Sunday 18 October 2015

The story- परिणय

परिणय
1 / 1
मौसम में जाड़े की शुरुआत हो चुकी
थी | दोपहर के 3 बज रहे थे | घर में
नीरवता पसरी हुई थी |
अचानक दरवाज़े पर दस्तक हुई | सावित्री
देवी उठ के आयीं, आयीं क्या
उन्हें आना ही पड़ा | दरवाज़े की भड़भड़
ने शांति के वातावरण को एकदम हलचलमय बना दिया था | दरवाज़ा
खुला तो उधर श्यामाचरण थे, उनके पति |
बेचारे श्यामाचरण द्विवेदी जी,
जिंदगी भर प्राइमरी स्कूल की
मास्टरी करते रहे | अब रिटायरमेंट के 2-3 साल
ही शेष बचे थे | आते ही कमरे के पुराने
सोफे पर गिर पड़े | सावित्री देवी
अभी भी चुप थीं | वे तो रोज
ही यह सब देखती थीं फिर
भी बात शुरू करने के लिहाज से उन्होंने नैराश्यता से
पूछा, “बड़े थके लग रहे हो !”
श्यामाचरण को सावित्री देवी के इस एक
संक्षिप्त वाक्य से बड़ी खीझ हुई |
प्रत्युत्तर में वे कुछ न बोले | सावित्री
देवी ने बात बदलते हुए कहा, “क्या बाबू रामदयाल से
बात हुई, क्या कहा उन्होंने ?”
श्यामाचरण ने अपनी धंसती आँखें बंद कर
लीं जैसे कुछ सुन ही न रहे हों |
श्यामाचरण द्विवेदी जी का कुल पांच जनों
का परिवार था | तीन बच्चे और दो पति-
पत्नी | एक साधारण मध्यमवर्गीय
भारतीय परिवार | तीन बच्चों में एक लड़का
और दो लड़कियां | लड़का हाईस्कूल तथा एक लड़की
एम.ए. में थी, छोटी लड़की
अभी कक्षा सात में ही थी |
श्यामाचरण पता नहीं क्या सोच रहे थे |
सावित्री देवी भी चुप हो
गयीं | अचानक श्यामाचरण की आँखें
खुलीं और उन्होंने आवाज़ लगायी,”बेटा
वैष्णवी ! ज़रा एक गिलास पानी दे जाना |”
वैष्णवी उनकी बड़ी
लड़की थी जिसके विवाह की
चिंता द्विवेदी दंपत्ति को खाए जा रही
थी |
कभी-कभी ऐसा होता है कि जो हम सोचते
हैं वह नहीं होता और जो हम नहीं
सोचते वह होता चला जाता है | इस परिवार में फिलहाल तो ऐसा
ही होता लग रहा था | जैसा कि होता आया है और यह
विडंबना भी है कि हमारे यहाँ लड़की के
पैदा होते ही उसके परिजन उसके विवाह के बारे में
सोचने लगते हैं गोया लड़की-लड़की न
होकर कोई जीती-जागती वस्तु
हो जिसे सजा-धजाकर सिर्फ विदा कर देने को ही लोग
अंतिम सत्य मान लेते हैं और अपने कर्तव्यों की
इतिश्री समझ चैन पाने का प्रयास करते हैं, एक बोझे
के तरीके से क्योंकि जब लड़की पैदा
की है तो यह सब सहना ही है | तिस पर
भी उसका भविष्य सुरक्षित हो गया यह कहा
नहीं जा सकता | माता-पिता ताउम्र लड़की
की ससुराल वालों के एहसान तले दबे रहते हैं, फिर
दहेजरूपी दानव का अज्ञात भय ! स्थिति
की भयंकरता का अंदाज़ा आप लगा सकते हैं | एकाध
अपवाद परिवार अलग हैं जिन्हें स्वीकार करने में
समाज खुद हिचकता है | अब ऐसे तनावयुक्त माहौल में सुधार
की बात कोई करे भी तो कैसे ? यह
