हाशिये के लोग
, मेरे एक दोस्त के बहन
की शादी होने वाली
थी।शादी पटना के एक
कम्युनिटी हॉल में होनी थी।
हमारी हैसियत चाहे जितनी भी
हो ,हर कोई उससे बढ़ कर शादी में खर्च करना चाहता
है....।राहुल के माँ-बाप ने भी अपनी
बेटी के लिए एक डॉक्टर वर ढूँंढा था । राहुल और
उसकी बहन प्रिया दोनों ही एक
ही क्लास में हमारे साथ पढ़ते थे । प्रिया उम्र में
राहुल से बड़ी थी।राहुल इस
शादी को लेकर बहुत उत्साहित था।उसने अपने सारे
दोस्तों को शादी में आने का न्यौता दे रखा था.....
.... 6 लोगों की मण्डली
उस दिन मोकामा स्टेशन पर इकट्ठा हो गयी
थी।हम ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे....।हमलोग ढाई
बजे स्टेशन पर आ गए थे और ट्रेन सवा तीन बजे
की थी।6 लोगों में
मैं,सौरव,नितीश,विमलेश ,विकास और रितेश थे।विकास
हम सब में सबसे लंबा और स्मार्ट था।वह जब कोर्ट पैन्ट और
चश्मा पहन लेता था तो रणवीर कपूर से कम
नहीं लगता था.....एकदम उज्जवलवर्ण और 6
फ़ीट 2 इंच की लंबाई उसके स्मार्टनेस को
और भी समृद्ध करती
थी....।
हमारी ट्रेन आई और हमने एक
पूरा कम्पार्टमेंट खाली देखकर वहाँ अपना कब्जा जमा
लिया। मोकामा से पटना जाने में कोई एक्सप्रेस ट्रेन सवा से डेढ़ घंटे
का समय लेती है ।अकेले होने पर ये समय बिता पाना
थोड़ा मुश्किल होता है ।लेकिन जब 6 लोगो की
मण्डली हो तो वो भला शांत कैसे रहते...।बहस शुरू हो
गई ...बहस का मुद्दा था कौन ज्यादा ताकतवर है -अनुज सिंह या
चंद्रभान...। अनुज सिंह विधायक थे।वहीं चन्द्रभान
पहले सांसद रह चुके थे।विकास जहाँ अनुज सिंह का भक्त था,तो
रितेश भी चन्द्रभान का उतना ही बड़ा
समर्थक......।बाकी के चारो बस उस बहस में
हल्की सी अपनी टाँग अड़ा
कर अपना टाइम पास करने में लगे थे। बहस में हँसी
मजाक भी खूब हुआ । सामने साइड लोअर पर
बैठी एक दंपत्ति भी हमारी
बातों से आनंदित हो उठती थी।विकास थोड़ा
बरबोलेपन का शिकार था और कभी- कभार अमर्यादित
भाषा का प्रयोग भी कर रहा था।वाद-विवाद ,तर्क-वितर्क
चलते रहे....। निष्कर्ष में विकास ने चंद्रभान को
दिमागी कसरत का विजेता माना ,तो वहीं रितेश
भी इस बात से इनकार नहीं कर पाया ,कि
अनुज सिंह का खौफ पूरे बिहार में सबसे ज्यादा है।
.....इसी बीच 13331 अप
धनबाद पटना इंटरसिटी राजेंद्रनगर टर्मिनल पहुँच
गयी। शाम के 6 बज गए थे....।गाड़ी
समय से थोड़ा लेट थी।हमलोगों को राहुल ने पहले
ही बता दिया था की हमें रामप्रसाद
कम्युनिटी हॉल जाना है। और यह
कम्युनिटी हॉल कंकड़बाग के हनुमान नगर में है । मैं
और नीतिश इस इलाके से काफी अच्छे ढंग
से परिचित थे। हमने अपनी 10+2 की
पढ़ाई समाप्त करने के बाद अपने जीवन का एक साल
वहीं बिताया था। हमलोग राजेंद्रनगर टर्मिनल से
दक्षिण की ओर बाहर निकले । ऑटोवाले एक-एक कर
हमसे हाजीपुर..... हाजीपुर.....पूछे जा
रहे थे। विकास ने फिर बड़ी ही
बेबाकी से उन्हें मना किया। सौरव हममे से सबसे
सीनियर मेंबर थे। उन्होंने विकास को डाँट
भी लगाईं। लेकिन विकास की उम्र 23साल
होने के बाद भी उसका लड़कपन अभी गया
नहीं था। हमलोगों ने काफी कम-
बेसी करवाने के बाद 50रूपये में हनुमान नगर के लिए
एक ऑटो बुक किया और चल पड़े..........।
थोड़ा घूमते-फिरते जब हमलोग कम्युनिटी हॉल
पहुँचे तो पौने सात बज चुका था।अँधेरा पूरी तरह अपना
साम्राज्य फैला चुका था...।पूरे कम्युनिटी हॉल
की सजावट अब काफी अच्छी
लग रही थी। कम्युनिटी हॉल
देखकर किसी को भी अंदाजा हो जाता कि
राहुल के पापा ,जो कि एक बिजनेसमैन हैं,ने अपनी
इकलौती बेटी की
शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी
थी। कम्युनिटी हॉल में दो फ्लोर थे। ऊपर
वाला लड़कीवालों के लिए और नीचे वाला
लड़केवालों के लिए था.....।पण्डाल काफी बड़ा और
लाइट ,झूमर ,बल्ब आदि से सुसज्जित था। एक बड़ा सा स्टेज
जिसपर जयमाल होनी थी
काफी अच्छे से फूलों से सजाया गया था। स्टेज के
आसन्न डी जे म्यूजिक लगा था और कृत्रिम डान्स
फ्लोर भी बना था। स्टेज के ठीक सामने
करीब-करीब ढाई सौ गद्दे वाली
कुर्सियों को उजली पोशाक पहना दी
गयी थी। हमसब सजावट का आनंद ले
रहे थे ....विमलेश थोड़ा खाने-पीने का
शौक़ीन था । उसने तपाक् से पूछा-'यार ये खाने-
पीने का आइटम कहाँ है?' इतने में राहुल आ गया....।
उसने भी हमारी खातिरदारी में
कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
उसका सबसे पहला औपचारिक सवाल-"आने में कोई दिक्कत तो
नहीं हुई न......." फिर वो हमें चाउमिन और गुपचुप
के स्टाल की तरफ ले गया। वैसे भूख तो हम सब को
लग आई थी लेकिन इसका ठीकड़ा विमलेश
पर फोड़ दिया गया । रितेश ने कहा-"ठीक किये जो यहाँ
ले आये वरना विमलेश को तो हार्ट अटैक आ जाता। उसे खाने-
पीने का स्टाल ही नहीं मिल पा
रहा था।"फिर रितेश ने राहुल के सामने पण्डाल और सजावट
की काफी तारीफ़
भी की ।हुमलोग चाउमिन खाने में व्यस्त
हो गए....। चाउमिन का टेस्ट काफी फीका
था। सभी ने एक-एक कर कहा-"चाउमिन
ठीक नहीं है।"इस पर विमलेश
की प्रतिक्रिया थी-"हाँ
यार........,काफी ठंडा था...।कुछ और खाने का ट्राय
करें क्या?"इस पर सारे लोगों ने एक-साथ ठहाका मारा। फिर सबसे
पहले विमलेश की ही नजर गुपचुप पर
पड़ी । "चलो अभी वहाँ भीड़
थोड़ी कम है। जल्दी चल के खा लेते हैं।
"हमसब गुपचुप की तरफ बढ़े।इतने में
नितीश ने कहा-"लगता है गुपचुप का भी
स्वाद खराब ही होगा। शादी ब्याह में इन
