Friday 2 October 2015

The story- चीनी कितने चम्मच

चीनी
कितने चम्मच
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मैंने झुंझलाते हुए रिजर्वेशन चार्ट में अपनी
सीट देखी , आदत से मजबुर अपने बगल
वाली सीट के यात्री का विवरण
भी देखने लगा , नाम : रूचि मिश्रा , उम्र , 27 साल .
सोचा चलो सफर अच्छा रहेगा , " रूचि मिश्रा" कुछ सुना सा नाम लगा
, फिर खुद पर ही हँसते हुए सोचा की
मुझे तो सारे भारत भर की लडकियाँ जानी
पहचानी लगाती है ..
दिल्ली वाले मामा ने मेरी शादी के
लिए एक लड़की देखी थी
,और चाहते थे कि मै आ कर लड़की देख लू ,माँ कि 3
दिन की भूख हड़ताल और पापा के असहयोग
आन्दोलन के बाद मैने अपने हथियार डाल दिए थे और आज
कानपुर से दिल्ली जा रहा था ,लड़की देखने
के बाद कौन कौन सी कमियाँ निकाल कर रिश्ते के लिए
मना करना है उसके 26 बहाने अभी तक मै सोच चुका
था , अभी तक लगभग 18 लड़कियों को मै ऐसे
ही मना कर चुका था ,
लड़की देखने की औपचारिकता के बाद
दिल्ली वाले दोस्तों के साथ मस्ती का फुल
प्लान रेडी था .
खैर ट्रेन चलने के 4 मिनट पहले मुझे अपनी बगल
की सीट के लिए आती जो
लड़की दिखी उसे देख कर मै चौक गया .
अरे ये तो वही है जिसने कल " Kanpur Womens
Bank " का उदघाटन किया था ,और बतौर पत्रकार मैंने उस
कार्यकम को कवर किया था , ह़ा रूचि मिश्रा नाम ही तो
था , बैंक ऑफ विमेंस की Zonal Head
.काफी अच्छा बोली थी ये कल
, मै काफी प्रभावित हुआ था इनके विचारो से ,मैंने ध्यान
से रूचि को देखा ,हल्का गोरा रंग माथे को ढ्पाते लम्बे बाल , सफेद
कुर्ती ,नीली जींस
,माथे पर पेंट की छोटी सी
पिली बिंदी ,और कोई मेंअप
नही कोई दिखवा नही , आँखों में
जिंदगी की वो चमक जो किसी
को भी जीना सिखा दे , उसकी
सुन्दरता उतेजना नही शांति देने वाली
थी .
जैसे जैसे ट्रेन की रफ्तार बढ़ रही
थी हमारी बाते भी रफ्तार
पकड रही थी , मेरे अंदर का पत्रकार
जग गया था , और वो रूचि से सवाल पर सवाल किये जा रहा था .
" तो रूचि जी ! , आपने अब तक शादी क्यों
नही की ..? " मैंने बरबस ही
सवाल किया .
जवाब देने की जगह रूचि कुछ पलो के लिए मेरे चेहरे
को देखती रही जैसे कुछ तलाश
रही हो , मुझे लगा गलत सवाल कर लिया है
" मेरा नाम भले ही रूचि हो , लेकिन कभी
अपनी रूचि का कुछ नही कर
पायी , अपने लिए कुछ अपने मन का करना था , इस
लिए नही की शादी " एक
चुप्पी के बाद रूचि ने जवाब दिया .
"मतलब , मै समझा नही ..? " मैंने उलझन भरे
लहजे में पूछा .
रूचि ने कहना शुरु किया " मै उत्तर प्रदेश के छोटे से जिले से हू ,
छोटे शहरों की लड़कियों को बड़े सपने देखने का हक
नही होता , मुझे भी नही था ,
माँ को 3 बेटियाँ थी , ये उनका वो गुनाह था जिसमे
उनकी कोईं गलती नही
थी , फिर भी उनको हरदम
इसकी सजा मिली . हमारे यंहा लडकियाँ को
इस लिए पढ़या जाता है ताकि वो पति के लिए तकिये पर " तुम कब
आओगे " काढ़ सके , मुझे मैथ पसंद थी लेकिन घर
वाले चाहते थे मै होम साइंस पढू , मुझे ऊची कूद पसंद
पर सब चाहते थे की मै लेडिज संगीत में
ढोलक बजाना सिखु , मेरे कुछ सपने थे जिन्हें मै पूरा करना
चाहती थी ,और घर वाले शादी
करके बोझ से छुटकारा "
" ह्म्म्म्म ..." मैंने एक लम्बी साँस ली
और पैंट्री वाले से 2 चाय लाने के लिए बोला ,
" फिर ? "
" फिर क्या ? हर हफ्ते नीलामी वाले आने
लगे , रुचि हल्की मुस्कान के साथ बोल
रही थी , " जब लड़के वालो को आना होता
था तो बेडसीट बदली जाती
