं। कॉलर वाली यलो टी
शर्ट और ब्लैक ट्राउजर। ग्रेट कम्बीनेशन।
कह रही हैं - एक काम करते हैं। अब हम यहां
और नहीं रुकेंगे। बेशक शाम 6 बजे की
फ्लाइट है मेरी लेकिन हम मुंबई ही चलते
हैं। कुछ हो गया तुम्हें तो यहां ढंग से मेडिकल एड
भी नहीं मिलेगी। मैं
ब्रेकफास्ट यहीं मंगवा रही हूं। तब तक
तुम नहा लो। कपड़े निकाल देती हूं तुम्हारे। और मेरे
मना करने के बावजूद अंजलि ने मेरे सूटकेस में से मेरे लिए पकड़े
निकाल दिये हैं।
देखता हूं - येलो स्ट्राइप वाली टीशर्ट और
ब्लैक पैंट। मैं कलर कम्बीनेशन देख कर हंसता हूं।
वे समझ जाती हैं कि मैं क्यों हंस रहा हूं।
मुझे चीयर अप करने के लिए बताती हैं -
मेरे स्टाफ में आठ लोग हैं। तीन जेंट्स और पाँच
लड़कियां। सैटरडे हम किसी न किसी बहाने
पार्टी करते ही हैं। एक पार्टी
होती है कलर कम्बीनेशन
की। अगर किसी मेल मेम्बर के कपड़ों के
रंग जरा सा भी किसी फीमेल
स्टाफ के कपड़ों के रंग से मैच कर जायें तो दोनों को
पार्टी देनी होती है। कई बार
मजा आता है कि कई लोगों के रंग आपस में मैच कर जाते हैं। अब
हमारे स्टाफ मेम्बर अपने लिए कपड़े खरीदते समय
ख्याल रखते हैं कि किस किस के पास इस रंग के कपड़े हैं। शनिवार
को तो सबकी हालत खराब होती है। यह
बताते हुए अंजलि अब एक खूबसूरत स्मार्ट एक्सक्यूटिव में बदल
गयी हैं।
जब तक ब्रेकफास्ट आये और मैं नहा कर आऊं, अंजलि ने सारा
सामान पैक कर दिया है और रिसेप्शन को बिल तैयार करने के लिए
कह दिया है।
मेरे लिए अंजलि ने केले, सादी इडली, योगर्ट
और गाजर का जूस मंगाये हैं। रास्ते के लिए उन्होंने दो बॉटल
डीहाइड्रेशन वाला घोल बना कर रख लिया है।
मेरे बहुत जिद करने पर भी होटल का बिल अंजलि ने
दिया है और मुझे वेटरों को टिप तक नहीं देने
दी है। हंसी आ रही है कि
अंजलि नर्स की तरह मेरी केयर कर
रही हैं। मेरा हाथ थाम कर नीचे
लायी है, और छोटे बच्चे की तरह कार में
बिठाया है। सीट बेल्ट भी उसी
ने लगायी है। इतना और किया कि लिफ्ट में
ही मेरे गाल पर एक चुंबन जड़ दिया था।
मैं अंजलि से कहना चाहता हूं कि तुम रात भर सोयी
नहीं हो, कार मुझे चलाने दो लेकिन उन्होंने
मेरी एक नहीं सुनी है।
वे बता रही हैं कि वे अगर गोवा गयी
होती तो कितने खूबसूरत दिन मिस करती।
वहां सब इन्फार्मल होते ही भी फार्मल
ही होता और अकेले वक्त बिताने के लिए
सबकी नाराजगी मोल लेनी
पड़ती।
तभी मैंने पूछा है - अंजलि एक बात बताओ।
- पूछो मेरे लाल। वे सुबह से पहली बार खुल कर
हंसी हैं। मुझे अच्छा लगा है कि अंजलि अब अपने
उसी मूड में लौट आयी हैं जिसमें वह
परसों आते समय थीं।
- हम परसों सुबह से एक साथ हैं। इस बीच
बीसियों बार मेरा मोबाइल बजा है। मैंने कभी
एटैंड किया है और कई बार नहीं भी किया
है। लेकिन इस सारे अरसे में तुम्हारा मोबाइल एक बार
भी नहीं बजा है।
- भली पूछी दोस्त जी। निगाहें
सड़क पर जमाये अंजलि कह रही हैं -
सही कहा। मेरे पास दो मोबाइल हैं। एक ऑफिस का
और एक पर्सनल। दोनों में शायद ही कोई नम्बर हो जो
दोनों में हो। देसराज के नम्बर के अलावा। संयोग से वह हमारा
डीलर भी है और रिश्ते में पति
भी लगता है। तुमसे बात करने के लिए और होटल बुक
करने के लिए ही मैंने अपना मोबाइल ऑन किया था। तब
से दोनों मोबाइल बंद ही हैं। ये तीन दिन
सिर्फ मेरे थे और मैंने अपने तरीके से
जीये। मैं अपने वक्त में किसी का दखल
नहीं चाहती। किसे क्या करना है, मैंने
सबको बता रखा है। कोई समस्या हो तो इंतज़ार कर
सकती है। मेरा सबसे बड़ा सच मेरा सामने वाला पल है।
अचानक कार रुकने के कारण मेरी नींद
खुली है। अरे, मैं कब सो गया पता ही
नहीं चला। अंजलि की तरफ देखता हूं। वे
मुस्कुरा रही हैं। उन्होंने कार साइड में
रोकी है। बाहर देखता हूं - अरे, ये तो शिमला रिसार्ट है।
मैं पहले भी दो एक बार यहां आ चुका हूं। इसका
मतलब हम मुंबई के पास हैं।
घड़ी देखता हूं - बारह बजे हैं। अंजलि ने
मेरी तरफ का दरवाजा खोला है। पता ही
नहीं चला कि बात करते करते कब सो गया था।
- कैसा लग रहा है अब?