सारी चीजों को थोड़े ही ना कोई
टेस्टी बनाता है।" शुरुआत मैंने ही
की। जैसे ही पहला गुपचुप मुँह में लिया
कि मजा आ गया।मैंने जल्दी से मुँह वाला गुपचुप ख़त्म
कर कहा-"ये तो एकदम सुपर्ब है...... ।"मेरे बोलते
ही मेरे बाद गुपचुप खा रहे रितेश ने कहा-"रवि एकदम
सही कह रहा है....." हमलोगों ने लगातार 15मिनट
तक गुपचुप का आनंद लिया फिर पंडाल की ओर घूमने
चल दिए........।
.....थोड़ी देर तक पंडाल में
चहलकदमी करने के बाद मैंने टाइम देखने के लिए
मोबाइल निकाला और नजर बैटरी पर पड़ी।
14%। काफी कम हो चुका था । मैंने सौरव दा से
कहा-"अजी चार्जर दीजिये.... ,मोबाइल
चार्ज करना है।"उन्होंने चार्जर निकाल कर दे दिया । मैं और राकेश
ये बोलते हुए छत पर चले गए कि बारात आये तो एक मिस कॉल दे
दीजियेगा........।रितेश मेरे साथ इसलिए ऊपर आया
क्योंकि उसकी गर्लफ्रेंड भी ऊपर आई
हुई थी। हमदोनो दो कुर्सी पर बैठकर
मोबाइल चार्ज करने लगे....। अब चूँकि शादी का माहौल
था तो कई परिचित-अपरिचित चेहरे दिख रहे थे। नजर ज्यादातर
लड़कियों पर ही ठहर रही थी
। इसी बीच रितेश ने अँगुली से
इशारा कर बताया-"वो हरे सूट में देख रहे हो....वही
मेरी गर्लफ्रेंड है।" हालाँकि वो लड़की
देखने में मुझे अच्छी नहीं
लगी,फिर भी अगर कोई आपके साथ
बैठकर आपका मोबाइल चार्ज करने में आपको कंपनी
दे रहा हो तो आप सीधे तौर पर अपनी इस
इच्छा को प्रकट नहीं कर सकते...। मैंने कहा-"हाँ
यार माल है एकदम ये तो ...!" उसके साथ नीले सूट में
जो लड़की थी वो भले ही
थोड़ी अच्छी थी। पर
अभी मेरा सारा ध्यान अपने मोबाइल की
बैटरी पर केंद्रित था.......।
जैसे ही मेरे मोबाइल की
बैटरी 50%हुई,विमलेश हमे बुलाने छत पे आ
गया-"बरात आ गयी है.....जल्दी
नीचे चलो......।"हमे भी गाजे-बाजे और
पटाखे की आवाज आने लगी
थी।हमदोनो नीचे गए। लड़के को देखा तो वो
काफी सुन्दर अवतरित हुए ।गोरा सा
चेहरा,बड़ी-बड़ी आँखें,हल्की
मगर चौड़ी मूँछे ,एक सफ़ेद पगड़ी और
सफ़ेद सिरवानी में लड़का एकदम राजकुमार दिख रहा था।
राहुल मेरे बगल में खड़ा था। मैंने कहा-"यार,प्रिया और
इनकी जोड़ी क्या मस्त
लगेगी!प्रिया भी कितनी सुन्दर
है ,है ना....?"
अब चूँकि बारात पटना से ही आई
थी तो दरवाजा लगाने वाली रश्म
पूरी करने के लिए बारात को पास में ही कुछ
दूर तक घुमा कर लाने का प्रबंध किया गया। झारगेट लिए कुछ लोग
,एक गवैया और उसका बैंड आगे-आगे और हम पीछे-
पीछे .....।आज मेरे यार की
शादी है....,ऐ राजा राजा राजा करेजा में समा
जा....,तानी सा जीन्स ढीला
कर.......,आदि गाने बज रहे थे।हम दाहिने-बाएँ छतों से झाँकते लोगों
को ताकते आगे बढ़ते रहे।उन लोगों को देखकर हमारे
बीच बहस भी चलती
रही।"......नहीं यार दूसरी
मंजिल पर वाली अच्छी
थी...." "क्या बात कर रहे हो यार दाईं ओर
बालकनी में देखा एकदम परिणीति जैसा
फिगर था उसका...! " इसी बीच राहुल आ
गया -"यार चलो,नहीं तो बारात वाले वापस आ जाएँगे तो
फिर खाने में काफी भीड़ हो
जायेगी।" मोकामा वगैरह में शादी
होती तो कुर्सी टेबल पे बिठा के कुछ लोग
आपको खाना खिला देते।मगर कम्युनिटी हॉल में ये
सारी व्यवस्था कहाँ......वहाँ तो बस प्लेट हाथ में
लेकर भिखारियों की तरह कतार में धीरे-
धीरे आगे बढ़ते रहते हैं।स्टाल पर यूनिफार्म में सजे-
धजे लड़के आपकी प्लेट में खाना डालते रहते हैं.....।
हमलोग वापस पंडाल में आ गए थे।लोग नीचे
घूम रहे थे। वापस आने पर हमने देखा ,सच में भीड़
काफी बढ़ गयी थी।
काफी लोग आ चुके थे।खाने-पीने का
कार्यक्रम भी आरम्भ हो चुका था। इन्हीं
सब के बीच मेरी नजर एक
लड़की पर पड़ी।हल्के पीले
रंग का स्लीवलेस सूट पहने वो लड़की
एकदम दुबली-पतली थी।
आज के इस दौड़ में तो जीरो फिगर का चलन
ही बन गया है।इसमें एक और मोहतरमा उस तरह
की.......।आँखें भी उसकी
कमाल की थीं।शायद आँखों को सजाने में
भी उसने कोई कसर नहीं
छोड़ी थी।पूरा चेहरा मेक-अप से ओत-प्रोत
था।वह शायद यह सोचकर ही आई थी कि
शादी में आकर्षणकेंद्र केवल वही
बनी रहे....।उस सूट के साथ मैचिंग दुपट्टे को जहाँ
होना चाहिए था ,वो वहाँ नहीं था।दुपट्टा हाथों पर लटक
रहा था।आज के फैशन में शायद यही दुपट्टे
की जगह बन गयी है।हम सब
की आँखें उस लड़की पर
जमी थीं....वो पीछे
पलटी ... ये क्या....!उसके सूट के पीछे
एक बड़ा गोलाकार भाग खाली था।वहाँ से
उसकी पीठ दिख रही
थी।यह भी उसकी डिज़ाइन का
ही हिस्सा था शायद....और आकर्षण का एक और
बिंदु...सभी दोस्त उसकी सुंदरता के गुण गा
रहे थे।कोई उसे दीपिका पादुकोण की तरह
बता रहा था तो कोई उसकी आँखें शिल्पा सी
कह रहा था।लड़की तो अच्छी लग
रही थी लेकिन जम नहीं
रही थी।इतने में विमलेश मेरे पास आया
और बोला-"क्या देख रहे हो....बिना मेक-अप के देख लोगे तो डर
जाओगे।" मैंने कहा-"बिलकुल सही कह रहे हो तुम
।" विमलेश की नजरें भी एकदम
पारखी थीं।उसे भी लड़कियों
की असली सुंदरता की पहचान
थी।फिर राहुल का आगमन हुआ।"तुमलोग खाना क्यों
नहीं खा रहे....जल्दी से खाना खा लो....।
खाना खा लो फिर आराम से शादी का आनंद लेते
रहना...।" इसी बीच विकास ने
चुटकी ली-"आनंद...आनंद
ही आनंद है यहाँ.....।" हमलोग अब खाने
की तरफ बढ़े।प्लेट ली और एक-एक कर
के एक स्टाल से दूसरे स्टाल तक सरकते रहे।
सभी के प्लेट में खाना था और हम गोलाकार
होकर खड़े हो गए थे।खाना खा रहे थे और साथ-साथ बातें
भी कर रहे थे।विमलेश ने
कहा-"पीली वाली को छोड़ो वो