थी , कमरों के परदे बदले जाते थे ,काश हम खुद को
भी बदल पाते ,बोन चाइना वाले कप निकाले जाते ,और
एक लाल साड़ी में मुझे पैक करके उनके सामने बिठा
दिया जाता , माँ पापा मेरे उन गुणों का बखान शुरू कर देते जो मुझे में है
मुझे पता भी नही था , तरह के सवाल
होते , पसंद नपसंद पूछी जाती ,
( काश कभी कोई मेरी पसंद
भी पूछता ) किसी को शाकाहारी
बहू चाहिए थी तो किसी को
मांसाहारी , किसी हो घर सम्हालने
वाली तो किसी को नौकरी
वाली , मोल भाव होता
( हर लड़के की एक market value है ये मुझे
पहले नही पता थी ) और इन सब के
बीच में मै हो कर भी नही
होती थी , मुझे इस
नीलामी में सिर्फ 5 शब्द बोलने
की इजाजत थी ताकि किसी को
ये न लगे की मै गूंगी तो नही ,
जानते हो वो 5 शब्द क्या थे .? "
" नही आप बताये ? " मै खुद को अजीब
सी बैचेनी में घिरा पा रहा था , उन दर्जनों
लडकियों के चेहरे मेरी आँखों के सामने आ रहे रहे
जिन्हें मैंने किन्ही न किन्ही वजहों से
मना कर दिया था .
" चीनी कितने चम्मच लेगे आप ? " रूचि
ने मुस्कुराते हुयी बोली ?
" मतलब " ??
" चीनी कितनी चम्मच लेगे
आप " यही वो 5 शब्द थे जो मुझे अपनी
नीलामी के दौरान बोलने थे , " रूचि ने
मेरी आँखों में देखते हुए बोला .
"...जी " मै बस इतना ही बोल सका
" शुरू में कुछ दिन तो सब साथ थे ,फिर ..
देखे जाने के अगले दिन तक कोई न कोई नयी वजह
आ जाती थी , जिस की वजह
से रिश्ता नही हो सकता था , हर बार रिश्ता टूटने के
बाद पिता जी माँ को शराब पी कर पिटते थे ,
जिस रिश्ते के होने की जीतनी
उम्मीद होती उसके न होने पर माँ को मार
उतनी ही ज्यादा पड़ती
थी , पिता माँ को हम सब के बकरी कह के
बुलाते थे क्युकी उनका बझस्थल छोटा था , इस लिए वो
उन्हें कभी सम्पूर्ण स्त्री
लगी ही नही "
मैं निशब्द सा सिर्फ उसे सुन रहा था ,शायद उस से नजरे मिलाने
की हिम्मत नही थी मुझ में
,मेरे सारे सवाल दम तोड़ चुके थे।
एक छोटी चुप्पी के बाद रूचि ने फिर बोलना
शुरू किया " जब 23वी बार भी
मेरी नीलामी असफल
रही तो पिता जी ने गुस्से में माँ का सर फोड़
दिया , मुझे भी मारा जिसका निशान अभी
भी मेरे चेहरे पर है , " मैंने न चाहते हुए
भी उसके चेहरे को देखा , माथे पर एक चोट का निशान
था ,जिसे रूचि ने बहुत सफाई से बालो से छुपा रखा था . " ये चोट तन
ज्यदा मन पर थी , मै माँ जैसी
जिंदगी नही गुजरना चाहती थो
,मै अपने कल किसी और के हाथो में नही
दे सकती थी , अब खुद को और
नीलाम नही करवा सकती
थी , मैंने घर छोड़ने का फैसला किया , और
उसी दिन उस घर को हमेशा के लिए छोड़ दिया , और जो
हू आपके सामने हू .. " आँखों में हल्की
नमी के साथ रूचि ने अपनी बात खत्म
की .
2 मिनट की चुप्पी के बाद मैंने पूछा " और
माँ ?"
वो भरे गले से बोली " बस यही गम
ही जी मै माँ अपने साथ न ला
सकी , मैंने उन से बोल था मेरे साथ चलो पर अपना घर
छोड़ कर आने को तैयार न हुयी ,... अपना घर जिसने
उन्हें कभी अपना माना ही
नही .."
मुझे लग रहा था की मेरे सामने रूचि मिश्रा
नही एक आइना रखा है ,जिसमे अपना वो रूप देख रहा
हू , जिस से मै बिलकुल अनजान रहा , मैंने मामा को sms कर दिया
था , मै लड़की नही देखना चाहता , मुझे
अभी शादी नही
करनी , और अब मै किसी
लड़की की नीलामी
में शामिल नही होना चाहता
पैंट्री बॉय चाय दे गया था , चाय बनाते हुए अचानक से
मेरे मुह से निकला " चीनी
कितनी चम्मच लेगी आप ...? "

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