मिले
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पिछली रात से बारिश झमाझम बरस रही थी।
शनिवार का दिन, इंद्रजीत ने ऑफिस जाने के लिए
मेट्रो पकड़ी। बारिश में जगह जगह जलभराव से
ट्रैफिक की दुर्दशा हो जाती है। लंबे ट्रैफिक जाम से
बचने के लिए मेट्रो पकड़ी। ऑफिस जाना जरुरी था,
मैनेजिंग डायरेक्टर के साथ रिव्यु मीटिंग थी। आधे
दिन का ऑफिस पूरे दिन में परिवर्तित हो गया।
पांच बजे इंद्रजीत ऑफिस से निकल कर मालवीय नगर
मेट्रो स्टेशन पहुंचा। बारिश रुकने का नाम ही नहीं
ले रही थी। ऑटो में ऑफिस से मेट्रो स्टेशन तक
इंद्रजीत कुछ हद तक भीग गया। रुमाल से मुंह पोंछा
और मेट्रो स्टेशन पर मेट्रो का इंतज़ार कर रहा था।
दो मिनट बाद एक मेट्रो आई, मेट्रो खचाखच भरी हुई
थी, इंद्रजीत ने वो मेट्रो छोड़ दी। अगली मेट्रो दो
मिनट बाद आई, जिसमें अपेक्षाकृत कम भीड़ थी।
इंद्रजीत ने मेट्रो पकड़ी। बैठने की सीट तो नहीं
मिली, वह दो डिब्बों के बीच की जगह खड़ा हो
गया।
"इंद।"
यह सुन कर वह चौंक गया। उसके घर वाले ही इंद कह
कर पुकारते हैं। उसकी नज़र पास की सीट पर पड़ी। इंदु
बैठी थी, काले रंग के कॉर्पोरेट सूट में। हाथ में कुछ
फ़ाइल थी। एक लंबे अरसे के बाद इंद्रजीत और इंदु एक
दूसरे से मिल रहे थे। आज लगभग बारह वर्ष बीत गए
दोनों को बिछड़े हुए। अचानक से मिले आत्मीयता से,
जैसे कुछ हुआ ही न हो।
"इंडिया कब आई? इंद ने बातचीत शुरू करते हुए पूछा।
"अभी दो दिन पहले आई। तुम बहुत पतले हो गए हो।"
इंदु कहते हुए सीट छोड़ कर इंद के साथ खड़ी हो गई।
"इंदु, खड़ी क्यों हो गई हो, बैठो। अभी भीड़ हो
जायेगी।" इंद ने इंदु को बैठने के लिए कहा। तब तक एक
थोड़े बुगुर्ग से सज्जन उस सीट पर बैठ चुके थे।
"कोई बात नहीं।" कह कर उसने आगे बात बड़ाई "पतले
हो गए, क्या बात है?"
"नहीं तो, मुझे फर्क नहीं लगता।"
"है, फर्क है, देखने से लग रहा है। ध्यान रखो अपना।"
मन ही मन इंद्रजीत सोचने लगा कि जब ध्यान रखने
वाली ही छोड़ गई। किसके लिए ध्यान रखे। थोडा
मोटा क्या या पतला, सब ठीक है। लेकिन बात मुख
पर नहीं लाया। बात बदली "कहां रुकी हो।"
"होटल कनॉट, कनॉट प्लेस।"
"मेट्रो में कैसे?"
"आज बारिश बहुत है। गुड़गांव गई थी, मीटिंग में।
चारों तरफ ट्रैफिक। इसलिए मेट्रो पकड़ ली। तुम
कहां?"
"घर।"
"बदला या फिर वही?"