देखो गुलाबो मैडम....।" गुलाबी रंग के सूट में एक और
सुन्दर युवती दिखी। विकास ने कहा-"यार
,कोई जीन्स-टॉप वाली नजर
नहीं आ रही...।" विमलेश-"अरे छोड़ो हमे
क्या....?" । वैसे गुलाबी सूट वाली
भी काफी खूबसूरत थी ।चेहरे
पर मेक-अप भी कम था और दुपट्टा भी
अपनी जगह पे था। विमलेश को तो यह
लड़की भा गयी थी।वह तो बस
उसका आसक्त हो गया था।
मेरा खाना ख़त्म हो गया था और मैं अपनी
प्लेट रखने के लिए इधर-उधर जगह खोजने लगा।कुछ प्रयास के
बाद मुझे एक घनाभाकार प्लास्टिक का डब्बा मिला ,जिसमे पहले से
5-10 प्लेटें रखी हुई थीं।मैं
भी अपनी प्लेट उसमें रख आया।मेरे
प्लेट रखते ही दो बच्चे जिनकी उम्र
यही कोई 8 या 10साल रही
होगी ,डब्बा उठाने के लिए वहाँ आ गए । मैंने उन्हें
देखा...। दोनों हाफ पैंट में नंगे पाँव थे। एक ने हाफ शर्ट पहन
रखी थी,तो दूसरे ने अपनी बाँह
को ऊपर तक मोड़ ली थी। मेरे प्लेट रखते
ही वो जल्दी से उस डब्बे को ले गए।दोनों
बड़ी मुश्किल से उस डब्बे को उठाकर ले जा रहे थे।
उन्होंने उस डब्बे को उठाकर 5 6बार रखा होगा उसके बाद
ही वो उसे पंडाल के पीछे ले जा सके ।
पंडाल के पीछे तीन और बच्चे
इतनी ही उम्र के प्लेट धोने में लगे
थे.......।
मैं थोड़ी देर तक उनको देखता रहा फिर हाथ
धोकर पंडाल में आ गया।वो दो बच्चे फिर से प्लेट उठाकर ले जाने में
लग गए थे। इतनी मुस्तैदी से वो प्लेट
उठा रहे थे जितना मुस्तैद होकर सेना का कोई जवान
सीमा पर अपनी ड्यूटी देता है।
उनके माथे पर कोई सिकन नहीं दिख रही
थी और वो अपने काम में पूरी तरह
तल्लीन दिख रहे थे।पूरे जोश और उमंग के साथ वो
डिब्बे में रखी प्लेट को उठाकर पीछे पहुँचा
रहे थे।दोनों एक-एक किनारे से डब्बे को पकड़े,
साइड......साइड.....बोलते हुए पंडाल के बाहर जा रहे थे...।
मेरी नजर अब इन बच्चों पर जा
टिकी थी।अब सारी सुंदर
युवतियाँ मेरी नजरों से ओझल हो गयीं
थीं।मुझे उन बच्चों की मासूमियत ने
अपनी ओर आकर्षित कर लिया था।और मैं उनके
क़त्ल किये गए बचपन पर केंद्रित हो गया था।अब न तो उस
पीली सूट वाली के बालों
की सुंदरता दिख रही थी न
ही एक गदराई टॉप वाली के वक्ष मुझे
आकर्षित कर पा रहे थे।मैं तो बस देखे जा रहा था,डांस फ्लोर पर
डांस करते शादी में आये कुछ बच्चों को ......कितने
स्वतंत्र हैं ये बच्चे.....दुनियादारी की कोई
समझ इन्हें अभी नहीं है। और हो
भी क्यों ......!इनकी उम्र
अभी इन सारी बातों से परिचय पाने का
नहीं था। वो उन्मुक्त बिना थके हनी सिंह
के गाने पर नृत्य किये जा रहे थे....।
मैं अब एक सोच में डूब चुका था।मैं ये सोच रहा था ,ये
भी बच्चे ही हैं और प्लेट उठाते और
धोते वो भी बच्चे ही हैं।उम्र
भी बराबर ही है।एक को पैसे
अभी बस माँ-बाप से मिलते है ,सिर्फ इतना
ही पता है।वहीं दूसरे को पैसे के लिए ना
जाने कितनों को माँ-बाप बनाना पड़ता है।मैं खड़े-खड़े इन दोनों बच्चों
की जिंदगियों की तुलना करने में लग गया।
मेरी नजरें नीचे प्लेट से भरे डब्बे पर
जम गयीं थीं।इतने में विमलेश आया-"क्या
हुआ तुम्हे...किसकी याद में खोये हो ,चलो उधर देखो
बच्चे कितना अच्छा डांस कर रहे हैं।" मैंने अपने चेहरे पर
बनावटी मुस्कान लाते हुए कहा-"हाँ,मैं भी
अभी देखकर आया हूँ।" "अरे यहाँ क्या
करोगे......चलो उधर ही....।" और वह मेरा हाथ
पकड़ कर उधर ले गया।पर मेरा मन तो प्लेट उठाते बच्चों पर हिम
की भाँति जम गया था। इसे अलग-अलग तरह के आते
विचारों ने अपने चक्रव्यूह में घेर लिया था । इन विचारों का शिकंजा
इतना जबरदस्त ढंग से कसा था,कि किसी और विचार का
पदार्पण नामुम्किन सा हो गया था।न तो सुन्दर युवतियों का और ना
ही इस शादी को देखकर
अपनी शादी करने के लिए
किसी प्रकार के विचार का अविर्भाव मेरे मन में हुआ।
जयमाल की रश्म शुरू हुई।मैंने अनमने ढंग
से दूल्हा-दुल्हन का फ़ोटो लिया।घरवालों को भी तो देखना
होता है ना कि जिस शादी में आप गए हो उसके दूल्हा-
दुल्हन दिखते कैसे हैं। जयमाल की रश्म ख़त्म होने
के एक घंटे बाद करीब साढ़े 11 बजे जब यह बोला गया
कि जो भी बचे हों खाना खा लें वरना काउंटर हटा दिया
जाएगा। तब मैंने देखा ,प्लेट धो रहे लड़के सबसे अंत में खाना खा
रहे थे। बड़ी ही जल्दी-
जल्दी वो खाना खा रहे थे। शायद खाना खाने में दिखाई दे
रही जल्दबाजी उनकी
दहकती जठराग्नि की परिचायक
थी। उन्होंने जल्दी जल्दी
खाना खाया और फिर प्लेट धोने में लग गए।
थोड़ा और समय बीता,विवाह का कार्यक्रम
धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
शादी का मण्डप ऊपर था और विवाह की
रश्में भी वहीं चल रही
थीं।मैं नीचे पंडाल में बैठा सोच रहा था,कोई
बच्चा कितना बेफिक्र है अपनी जिंदगी से
....और उसी की उम्र का दूसऱा बच्चा
अपनी और अपने परिवार की
जिंदगी का बोझ अपने कंधे पर उठाये घूम रहा है। एक
को ये भी पता नहीँ कि जिंदगी
क्या है....और एक को जिंदगी ने क्या-क्या सिखा दिया।
मैंने देखा एक बच्चा जिसकी उम्र कोई 7 साल
होगी,डिस्पोजल ग्लास निकालकर टेबल पर रख रहा था।
मैं उसके पास गया और मैंने उससे पूछा -"क्या नाम है तुम्हारा?"
"गोलू"
"पढाई करते हो?"
उसने सिर हिलाकर हाँ कहा। उसकी आँखों में मासूमियत
का दरिया बह रहा था। बड़े ही अजीब
तरीके से उसने मेरी तरफ देखा।उसका
चेहरा साँवला था। मैंने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए पूछा-"किस
स्कूल में?"
"सरकारी स्कूल में।"
"घर में और कौन-कौन है?"