किसी एक जने के बस की बात
नहीं पूरे समाज को साथ उठना होगा, बात
तभी बनेगी |
पहले बता देना कहानी के साथ अन्याय होगा इसलिए
देखते जाइये आगे-आगे होता है क्या !
वैष्णवी मिलिंद नाम के किसी युवक से प्रेम
करती थी | मिलिंद भी उसे
बहुत चाहता था | दोनों की दोस्ती कॉलेज के
दिनों से चली आ रही थी |
यह दोस्ती कब प्यार में बदल गयी पता
ही न चला | वैष्णवी जब तक अपने माता-
पिता को यह सब बताती उसकी
शादी पक्की कर दी
गयी, उसने देर कर दी थी |
वैष्णवी जब पानी देकर गयी
तो अचानक वातावरण की चुप्पी तोड़ते हुए
श्यामाचरण जोर-जोर से हंसने लगे मानो कोई खज़ाना हाथ लग गया
हो | सावित्री देवी अचंभित थीं
कि ये अचानक इनको क्या हो गया है !
छुटकी हँसते हुए बोली, ‘शायद पापा को दौरे
पड़ रहे हैं !’
‘तू चुप कर !’, सावित्री देवी ने
अपनी छोटी बेटी को डांटा |
श्यामाचरण अपनी हंसी पर काबू पाते हुए
बोले- ‘क्या भागवान ! तुम भी न बस...वैसे एक्टिंग
कैसी रही मेरी ? फिल्मों में
चरित्र अभिनेता का रोल अच्छा कर सकता हूँ न |’
सावित्री देवी कुछ समझ न
पायीं वे बोलीं- ‘क्या हो रहा है आपको
साफ़-साफ़ बताइए न |’
‘क्या अभी भी तुम सचमुच
नहीं समझीं, तीन बच्चों
की माँ होकर भी जिसमें एक
शादी लायक बेटी भी शामिल है
|’ श्यामाचरण ने चुटकी ली |
सावित्री देवी तुनकी, ‘पहेलियाँ
ही बुझाते रहोगे या या कुछ बताओगे भी,
मेरी तो कुछ समझ में नहीं आ रहा है |’
अपनी हंसी दबाते हुए श्यामाचरण आगे
बोले, ‘तो सुनो, रामदयाल से मेरी बात हो गयी
है | मैं तो तुम्हे हैरान कर देना चाहता था | सच बात तो यह है कि
एकदम हीरा लड़का मिला है अपनी
वैष्णवी के लिए | भगवान् ने हमारी सुन
ली सावित्री |’ श्यामाचरण कुछ भावुक हो
उठे |
सावित्री देवी को सहसा विश्वास न हुआ-
‘क्या सच !! कितने दिनों से आप भागदौड़ रहे थे मैंने सोचा आज
भी...|’
‘अरे अब बातें ही बनती रहोगी
या कुछ चाय-वाय भी पिलवाओगी | इस
समय मैं वाकई थक चुका हूँ | सब जल्दी-
जल्दी निपटाना भी तो है और उसके बाद
अपनी छुटकी भी तो है | फिर
लड़के की शादी और अपना काम पूरा |
आराम से हम दोनों भजन-कीर्तन करेंगे | शेष
जिंदगी आराम से कटेगी |’ श्यामाचरण ने
कहा |
वास्तव में जब विवाह योग्य पुत्री के लिए उपयुक्त वर
मिल जाता है तो लड़की के माता-पिता का खुश होना
लाजमी ही है | सावित्री
देवी ख़ुशी-ख़ुशी चाय बनाने
अन्दर चली गयीं |
वैष्णवी की किस्मत अच्छी
थी | श्यामाचरण ने रामदयाल के माध्यम से जो लड़का
ढूँढा था वह एम.ए. पास नवयुवक खाती-
पीती फैमिली का था | नया जोश
था, परिवार में एकलौता उस पर दहेज़ का पूर्ण विरोधी |
सबसे बड़ी बात तो यह थी कि उसने
वैष्णवी को बिना देखे ही पसंद कर लिया था