- बेहतर महसूस कर रहा हूं।
- श्रीमान जी, कितना भी
बेहतर महसूस करें, आपको पीने के लिए और
नहीं मिलने वाली और खाने के लिए
दही चावल ही मिलेंगे।
- कोई बात नहीं सिस्टर जी।
आपकी केयर में हूं तो आप मेरा भला ही
सोचेंगी। हम दोनों ही हंस दिये हैं।
रिसोर्ट में बायीं तरफ रेस्तरां हैं जहां
फैमिली केबिन बने हुए हैं। बहुत कलात्मक। एक
तरफ लम्बा सोफा जिस पर तीन आदमी
आराम से बैठ सकें और मेज के दूसरी तरफ गाव
तकियों से सजा एक तख्त।
मैं तख्त पर गाव तकियों के सहारे पसर गया हूं। अचानक अंजलि
सोफे से उठी हैं और बाहर चली
गयी हैं। मैंने आंखें बंद की
ली हैं।
अंजलि वापिस आयी हैं तो उनके हाथ में आइपैड और
डीहाइड्रेशन के घोल वाली बोतल है। बोतल
मेरी तरफ बढ़ाते हुए पूछ रही हैं - बोतल
से पीयेंगे या गिलास मंगवाऊं?
मैं छोटा बच्चा बन गया हूं - एक शर्त पर पीऊंगा।
- बता दीजिये।
- इसके बाद आपके साथ एक आखिरी
बीयर तो बनती है।
- कमाल है। रात भर की तकलीफ
काफी नहीं है। चलो ठीक है।
सिर्फ एक गिलास मिलेगी। लो पहले इसे
पीओ और उन्होंने बोतल खोल कर मेरे मुंह से लगा
दी है।
अंजलि पूछ रही हैं - यहाँ से 6 बजे की
फ्लाइट के लिए कितने बजे निकलना ठीक रहेगा?
- वैसे तो तीस चालीस मिनट का रास्ता है
लेकिन हाइवे का मामला है। हम साढ़े तीन बजे
निकलेंगे।
- तुम्हें कोई तकलीफ तो नहीं है ना अब?
- नहीं, एकदम ठीक कर दिया तुम्हारे
ड्रिंक ने।
अंजलि ने वेटर को पीने और खाने का ऑर्डर दिया है।
मेरे लिए एक गिलास बीयर और कर्ड राइस पर
सहमति हो गयी है।
अंजलि अपने आइपैड में तस्वीरें दिखा रही
हैं। वे भी आराम से तख्त पर बैठ गयी
हैं।
हर तस्वीर से जुड़ा कोई न कोई मजेदार किस्सा शेयर
कर रही हैं। इस समय वे बहुत अच्छे मूड में हैं। मैं
अधलेटा हूं और वे मेरे सिर की तरफ बैठी
हैं। अचानक उन्होंने मेरा सिर अपनी गोद में रख दिया
है। मैंने आंखें बंद कर ली हैं। वे मेरे चेहरे
की तरफ झुकी हैं और मेरा माथा सहला
रही हैं। उनके बालों ने मेरे चेहरे पर एक
झीना जाल डाल दिया है।
अचानक एक गरम बूंद मेरे गाल पर गिरी है। वे
नि:शब्द रो रही हैं। आंसुओं से उनका चेहरा तर है।
मैं कुछ कह नहीं पाता कि क्या कहूं। वे रोये जा
रही हैं। मैं हाथ बढ़ा कर उनके आंसू
अपनी उँगली की कोर पर उतार
लेता हूं। वे मेरी उँगली अपने मुंह में दबा
लेती हैं।
कह रही हैं - मैंने तुम्हें बहुत परेशान किया।
- नहीं तो?
- मैं अचानक आयी, तुम्हारा शेड्यूल अपसेट किया।
कितनी उम्मीदें जगा दीं और
सताया।
- नहीं तो?
- जानती हूं कि पास में युवा और खूबसूरत
लड़की हो तो किसी का मन भी
डोल सकता है। पता नहीं तुम खुद पर कैसे कंट्रोल
कर पाये।
मैं उनके बाल सहलाते हुए हंसता हूं - बहुत आसान था।
वे हमम करके इशारे से पूछती हैं - वो कैसे भला?