"बौआ है,मम्मी है और पापा हैं...."
"बौआ कितना बड़ा है?"
उसने अपने हाथ से इशारा करते हुए अपनी कमर तक
बताया।वो अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा
चुका था,पर इतना अबोध था कि वो अपने छोटे भाई की
उम्र का अंदाजा तक नहीं लगा पाया था। आखिर था तो
बच्चा ही न.....! मैंने फिर से प्रश्नश्रृंखला को आगे
बढ़ाया और पूछा -"पापा क्या करते हैं?"
"लोहा-टीना का फेरी लगाता है।"
"और मम्मी.......?"
"वो भी किसी -किसी के घर
जाकर काम करती है।"
"कल तो स्कूल नहीं जा पाओगे?"
"जाएँगे ना...."
"कैसे?"
"स्कूल तो 9 बजे से है,सुबह उठ कर चले जाएँगे...."
"पढाई कर पाते हो,स्कूल के बाद?"
"हाँ.....,मुझे तो अंग्रेजी का A B C D पूरा याद
है...!"
"अच्छा तुम्हारा घर कहाँ है?"
"यहीं काली स्थान के पास।"
"अपना घर है?"
"नहीं,किराया देकर रहते हैं।"
"मुझे ले चलोगे अपने घर?"
"हाँ....."
इसके बाद मैं एक कुर्सी पर बैठ कर फिर विचारों
की नदी में गोते लगाने लगा।लेकिन कुछ
ही देर बाद मैं फिर उठकर उसके पास गया और पूछा-"
कितना पैसा मिलेगा तुम्हे आज काम करने के लिये?"
"दू सौ रुपैया।"
थोड़ी देर बाद मैंने देखा वो जा रहा था । "मुझे
नहीं ले चलोगे?"
"हाँ चलिए।"
हमदोनो चल पड़े। 100 मीटर चलने के बाद उसका घर
आ गया।बायीं ओर इशारा करते हुए उसने
कहा-"यही है मेरा घर...." मैंने देखा दो पहिये
वाली हाथगाड़ी दरवाजे के बाहर
खड़ी थी। शायद इससे उसके पिता लोहा-
टीना की फेरी लगाते होंगे।
दरवाजा बस लगा था कुण्डी नहीं बंद
की गई थी। उसने दरवाजा खोला। अंदर एक
नल था,और आगे फिर एक कमरा। कमरे का दरवाजा खुला था।कमरे
में एक चौकी लगी थी।
चौकी पर गोलू के माता-पिता और बौआ सो रहे थे।मैंने
गोलू से पूछा -"तुम कहाँ सोते हो ?" चौकी
इतनी कम चौड़ी थी कि
वही तीन लोग बड़ी मुश्किल
से उस पर सोये थे। गोलू ने बड़ी मासूमियत से उत्तर
दिया-"चौकी के नीचे।"
"चौकी के नीचे.........!" मैंने थोड़ा चौंक
कर पूछा। "हाँ ,चौकी के नीचे"
मेरी आँखों में आंसू आने को थे । लेकिन मैंने अपने-
आप को रोक लिया। मैंने देखा चौकी के नीचे
एक बेड मोड़कर रखा था ,कुछ किताबें भी वहाँ
पड़ी थीं । कमरा इतना छोटा था ,कि
बड़ी मुश्किल से उसमें चौकी के अलावा
थोड़ी और जगह बची थी।
उस जगह में दो बाल्टी
पानी,5लीटर वाला गैस चूल्हा ,कुछ सब्जियाँ
और एक तार पर कुछ कपड़े पड़े थे। मैं उस लड़के के लिए क्या
करूँ, ये सोचने लग गया। मैं चाहकर भी उस लड़के के
लिए कुछ विशेष नहीं कर सकता था। मैंने अपने बटवे
से 100 रुपये निकालकर उसे दिया और कहा-"इसे संभालकर अच्छे
से उपयोग में लाना ।रात बहुत हो गयी है ,अब सो
जाओ। मैं भी चलता हूँ...।" इतना कहकर मैं वहाँ से
चला आया....।
.......फिर शादी में वापस आया तो 2 बज
चुके थे। सभी दोस्त कई लड़कियों के बारे में बोल-बोल
कर मजाक कर रहे थे। लडकियाँ भी इधर देखकर
मुस्कुरा रही थीं। लेकिन अब मुझे कुछ
भी नहीं भा रहा था। मेरे दिमाग में तो बस
गोलू और मेरी विवशता थी। हमलोग सुबह
5 बजे वाली ट्रेन से वापस आ गए।
.......एक साल बाद फिर
कीसी काम से मैं कंकड़बाग में था।
फरवरी का महीना था। अपनी
निजी जिंदगी में मैं इतना मशगूल हो गया था
कि मैं गोलू को भूल चूका था। जब मैंने एक जलेबी-
पूड़ी की दूकान पर एक बच्चे को प्लेट
धोते देखा तो गोलू का चेहरा मेरे मानसपटल पर चित्रित हो गया । चूँकि
मैं कंकड़बाग में पहले भी रह चुका था,इसलिए मैं गोलू
के घर का रास्ता भूला नहीं था। मैं उसके घर पहुँचा तो
मैंने देखा,गोलू चौकी पर लेटा था। मैंने उसकी
माँ से पूछा तो उसने बताया-"2 दिन से
सर्दी,खांसी, बदन दर्द और तेज़ बुखार
है। दवाई देती हूँ तो थोड़ा आराम मिलता है ,फिर
वही हाल....।दो दिन से तो फेरी लगाने
भी नहीं गया है।" "फेरी तो
इसके पिता लगाते हैं ना.......!" "नहीं वो 8
महीने पहले ही मर गया।
पूरी कमाई की शराब पी जाता
था।उससे अच्छा तो ये है ,पूरा पैसा घर तो लाता है। भले
ही 100 200 कम कमाता है....।" "और
इसकी पढ़ाई?" "पढ़ेगा तो खायेगा क्या....एक दो पैसे
खर्च होते हैं ।किराया ,खाना-पीना ,कपड़ा-लत्ता सब
देखना पड़ता है.....।"
उस समय स्वाइन फ्लू फैला हुआ था। मैंने
उनसे आग्रह किया ,कि NMCH में चलकर इसका इलाज करवा
लिया जाए।तो गोलू की माँ कहने लगी-"हमारे
पास इतने पैसे कहाँ हैं.....?" फिर मैंने उन्हें बताया कि वहाँ मुफ़्त
इलाज़ होता है, तब जाकर वो राज़ी हुईं । वहाँ उसे
स्वाइन फ्लू में पॉजिटिव पाया गया। गोलू को आइसोलेशन वार्ड में
भर्ती कर दिया गया। अगले दिन मैं ये सोच रहा था
की मैं इससे और ज्यादा गोलू के लिए क्या-क्या कर
सकता था। मैं उसे पढ़ा लिखा नहीं पा रहा था इसका
मलाल मुझे रह गया था। मैं गोलू के लिए कुछ नहीं कर
पाया था।
मेरी हालत क्रिकेट के उस पुछल्ले
बल्लेबाज की तरह थी जो हाथ में बल्ला
होते भी पहाड़ से बड़े स्कोर को बनाकर
विजयी नहीं हो सकता। ये काम तो उसके
दल के अग्रिम बल्लेबाजों का था ,जिन्होंने अपनी
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया।खैर पुछल्ले बल्लेबाज ने
जब बैट पकड़ ली थी तो उससे जितना बन
पड़ा उसने किया......।
यही सब सोचता हुआ मैं ट्रेन में बैठा जा रहा
था। और कोई गोलू वाटर बोतल ,कोई मसाला,तो कोई गोलू समोसे बेचता
मेरी आँखों के सामने इधर से उधर जा रहा था........।
★★★★★★★★★
, मेरे एक दोस्त के बहन
की शादी होने वाली
थी।शादी पटना के एक
कम्युनिटी हॉल में होनी थी।
हमारी हैसियत चाहे जितनी भी
हो ,हर कोई उससे बढ़ कर शादी में खर्च करना चाहता
है....।राहुल के माँ-बाप ने भी अपनी
बेटी के लिए एक डॉक्टर वर ढूँंढा था । राहुल और
उसकी बहन प्रिया दोनों ही एक
ही क्लास में हमारे साथ पढ़ते थे । प्रिया उम्र में
राहुल से बड़ी थी।राहुल इस
शादी को लेकर बहुत उत्साहित था।उसने अपने सारे
दोस्तों को शादी में आने का न्यौता दे रखा था.....