| यह अचम्भे की बात थी | कितना
सुशील लड़का है ! श्यामाचरण को वह
पहली ही नज़र में भा गया फिर न करने
का तो सवाल ही पैदा नहीं होता था |
परदे के पीछे वैष्णवी खड़ी
थी | यह सब सुनकर उस पर तो जैसे वज्रपात हुआ
| यह कैसे हो सकता है ? वह खुलकर अपनी बात
कह भी नहीं सकती और
कहे भी तो किससे कहे कौन उसकी सुनेगा
| मिलिंद क्या सोचेगा ! उसने तो अपने भावी पति को देखा
तक नहीं |
शादी की तारीख मुक़र्रर कर
दी गयी | वैष्णवी के सारे
सपने टूट गये | उसे यह सब अच्छा नहीं लग रहा था
| पापा का स्वाभाव वह अच्छी तरह जानती
थी | जवान होती बेटी
सबकी नज़रों में रहती है वह ना न कर
सकी | वैष्णवी को आश्चर्य हो रहा था
कि इस दौरान मिलिंद ने उससे एक बार भी मिलने
की कोशिश नहीं की | मिलिंद
सोचता होगा कैसी धोखेबाज़/बेवफा निकली
वह | वह कैसे अपनी बात कहे ?
इधर घर में रिश्तेदारों का आना-जाना बढ़ गया | पूरे परिवार में उत्सव
का वातावरण छा गया | विवाह की तैयारियां होने
लगीं और आखिर वह घड़ी आ
ही गयी | उदास मन से वह विदा हुई |
बोझिल क़दमों से चल पड़ी अपने अज्ञात प्रियतम के
घर की ओर | दूल्हे के सिर पर सेहरा होने तथा स्वयं
के घूंघट होने की वजह से वह अपने पति को विवाह
के समय भी देख न सकी |
कहीं उसे पछताना न पड़े आदि तरह-तरह के विचार
उसके मन में आ रहे थे |
सुहागरात का समय नजदीक आ गया था |
वैष्णवी की धड़कनें तेज हो
गयीं | वह उत्सुक थी अपने पति का
परिचय जानने के लिए, जिसके साथ उसे अपनी
पूरी जिंदगी बितानी
होगी- उसका जीवनसाथी !
भारतीय नारी की
कैसी विवशता !!
पतिदेव कमरे में प्रविष्ट हुए | वैष्णवी
सिमटी बैठी हुई थी | पतिदेव
ने धीरे से कहा-‘वैष्णवी !’
वैष्णवी को आवाज़ कुछ जानी-
पहचानी सी लगी लेकिन वह
उन्हें क्या कहे ! उसकी कुछ समझ में
नहीं आ रहा था | सहसा पतिदेव ने उसका घूंघट उठाया
| वैष्णवी की आँखें फ़ैल गयीं
| वह चिल्ला पड़ी, ‘अरे मिलिंद तुम !!’
मिलिंद मुस्कुराया | वह उसका प्रियतम मिलिंद ही था |
कैसा संयोग ! वैष्णवी की आँखें
गीलीं थीं | मिलिंद ने कहा,
‘पगली ! ये समय रोने का नहीं है, इट्स
सरप्राइज ! मैं तुम्हे छोड़कर भला कहाँ जा सकता था !’ यह
कहकर उसने अपने होंठ वैष्णवी के होंठों पर रख दिए
| दोनों को इस दिन का अरसे से इंतज़ार था | साध पूरी
हुई | थैंक गॉड ! वैष्णवी की खुशियों का
पारावार न था | भावावेश में दोनों एक दूसरे से लिपट गए |
‘आह ! बंदिशें टूटीं, मिलन की यह वेला
कितनी सुखद, तुम्हारा स्पर्श कितना कोमल !’ मिलिंद ने
वैष्णवी के कान में धीरे से कहा और फिर
बत्ती बुझा दी |
सचमुच यह एक सच्चे प्रेम की विवाह के रूप में
सुखद परिणति थी !



MRITYUNJAY KUMAR DAS



No comments:

Post a Comment