"वही घर, गुजरांवाला में। चलो घर चलो।"
शायद इंदु को यह उम्मीद नहीं थी कि इंद उसे घर
बुलाएगा। "अभी नहीं, कल सुबह छः बजे की फ्लाइट
से चेन्नई जाना है। वहां मीटिंग है, फिर बंगलुरु, मुंबई।
काफी बिजी शेड्यूल है। फ़ोन नंबर दो। बात फ़ोन पर
तो होगी न।"
"अनंत कैसा है?" इंद ने अपने और इंदु के पुत्र के बारे मैं
पूछा।
"ठीक है, अपनी नानी के पास रहता है।"
"अपने साथ ले आती। मैं भी मिल लेता।"
"इतने बिजी शेड्यूल में मेरे साथ क्या करता। एक
महीने तक इंडिया में हूं, पर एक जगह नहीं, कही एक
दिन और कहीं दो दिन। तुम बताओ, कैसी चल रही है
लाइफ।"
"एकदम मस्त, कोई रोक टोक नहीं। सुबह ऑफिस, रात
घर।"
"छुट्टी वाले दिन क्या करते हो?"
"कुछ खास नहीं। आराम, कुछ पढ़ना, कुछ लिखने की
कोशिश करता हूं। नरेंद्र (इंद्रजीत का छोटा भाई) के
बच्चे बड़े हो गए। सब की अपनी दुनिया है।"
"शादी कर लेते?"
"की थी तुमसे, तुम्हारे जाने के बाद सोचा नहीं। तुम
कहो, कैसा है तुम्हारा पति।"
"स्टीफंस है। उसी की कंपनी में काम करती थी।
अच्छा है, काम करते करते प्यार हो गया, फिर
शादी। वो भी इंडिया अगले हफ्ते आ रहा है। यहां
जॉइंट वेंचर करने के लिए मैं आई हूं। इसलिए कई
कंपनियों से मिलना है।"
"अनंत तुम्हारी कमी महसूस करता होगा।"
"वहां की ज़िन्दगी यहां से जुदा है। वहां बच्चे बड़े
हो कर अलग रहते है। अपनी नानी के पास रहता है।
किस चीज की कमी नहीं। नानी की अपनी
बेहताशा सम्पति है। चिंता किस बात की नहीं है।"
"अनंत की उम्र 15 होगी। अमेरिका में बड़े हो जाये,
यहां तो छोटे माने जाते हैं।"
"अमेरिका और इंडिया में बहुत अंतर है।"
"साफ़ नज़र आ रहा है। आज भी क्या तुम पैसे को
प्यार से अधिक बड़ा मानती हो।"
"न मानने वाली कोई बात नहीं। पैसा हमेश
सर्वोपरि रहा है और आज भी है।"
"हां, अधिकतर लोग ऐसा मानते हैं।"
"शायद तुम्हारा नजरिया नहीं बदला। तुम आज भी
प्यार को महत्व देते हो।"
"बिलकुल।"
इंदु हंस पड़ी और इंद्रजीत अतीत में चला गया। दोनों
कॉलेज में एक साथ पड़ते थे। प्यार हुआ। शादी हुई। इंदु
का परिवार अमीर था, किसी चीज़ की कमी
नहीं। इंद्रजीत का परिवार मध्यवर्गीय और संयुक्त।
इंद्रजीत को परिवार में आर्थिक मदद भी करनी
पड़ती थी। इंदु को अभाव में जीने की आदत नहीं थी,
वह अपने माता पिता से आर्थिक मदद लेती थी जो
इंद्रजीत को पसंद न था। धीरे धीरे दोनों की दूरियां
बढ़ती गई और तलाक हो गया। पांच वर्ष शादी के
बाद तलाक के समय उनका पुत्र तीन वर्ष का था। मां
इंदु को उसकी कस्टडी मिली। कुछ समय बाद इंदु
अमेरिका चली गई। आज बारह साल बाद दोनों
मिले। तभी मेट्रो की घोषणा (अगला स्टेशन राजीव
चौक है) से इंद्रजीत वर्तमान में आया।
"इंदु, तुम्हारा स्टेशन आ गया है।"
"बाय इंद, फ़ोन करूंगी। समय मिला तो जरूर मिलेगें।"
"मिलें तो ख़ुशी होगी।"
"जरूर।" और इंदु राजीव चौक मेट्रो स्टेशन पर उतर गई
और इंद्रजीत ने गुजरांवाला के लिए अपना सफ़र
जारी रखा।
Sunday 4 October 2015
The Story- मिले
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