.... 6 लोगों की मण्डली
उस दिन मोकामा स्टेशन पर इकट्ठा हो गयी
थी।हम ट्रेन का इंतज़ार कर रहे थे....।हमलोग ढाई
बजे स्टेशन पर आ गए थे और ट्रेन सवा तीन बजे
की थी।6 लोगों में
मैं,सौरव,नितीश,विमलेश ,विकास और रितेश थे।विकास
हम सब में सबसे लंबा और स्मार्ट था।वह जब कोर्ट पैन्ट और
चश्मा पहन लेता था तो रणवीर कपूर से कम
नहीं लगता था.....एकदम उज्जवलवर्ण और 6
फ़ीट 2 इंच की लंबाई उसके स्मार्टनेस को
और भी समृद्ध करती
थी....।
हमारी ट्रेन आई और हमने एक
पूरा कम्पार्टमेंट खाली देखकर वहाँ अपना कब्जा जमा
लिया। मोकामा से पटना जाने में कोई एक्सप्रेस ट्रेन सवा से डेढ़ घंटे
का समय लेती है ।अकेले होने पर ये समय बिता पाना
थोड़ा मुश्किल होता है ।लेकिन जब 6 लोगो की
मण्डली हो तो वो भला शांत कैसे रहते...।बहस शुरू हो
गई ...बहस का मुद्दा था कौन ज्यादा ताकतवर है -अनुज सिंह या
चंद्रभान...। अनुज सिंह विधायक थे।वहीं चन्द्रभान
पहले सांसद रह चुके थे।विकास जहाँ अनुज सिंह का भक्त था,तो
रितेश भी चन्द्रभान का उतना ही बड़ा
समर्थक......।बाकी के चारो बस उस बहस में
हल्की सी अपनी टाँग अड़ा
कर अपना टाइम पास करने में लगे थे। बहस में हँसी
मजाक भी खूब हुआ । सामने साइड लोअर पर
बैठी एक दंपत्ति भी हमारी
बातों से आनंदित हो उठती थी।विकास थोड़ा
बरबोलेपन का शिकार था और कभी- कभार अमर्यादित
भाषा का प्रयोग भी कर रहा था।वाद-विवाद ,तर्क-वितर्क
चलते रहे....। निष्कर्ष में विकास ने चंद्रभान को
दिमागी कसरत का विजेता माना ,तो वहीं रितेश
भी इस बात से इनकार नहीं कर पाया ,कि
अनुज सिंह का खौफ पूरे बिहार में सबसे ज्यादा है।
.....इसी बीच 13331 अप
धनबाद पटना इंटरसिटी राजेंद्रनगर टर्मिनल पहुँच
गयी। शाम के 6 बज गए थे....।गाड़ी
समय से थोड़ा लेट थी।हमलोगों को राहुल ने पहले
ही बता दिया था की हमें रामप्रसाद
कम्युनिटी हॉल जाना है। और यह
कम्युनिटी हॉल कंकड़बाग के हनुमान नगर में है । मैं
और नीतिश इस इलाके से काफी अच्छे ढंग
से परिचित थे। हमने अपनी 10+2 की
पढ़ाई समाप्त करने के बाद अपने जीवन का एक साल
वहीं बिताया था। हमलोग राजेंद्रनगर टर्मिनल से
दक्षिण की ओर बाहर निकले । ऑटोवाले एक-एक कर
हमसे हाजीपुर..... हाजीपुर.....पूछे जा
रहे थे। विकास ने फिर बड़ी ही
बेबाकी से उन्हें मना किया। सौरव हममे से सबसे
सीनियर मेंबर थे। उन्होंने विकास को डाँट
भी लगाईं। लेकिन विकास की उम्र 23साल
होने के बाद भी उसका लड़कपन अभी गया
नहीं था। हमलोगों ने काफी कम-
बेसी करवाने के बाद 50रूपये में हनुमान नगर के लिए
एक ऑटो बुक किया और चल पड़े..........।
थोड़ा घूमते-फिरते जब हमलोग कम्युनिटी हॉल
पहुँचे तो पौने सात बज चुका था।अँधेरा पूरी तरह अपना
साम्राज्य फैला चुका था...।पूरे कम्युनिटी हॉल
की सजावट अब काफी अच्छी
लग रही थी। कम्युनिटी हॉल
देखकर किसी को भी अंदाजा हो जाता कि
राहुल के पापा ,जो कि एक बिजनेसमैन हैं,ने अपनी
इकलौती बेटी की
शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी
थी। कम्युनिटी हॉल में दो फ्लोर थे। ऊपर
वाला लड़कीवालों के लिए और नीचे वाला
लड़केवालों के लिए था.....।पण्डाल काफी बड़ा और
लाइट ,झूमर ,बल्ब आदि से सुसज्जित था। एक बड़ा सा स्टेज
जिसपर जयमाल होनी थी
काफी अच्छे से फूलों से सजाया गया था। स्टेज के
आसन्न डी जे म्यूजिक लगा था और कृत्रिम डान्स
फ्लोर भी बना था। स्टेज के ठीक सामने
करीब-करीब ढाई सौ गद्दे वाली
कुर्सियों को उजली पोशाक पहना दी
गयी थी। हमसब सजावट का आनंद ले
रहे थे ....विमलेश थोड़ा खाने-पीने का
शौक़ीन था । उसने तपाक् से पूछा-'यार ये खाने-
पीने का आइटम कहाँ है?' इतने में राहुल आ गया....।
उसने भी हमारी खातिरदारी में
कोई कसर नहीं छोड़ी थी।
उसका सबसे पहला औपचारिक सवाल-"आने में कोई दिक्कत तो
नहीं हुई न......." फिर वो हमें चाउमिन और गुपचुप
के स्टाल की तरफ ले गया। वैसे भूख तो हम सब को
लग आई थी लेकिन इसका ठीकड़ा विमलेश
पर फोड़ दिया गया । रितेश ने कहा-"ठीक किये जो यहाँ
ले आये वरना विमलेश को तो हार्ट अटैक आ जाता। उसे खाने-
पीने का स्टाल ही नहीं मिल पा
रहा था।"फिर रितेश ने राहुल के सामने पण्डाल और सजावट
की काफी तारीफ़
भी की ।हुमलोग चाउमिन खाने में व्यस्त
हो गए....। चाउमिन का टेस्ट काफी फीका
था। सभी ने एक-एक कर कहा-"चाउमिन
ठीक नहीं है।"इस पर विमलेश
की प्रतिक्रिया थी-"हाँ
यार........,काफी ठंडा था...।कुछ और खाने का ट्राय
करें क्या?"इस पर सारे लोगों ने एक-साथ ठहाका मारा। फिर सबसे
पहले विमलेश की ही नजर गुपचुप पर
पड़ी । "चलो अभी वहाँ भीड़
थोड़ी कम है। जल्दी चल के खा लेते हैं।
"हमसब गुपचुप की तरफ बढ़े।इतने में
नितीश ने कहा-"लगता है गुपचुप का भी
स्वाद खराब ही होगा। शादी ब्याह में इन
सारी चीजों को थोड़े ही ना कोई
टेस्टी बनाता है।" शुरुआत मैंने ही
की। जैसे ही पहला गुपचुप मुँह में लिया
कि मजा आ गया।मैंने जल्दी से मुँह वाला गुपचुप ख़त्म
कर कहा-"ये तो एकदम सुपर्ब है...... ।"मेरे बोलते
ही मेरे बाद गुपचुप खा रहे रितेश ने कहा-"रवि एकदम
सही कह रहा है....." हमलोगों ने लगातार 15मिनट
तक गुपचुप का आनंद लिया फिर पंडाल की ओर घूमने