- कुछ तुम्हारी शर्तें, कुछ मेरी वैल्यूज,
कुछ मेरे डर और कुछ तुम्हारी वैल्यूज।
अंजलि ने मेरे गाल पर चपत मारी है - और?
- एक और बात भी थी कि वह सब करने
के लिए खुद को मनाना और तुम्हें तैयार करना बिलकुल
भी मुश्किल नहीं था। पता तो था
ही कि तुम नार्मल सेक्स लाइफ तो नहीं
ही जी रही हो। ऐसे में मेरा
काम आसान हो जाता लेकिन ऐसे बनाये गये संबंधों का एक
ही नतीजा होता है।
- क्या?
- या तो वे हमेशा के लिए उसी तरफ मुड़ जाते हैं या
बिल्कुल खत्म हो जाते हैं। और ये दोनों बातें ही मैं
नहीं चाहता था।
- कहते चलो।
- ऐसे करने का मतलब होता एक अच्छी दोस्त को
हमेशा के लिए खो देना जो कि बहुत बड़ा नुक्सान होता।
अंजलि झुकी हैं और पहली बार मेरे होंठों
को क्षण भर के लिए अपने होठों से छू भर दिया है - शायद मैं
इसी भरोसे पर यहाँ और तुम्हारे पास ही
आयी थी कि मैं एक मैच्योर दोस्त से
मिलने जा रही हूं। मेरे लिए भी
तुम्हारी मस्त कर देने वाली
मौजूदगी में अपने आपको नियंत्रण में रखना इतना
आसान नहीं था। तुम्हें शायद पता न हो, मैं दोनों रात
एक पल के लिए भी नहीं
सोयी हूं। पहली रात तुम कमज़ोर पड़े थे
तो मैंने तुम्हें सँभाला था। बेशक लहरों में बह जाना मेरे लिए
भी सहज और आसान होता। दूसरी रात मैं
कमज़ोर पड़ गयी थी और तुम्हारे पास
चली आयी थी कि जो होना है
हो जाये लेकिन कल रात तुमने मुझे कमज़ोर होने से बचा लिया और
उठ कर दूसरे कमरे में चले गये थे। तब मैं नींद में
नहीं थी। तुम्हारी
नजदीकी का पूरा फायदा उठाना चाह
रही थी लेकिन तुमने मौका ही
नहीं दिया और भाग खड़े हुए ।
मैंने नकली गुस्सा दिखाया है - यू चीट।
- थैंक्स समीर।
- अब किस बात का थैंक्स भई?
- इस यात्रा में मेरे सेल्फ एक्चुअलाइज़ेशन के अनुभवों में एक
और आयाम जुड़ गया है समीर।
मैं भोला बन गया हूं - वो क्या?
- मेरा ये अहसास और पुख्ता हो गया है कि देह से परे
भी दुनिया इतनी खूबसूरत हो
सकती है। सही कह रहे हो
समीर कि हमारी ये यात्रा अगर देहों से हो
कर गुज़रती तो उन्हीं अंधी
गलियों में भटक कर रह जाती और हम उससे
कभी बाहर न आ पाते। थैंक यू माय दोस्त, थैंक यू।
हम दोनों ने ही आगे की मुलाकातों के रास्ते
बंद नहीं किये हैं। खुले रखे हैं। थैंक्स अगेन।
मैं मुस्कुरा कर रह गया हूं। इस बात का क्या जवाब दूं। मैंने उनके
बिखरे बाल समेट कर उनके कानों के पीछे कर दिये हैं।
उनका चेहरा दमक रहा है।
एयरपोर्ट आते समय ड्राइविंग सीट मुझे वापिस मिल
गयी है।
मैं चुहल करते हुए पूछता हूं - तो आपका रूफ टॉप गार्डन हमें
कब देखने को मिलेगा?
- जल्दीबाजी न करें श्रीमन।
अभी तो हमें इस जादुई यात्रा के तिलिस्म से बाहर आने
में ही समय लगेगा। और याद रखें कि यात्राएं और
मुलाकातें हमेशा संयोग से ही होती हैं।
अचानक ही। जैसे ये मुलाकात हुई। हम ज़रूर मिलेंगे
लेकिन कहां मिलेंगे और कब मिलेंगे, इसकी कोई
भविष्यवाणी सेल्फ एक्चुअलाइज़ेशन नहीं
करता। वे खिलखिला कर हंस दी हैं।
मैंने उन्हें ड्राप किया है। कार से उतर कर हम गले मिले हैं और
फिर से मिलने का वादा करके बिछड़ गये हैं।
वापिस आने के लिए कार स्टार्ट करते समय मैं तय
नहीं कर पा रहा कि मैं एकदम खाली हो
गया हूं या किसी दैविक ताकत से भर गया हूं।
Friday 2 October 2015
The story- लहरों की बांसुरी
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