चल दिए........।
.....थोड़ी देर तक पंडाल में
चहलकदमी करने के बाद मैंने टाइम देखने के लिए
मोबाइल निकाला और नजर बैटरी पर पड़ी।
14%। काफी कम हो चुका था । मैंने सौरव दा से
कहा-"अजी चार्जर दीजिये.... ,मोबाइल
चार्ज करना है।"उन्होंने चार्जर निकाल कर दे दिया । मैं और राकेश
ये बोलते हुए छत पर चले गए कि बारात आये तो एक मिस कॉल दे
दीजियेगा........।रितेश मेरे साथ इसलिए ऊपर आया
क्योंकि उसकी गर्लफ्रेंड भी ऊपर आई
हुई थी। हमदोनो दो कुर्सी पर बैठकर
मोबाइल चार्ज करने लगे....। अब चूँकि शादी का माहौल
था तो कई परिचित-अपरिचित चेहरे दिख रहे थे। नजर ज्यादातर
लड़कियों पर ही ठहर रही थी
। इसी बीच रितेश ने अँगुली से
इशारा कर बताया-"वो हरे सूट में देख रहे हो....वही
मेरी गर्लफ्रेंड है।" हालाँकि वो लड़की
देखने में मुझे अच्छी नहीं
लगी,फिर भी अगर कोई आपके साथ
बैठकर आपका मोबाइल चार्ज करने में आपको कंपनी
दे रहा हो तो आप सीधे तौर पर अपनी इस
इच्छा को प्रकट नहीं कर सकते...। मैंने कहा-"हाँ
यार माल है एकदम ये तो ...!" उसके साथ नीले सूट में
जो लड़की थी वो भले ही
थोड़ी अच्छी थी। पर
अभी मेरा सारा ध्यान अपने मोबाइल की
बैटरी पर केंद्रित था.......।
जैसे ही मेरे मोबाइल की
बैटरी 50%हुई,विमलेश हमे बुलाने छत पे आ
गया-"बरात आ गयी है.....जल्दी
नीचे चलो......।"हमे भी गाजे-बाजे और
पटाखे की आवाज आने लगी
थी।हमदोनो नीचे गए। लड़के को देखा तो वो
काफी सुन्दर अवतरित हुए ।गोरा सा
चेहरा,बड़ी-बड़ी आँखें,हल्की
मगर चौड़ी मूँछे ,एक सफ़ेद पगड़ी और
सफ़ेद सिरवानी में लड़का एकदम राजकुमार दिख रहा था।
राहुल मेरे बगल में खड़ा था। मैंने कहा-"यार,प्रिया और
इनकी जोड़ी क्या मस्त
लगेगी!प्रिया भी कितनी सुन्दर
है ,है ना....?"
अब चूँकि बारात पटना से ही आई
थी तो दरवाजा लगाने वाली रश्म
पूरी करने के लिए बारात को पास में ही कुछ
दूर तक घुमा कर लाने का प्रबंध किया गया। झारगेट लिए कुछ लोग
,एक गवैया और उसका बैंड आगे-आगे और हम पीछे-
पीछे .....।आज मेरे यार की
शादी है....,ऐ राजा राजा राजा करेजा में समा
जा....,तानी सा जीन्स ढीला
कर.......,आदि गाने बज रहे थे।हम दाहिने-बाएँ छतों से झाँकते लोगों
को ताकते आगे बढ़ते रहे।उन लोगों को देखकर हमारे
बीच बहस भी चलती
रही।"......नहीं यार दूसरी
मंजिल पर वाली अच्छी
थी...." "क्या बात कर रहे हो यार दाईं ओर
बालकनी में देखा एकदम परिणीति जैसा
फिगर था उसका...! " इसी बीच राहुल आ
गया -"यार चलो,नहीं तो बारात वाले वापस आ जाएँगे तो
फिर खाने में काफी भीड़ हो
जायेगी।" मोकामा वगैरह में शादी
होती तो कुर्सी टेबल पे बिठा के कुछ लोग
आपको खाना खिला देते।मगर कम्युनिटी हॉल में ये
सारी व्यवस्था कहाँ......वहाँ तो बस प्लेट हाथ में
लेकर भिखारियों की तरह कतार में धीरे-
धीरे आगे बढ़ते रहते हैं।स्टाल पर यूनिफार्म में सजे-
धजे लड़के आपकी प्लेट में खाना डालते रहते हैं.....।
हमलोग वापस पंडाल में आ गए थे।लोग नीचे
घूम रहे थे। वापस आने पर हमने देखा ,सच में भीड़
काफी बढ़ गयी थी।
काफी लोग आ चुके थे।खाने-पीने का
कार्यक्रम भी आरम्भ हो चुका था। इन्हीं
सब के बीच मेरी नजर एक
लड़की पर पड़ी।हल्के पीले
रंग का स्लीवलेस सूट पहने वो लड़की
एकदम दुबली-पतली थी।
आज के इस दौड़ में तो जीरो फिगर का चलन
ही बन गया है।इसमें एक और मोहतरमा उस तरह
की.......।आँखें भी उसकी
कमाल की थीं।शायद आँखों को सजाने में
भी उसने कोई कसर नहीं
छोड़ी थी।पूरा चेहरा मेक-अप से ओत-प्रोत
था।वह शायद यह सोचकर ही आई थी कि
शादी में आकर्षणकेंद्र केवल वही
बनी रहे....।उस सूट के साथ मैचिंग दुपट्टे को जहाँ
होना चाहिए था ,वो वहाँ नहीं था।दुपट्टा हाथों पर लटक
रहा था।आज के फैशन में शायद यही दुपट्टे
की जगह बन गयी है।हम सब
की आँखें उस लड़की पर
जमी थीं....वो पीछे
पलटी ... ये क्या....!उसके सूट के पीछे
एक बड़ा गोलाकार भाग खाली था।वहाँ से
उसकी पीठ दिख रही
थी।यह भी उसकी डिज़ाइन का
ही हिस्सा था शायद....और आकर्षण का एक और
बिंदु...सभी दोस्त उसकी सुंदरता के गुण गा
रहे थे।कोई उसे दीपिका पादुकोण की तरह
बता रहा था तो कोई उसकी आँखें शिल्पा सी
कह रहा था।लड़की तो अच्छी लग
रही थी लेकिन जम नहीं
रही थी।इतने में विमलेश मेरे पास आया
और बोला-"क्या देख रहे हो....बिना मेक-अप के देख लोगे तो डर
जाओगे।" मैंने कहा-"बिलकुल सही कह रहे हो तुम
।" विमलेश की नजरें भी एकदम
पारखी थीं।उसे भी लड़कियों
की असली सुंदरता की पहचान
थी।फिर राहुल का आगमन हुआ।"तुमलोग खाना क्यों
नहीं खा रहे....जल्दी से खाना खा लो....।
खाना खा लो फिर आराम से शादी का आनंद लेते
रहना...।" इसी बीच विकास ने
चुटकी ली-"आनंद...आनंद
ही आनंद है यहाँ.....।" हमलोग अब खाने
की तरफ बढ़े।प्लेट ली और एक-एक कर
के एक स्टाल से दूसरे स्टाल तक सरकते रहे।
सभी के प्लेट में खाना था और हम गोलाकार
होकर खड़े हो गए थे।खाना खा रहे थे और साथ-साथ बातें
भी कर रहे थे।विमलेश ने
कहा-"पीली वाली को छोड़ो वो
देखो गुलाबो मैडम....।" गुलाबी रंग के सूट में एक और
सुन्दर युवती दिखी। विकास ने कहा-"यार
,कोई जीन्स-टॉप वाली नजर
नहीं आ रही...।" विमलेश-"अरे छोड़ो हमे
क्या....?" । वैसे गुलाबी सूट वाली
भी काफी खूबसूरत थी ।चेहरे
पर मेक-अप भी कम था और दुपट्टा भी
अपनी जगह पे था। विमलेश को तो यह
लड़की भा गयी थी।वह तो बस
उसका आसक्त हो गया था।
मेरा खाना ख़त्म हो गया था और मैं अपनी
प्लेट रखने के लिए इधर-उधर जगह खोजने लगा।कुछ प्रयास के
बाद मुझे एक घनाभाकार प्लास्टिक का डब्बा मिला ,जिसमे पहले से
5-10 प्लेटें रखी हुई थीं।मैं
भी अपनी प्लेट उसमें रख आया।मेरे
प्लेट रखते ही दो बच्चे जिनकी उम्र
यही कोई 8 या 10साल रही
होगी ,डब्बा उठाने के लिए वहाँ आ गए । मैंने उन्हें
देखा...। दोनों हाफ पैंट में नंगे पाँव थे। एक ने हाफ शर्ट पहन
रखी थी,तो दूसरे ने अपनी बाँह
को ऊपर तक मोड़ ली थी। मेरे प्लेट रखते
ही वो जल्दी से उस डब्बे को ले गए।दोनों
बड़ी मुश्किल से उस डब्बे को उठाकर ले जा रहे थे।
उन्होंने उस डब्बे को उठाकर 5 6बार रखा होगा उसके बाद
ही वो उसे पंडाल के पीछे ले जा सके ।
पंडाल के पीछे तीन और बच्चे
इतनी ही उम्र के प्लेट धोने में लगे
थे.......।
मैं थोड़ी देर तक उनको देखता रहा फिर हाथ
धोकर पंडाल में आ गया।वो दो बच्चे फिर से प्लेट उठाकर ले जाने में
लग गए थे। इतनी मुस्तैदी से वो प्लेट
उठा रहे थे जितना मुस्तैद होकर सेना का कोई जवान
सीमा पर अपनी ड्यूटी देता है।
उनके माथे पर कोई सिकन नहीं दिख रही
थी और वो अपने काम में पूरी तरह
तल्लीन दिख रहे थे।पूरे जोश और उमंग के साथ वो
डिब्बे में रखी प्लेट को उठाकर पीछे पहुँचा
रहे थे।दोनों एक-एक किनारे से डब्बे को पकड़े,
साइड......साइड.....बोलते हुए पंडाल के बाहर जा रहे थे...।
मेरी नजर अब इन बच्चों पर जा
टिकी थी।अब सारी सुंदर
युवतियाँ मेरी नजरों से ओझल हो गयीं
थीं।मुझे उन बच्चों की मासूमियत ने
अपनी ओर आकर्षित कर लिया था।और मैं उनके
क़त्ल किये गए बचपन पर केंद्रित हो गया था।अब न तो उस
पीली सूट वाली के बालों
की सुंदरता दिख रही थी न
ही एक गदराई टॉप वाली के वक्ष मुझे
आकर्षित कर पा रहे थे।मैं तो बस देखे जा रहा था,डांस फ्लोर पर
डांस करते शादी में आये कुछ बच्चों को ......कितने
स्वतंत्र हैं ये बच्चे.....दुनियादारी की कोई
समझ इन्हें अभी नहीं है। और हो
भी क्यों ......!इनकी उम्र
अभी इन सारी बातों से परिचय पाने का
नहीं था। वो उन्मुक्त बिना थके हनी सिंह
के गाने पर नृत्य किये जा रहे थे....।
मैं अब एक सोच में डूब चुका था।मैं ये सोच रहा था ,ये
भी बच्चे ही हैं और प्लेट उठाते और
धोते वो भी बच्चे ही हैं।उम्र
भी बराबर ही है।एक को पैसे
अभी बस माँ-बाप से मिलते है ,सिर्फ इतना
ही पता है।वहीं दूसरे को पैसे के लिए ना
जाने कितनों को माँ-बाप बनाना पड़ता है।मैं खड़े-खड़े इन दोनों बच्चों
की जिंदगियों की तुलना करने में लग गया।
मेरी नजरें नीचे प्लेट से भरे डब्बे पर
जम गयीं थीं।इतने में विमलेश आया-"क्या
हुआ तुम्हे...किसकी याद में खोये हो ,चलो उधर देखो
बच्चे कितना अच्छा डांस कर रहे हैं।" मैंने अपने चेहरे पर
बनावटी मुस्कान लाते हुए कहा-"हाँ,मैं भी
अभी देखकर आया हूँ।" "अरे यहाँ क्या
करोगे......चलो उधर ही....।" और वह मेरा हाथ
पकड़ कर उधर ले गया।पर मेरा मन तो प्लेट उठाते बच्चों पर हिम
की भाँति जम गया था। इसे अलग-अलग तरह के आते
विचारों ने अपने चक्रव्यूह में घेर लिया था । इन विचारों का शिकंजा
इतना जबरदस्त ढंग से कसा था,कि किसी और विचार का
पदार्पण नामुम्किन सा हो गया था।न तो सुन्दर युवतियों का और ना
ही इस शादी को देखकर
अपनी शादी करने के लिए
किसी प्रकार के विचार का अविर्भाव मेरे मन में हुआ।
जयमाल की रश्म शुरू हुई।मैंने अनमने ढंग
से दूल्हा-दुल्हन का फ़ोटो लिया।घरवालों को भी तो देखना
होता है ना कि जिस शादी में आप गए हो उसके दूल्हा-
दुल्हन दिखते कैसे हैं। जयमाल की रश्म ख़त्म होने
के एक घंटे बाद करीब साढ़े 11 बजे जब यह बोला गया
कि जो भी बचे हों खाना खा लें वरना काउंटर हटा दिया
जाएगा। तब मैंने देखा ,प्लेट धो रहे लड़के सबसे अंत में खाना खा
रहे थे। बड़ी ही जल्दी-
जल्दी वो खाना खा रहे थे। शायद खाना खाने में दिखाई दे
रही जल्दबाजी उनकी
दहकती जठराग्नि की परिचायक
थी। उन्होंने जल्दी जल्दी
खाना खाया और फिर प्लेट धोने में लग गए।
थोड़ा और समय बीता,विवाह का कार्यक्रम
धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था।
शादी का मण्डप ऊपर था और विवाह की
रश्में भी वहीं चल रही
थीं।मैं नीचे पंडाल में बैठा सोच रहा था,कोई
बच्चा कितना बेफिक्र है अपनी जिंदगी से
....और उसी की उम्र का दूसऱा बच्चा
अपनी और अपने परिवार की
जिंदगी का बोझ अपने कंधे पर उठाये घूम रहा है। एक
को ये भी पता नहीँ कि जिंदगी
क्या है....और एक को जिंदगी ने क्या-क्या सिखा दिया।
मैंने देखा एक बच्चा जिसकी उम्र कोई 7 साल
होगी,डिस्पोजल ग्लास निकालकर टेबल पर रख रहा था।
मैं उसके पास गया और मैंने उससे पूछा -"क्या नाम है तुम्हारा?"
"गोलू"
"पढाई करते हो?"
उसने सिर हिलाकर हाँ कहा। उसकी आँखों में मासूमियत
का दरिया बह रहा था। बड़े ही अजीब
तरीके से उसने मेरी तरफ देखा।उसका
चेहरा साँवला था। मैंने उसके माथे पर हाथ फेरते हुए पूछा-"किस
स्कूल में?"
"सरकारी स्कूल में।"
"घर में और कौन-कौन है?"
"बौआ है,मम्मी है और पापा हैं...."
"बौआ कितना बड़ा है?"
उसने अपने हाथ से इशारा करते हुए अपनी कमर तक
बताया।वो अपने परिवार की जिम्मेदारी उठा
चुका था,पर इतना अबोध था कि वो अपने छोटे भाई की
उम्र का अंदाजा तक नहीं लगा पाया था। आखिर था तो
बच्चा ही न.....! मैंने फिर से प्रश्नश्रृंखला को आगे
बढ़ाया और पूछा -"पापा क्या करते हैं?"
"लोहा-टीना का फेरी लगाता है।"
"और मम्मी.......?"
"वो भी किसी -किसी के घर
जाकर काम करती है।"
"कल तो स्कूल नहीं जा पाओगे?"
"जाएँगे ना...."
"कैसे?"
"स्कूल तो 9 बजे से है,सुबह उठ कर चले जाएँगे...."
"पढाई कर पाते हो,स्कूल के बाद?"
"हाँ.....,मुझे तो अंग्रेजी का A B C D पूरा याद
है...!"
"अच्छा तुम्हारा घर कहाँ है?"
"यहीं काली स्थान के पास।"
"अपना घर है?"
"नहीं,किराया देकर रहते हैं।"
"मुझे ले चलोगे अपने घर?"
"हाँ....."
इसके बाद मैं एक कुर्सी पर बैठ कर फिर विचारों
की नदी में गोते लगाने लगा।लेकिन कुछ
ही देर बाद मैं फिर उठकर उसके पास गया और पूछा-"
कितना पैसा मिलेगा तुम्हे आज काम करने के लिये?"
"दू सौ रुपैया।"
थोड़ी देर बाद मैंने देखा वो जा रहा था । "मुझे
नहीं ले चलोगे?"
"हाँ चलिए।"
हमदोनो चल पड़े। 100 मीटर चलने के बाद उसका घर
आ गया।बायीं ओर इशारा करते हुए उसने
कहा-"यही है मेरा घर...." मैंने देखा दो पहिये
वाली हाथगाड़ी दरवाजे के बाहर
खड़ी थी। शायद इससे उसके पिता लोहा-
टीना की फेरी लगाते होंगे।
दरवाजा बस लगा था कुण्डी नहीं बंद
की गई थी। उसने दरवाजा खोला। अंदर एक
नल था,और आगे फिर एक कमरा। कमरे का दरवाजा खुला था।कमरे
में एक चौकी लगी थी।
चौकी पर गोलू के माता-पिता और बौआ सो रहे थे।मैंने
गोलू से पूछा -"तुम कहाँ सोते हो ?" चौकी
इतनी कम चौड़ी थी कि
वही तीन लोग बड़ी मुश्किल
से उस पर सोये थे। गोलू ने बड़ी मासूमियत से उत्तर
दिया-"चौकी के नीचे।"
"चौकी के नीचे.........!" मैंने थोड़ा चौंक
कर पूछा। "हाँ ,चौकी के नीचे"
मेरी आँखों में आंसू आने को थे । लेकिन मैंने अपने-
आप को रोक लिया। मैंने देखा चौकी के नीचे
एक बेड मोड़कर रखा था ,कुछ किताबें भी वहाँ
पड़ी थीं । कमरा इतना छोटा था ,कि
बड़ी मुश्किल से उसमें चौकी के अलावा
थोड़ी और जगह बची थी।
उस जगह में दो बाल्टी
पानी,5लीटर वाला गैस चूल्हा ,कुछ सब्जियाँ
और एक तार पर कुछ कपड़े पड़े थे। मैं उस लड़के के लिए क्या
करूँ, ये सोचने लग गया। मैं चाहकर भी उस लड़के के
लिए कुछ विशेष नहीं कर सकता था। मैंने अपने बटवे
से 100 रुपये निकालकर उसे दिया और कहा-"इसे संभालकर अच्छे
से उपयोग में लाना ।रात बहुत हो गयी है ,अब सो
जाओ। मैं भी चलता हूँ...।" इतना कहकर मैं वहाँ से
चला आया....।
.......फिर शादी में वापस आया तो 2 बज
चुके थे। सभी दोस्त कई लड़कियों के बारे में बोल-बोल
कर मजाक कर रहे थे। लडकियाँ भी इधर देखकर
मुस्कुरा रही थीं। लेकिन अब मुझे कुछ
भी नहीं भा रहा था। मेरे दिमाग में तो बस
गोलू और मेरी विवशता थी। हमलोग सुबह
5 बजे वाली ट्रेन से वापस आ गए।
.......एक साल बाद फिर
कीसी काम से मैं कंकड़बाग में था।
फरवरी का महीना था। अपनी
निजी जिंदगी में मैं इतना मशगूल हो गया था
कि मैं गोलू को भूल चूका था। जब मैंने एक जलेबी-
पूड़ी की दूकान पर एक बच्चे को प्लेट
धोते देखा तो गोलू का चेहरा मेरे मानसपटल पर चित्रित हो गया । चूँकि
मैं कंकड़बाग में पहले भी रह चुका था,इसलिए मैं गोलू
के घर का रास्ता भूला नहीं था। मैं उसके घर पहुँचा तो
मैंने देखा,गोलू चौकी पर लेटा था। मैंने उसकी
माँ से पूछा तो उसने बताया-"2 दिन से
सर्दी,खांसी, बदन दर्द और तेज़ बुखार
है। दवाई देती हूँ तो थोड़ा आराम मिलता है ,फिर
वही हाल....।दो दिन से तो फेरी लगाने
भी नहीं गया है।" "फेरी तो
इसके पिता लगाते हैं ना.......!" "नहीं वो 8
महीने पहले ही मर गया।
पूरी कमाई की शराब पी जाता
था।उससे अच्छा तो ये है ,पूरा पैसा घर तो लाता है। भले
ही 100 200 कम कमाता है....।" "और
इसकी पढ़ाई?" "पढ़ेगा तो खायेगा क्या....एक दो पैसे
खर्च होते हैं ।किराया ,खाना-पीना ,कपड़ा-लत्ता सब
देखना पड़ता है.....।"
उस समय स्वाइन फ्लू फैला हुआ था। मैंने
उनसे आग्रह किया ,कि NMCH में चलकर इसका इलाज करवा
लिया जाए।तो गोलू की माँ कहने लगी-"हमारे
पास इतने पैसे कहाँ हैं.....?" फिर मैंने उन्हें बताया कि वहाँ मुफ़्त
इलाज़ होता है, तब जाकर वो राज़ी हुईं । वहाँ उसे
स्वाइन फ्लू में पॉजिटिव पाया गया। गोलू को आइसोलेशन वार्ड में
भर्ती कर दिया गया। अगले दिन मैं ये सोच रहा था
की मैं इससे और ज्यादा गोलू के लिए क्या-क्या कर
सकता था। मैं उसे पढ़ा लिखा नहीं पा रहा था इसका
मलाल मुझे रह गया था। मैं गोलू के लिए कुछ नहीं कर
पाया था।
मेरी हालत क्रिकेट के उस पुछल्ले
बल्लेबाज की तरह थी जो हाथ में बल्ला
होते भी पहाड़ से बड़े स्कोर को बनाकर
विजयी नहीं हो सकता। ये काम तो उसके
दल के अग्रिम बल्लेबाजों का था ,जिन्होंने अपनी
जिम्मेदारी से मुँह मोड़ लिया।खैर पुछल्ले बल्लेबाज ने
जब बैट पकड़ ली थी तो उससे जितना बन
पड़ा उसने किया......।
यही सब सोचता हुआ मैं ट्रेन में बैठा जा रहा
था। और कोई गोलू वाटर बोतल ,कोई मसाला,तो कोई गोलू समोसे बेचता
मेरी आँखों के सामने इधर से उधर जा रहा था........।
★★★★★★★★★
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